Delhi Ordinance Row: केंद्र सरकार के दिल्ली में अधिकारियों के तबादलों और नियुक्तियों पर लाए गए अध्यादेश पर गतिरोध जारी है. केंद्र सरकार ने ग्रुप-ए अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित करने के उद्देश्य से शुक्रवार को एक अध्यादेश जारी किया था. दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने केंद्र के अध्यादेश को न्यायपालिका और संविधान पर हमला करार दिया है. 


केंद्र के अध्यादेश से एक हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस, लोक सेवा और भूमि से संबंधित विषयों को लेकर सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सौंप दिया था. आप सरकार ने इस अध्यादेश को जनतंत्र और न्यायपालिका पर प्रहार बताते हुए पांच कारण भी बताए हैं. 


संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन- सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई के अपने फैसले में कहा था कि भारत जैसे देश में संघवाद विविध हितों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है. ये संविधान की मूल संरचना का भी एक हिस्सा है जिसे संसद की ओर से संशोधित नहीं किया जा सकता है. हालांकि, नया अध्यादेश एनसीटी सरकार की शक्तियों को काफी हद तक सीमित करता है, जिनकी संविधान के तहत गारंटी है.


संविधान के अनुच्छेद 239एए के तहत, दिल्ली सरकार के पास सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं, जो राज्य सूची की प्रविष्टि 41 है. केंद्र का अध्यादेश सेवाओं के मामले पर कानून बनाने की दिल्ली विधानसभा की शक्ति को छीन लेता है और दिल्ली सरकार के कार्यकारी नियंत्रण को समाप्त कर देता है. विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि अध्यादेश अनुच्छेद 239एए के खंड (3)(ए) के विपरीत है. केंद्र सरकार सेवाओं पर कानून बनाने की दिल्ली विधानसभा की शक्ति को छीन नहीं सकती है, जिसकी गारंटी संविधान द्वारा दी गई है. 


सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अपमान- ये अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 11 मई, 2023 को सर्वसम्मति से दिए गए फैसले को रद्द करने का प्रयास करता है. हालांकि, केंद्र सरकार/संसद कोर्ट के फैसले के प्रभाव को अध्यादेश या यहां तक कि एक कानून के जरिए भी बदल नहीं कर सकती है. निर्णय का आधार अनुच्छेद 239एए है. इस अनुच्छेद का उल्लंघन करने वाला अध्यादेश जारी करके, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ मामले में 14 जुलाई, 2021 के फैसले का भी उल्लंघन किया है.


अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही पर प्रश्न- अपने फैसले में व्यावहारिक दृष्टिकोण रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने जवाबदेही की ट्रिपल चैन का जिक्र करते हुए कहा था कि लोग समय-समय पर होने वाले चुनावों के माध्यम से विधायिका को जवाबदेह ठहराते हैं, सरकार तब तक कार्य करती है जब तक उसे विधायिका का समर्थन प्राप्त है और नौकरशाही को दिल्ली सरकार की ओर से उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना है.


अदालत ने कहा था कि अगर अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर देते हैं या उनके निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो मंत्रियों की सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत प्रभावित होगा. अध्यादेश व्यावहारिक रूप से दिल्ली सरकार को अधिकारियों पर किसी भी नियंत्रण का प्रयोग करने से रोकता है. ये आप शासित दिल्ली सरकार के कामकाज में बाधा डालने के लिए केंद्र की ओर से लगाया गया एक बहुत बड़ा और अवैध रोड़ा है.


दिल्ली की जनता और लोकतंत्र के हित के खिलाफ- अध्यादेश को दिल्ली की जनता की लोकतांत्रिक इच्छाशक्ति के अपमान के तौर पर देखा जा रहा है. चुनावों के माध्यम से, दिल्ली के लोगों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार पर भरोसा किया और सरकार का कर्तव्य है कि वह लोगों के भरोसे को पूरा करे. अध्यादेश लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को उसके विकास और कल्याणकारी एजेंडे को पूरा करने से रोकता है. यदि प्रशासनिक सेवाओं को दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है, तो मंत्रियों को उन सिविल सेवकों को नियंत्रित करने से रोका जाएगा जिन्हें सरकार के निर्णयों को लागू करना है.


इस प्रकार, अध्यादेश लोकतंत्र के लिए ही विरोधी है. विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि यह केंद्र की ओर से दिल्ली की चुनी हुई सरकार का वर्चुअल अधिग्रहण है. ये दिल्ली के लोगों द्वारा एनसीटी सरकार को दिए गए जनादेश को पूरी तरह से निरस्त करता है. 


विपक्ष के खिलाफ एक राजनीतिक षड़यंत्र- अध्यादेश को हाल ही में कई राज्य विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार और दिल्ली में आप सरकार के लिए न्यायिक लड़ाई में जमीन खो देने की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है. अध्यादेश लाकर, केंद्र यह सुनिश्चित करना चाहता है कि निर्वाचित दिल्ली सरकार की ओर से चलाई जा रही सभी परियोजनाओं पर उसका नियंत्रण हो और जरूरत पड़ने पर उन्हें प्रभावी ढंग से रोका जा सके. 2024 के आम चुनावों के लिए, अध्यादेश को विपक्ष को गति प्राप्त करने से रोकने के लिए एक रणनीति के रूप में भी देखे जा रहा है. आने वाले वर्ष में, इसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित करने की भी क्षमता है.  


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