नई दिल्ली:  केंद्र बनाम दिल्ली सरकार अधिकार विवाद में लंबित मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. सबसे बड़े मुद्दे यानी अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर दो जजों के बीच मतभेद के चलते कोई नतीजा नहीं निकल सका. अब ये मामला बड़ी बेंच को भेज दिया गया है. मतलब, अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग फिलहाल उपराज्यपाल ही करते रहेंगे. बाकी मामलों में भी दिल्ली सरकार को कुछ खास हासिल नहीं हुआ है.


4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ का फैसला आया था. संविधान पीठ ने माना था कि दिल्ली एक केंद्र शासित क्षेत्र है. लेकिन यहां विधानसभा का चुनाव होता है और उससे एक सरकार का गठन होता है. ऐसे में केंद्र के प्रतिनिधि उपराज्यपाल सारे फैसले अपनी मर्जी से नहीं ले सकते. उन्हें मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करना होगा. अगर किसी मसले पर विवाद होता है तो उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है. तब कोर्ट ने ये भी कहा था कि विवाद से जुड़े लंबित मुद्दों पर 2 जजों की बेंच अलग से सुनवाई करेगी.


दिल्ली सरकार संविधान पीठ के फैसले को बड़ी जीत की तरह देख रही थी. क्योंकि कोर्ट ने तब कहा था कि ज़मीन, पुलिस और कानून व्यवस्था पर उपराज्यपाल स्वतंत्र फैसला ले सकते हैं. दिल्ली सरकार को लग रहा था कि बाकी सभी चीजें उसे सौंप दी गई हैं. लेकिन आज 2 जजों की बेंच का फैसला उसके लिए झटके की तरह आया.


सर्विसेज पर जजों में मतभेद


सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण में सर्विसेस यानी अफसरों पर नियंत्रण को लेकर मतभेद रहा. जस्टिस सीकरी ने माना कि दिल्ली सरकार को अपने यहां काम कर रहे अफसरों पर नियंत्रण मिलना चाहिए. हालांकि, उन्होंने भी यही कहा कि जॉइंट सेक्रेट्री या उससे ऊपर के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण रहेगा. उनकी ट्रांसफर-पोस्टिंग उपराज्यपाल करेंगे. उससे नीचे के अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग दिल्ली सरकार कर सकती है.


लेकिन जस्टिस अशोक भूषण इस बात से सहमत नहीं थे. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली एक केंद्र शासित क्षेत्र है. उसे केंद्र से भेजे गए अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं मिल सकता. ऐसे में ये मसला 3 जजों की बेंच के पास भेज दिया गया है. फिलहाल मई 2015 वो नोटिफिकेशन बना रहेगा, जिसमें सर्विसेज को एलजी के हाथ में दिया गया था.


एंटी करप्शन ब्यूरो भी नहीं मिला


बाकी सारे मामलों में दोनों के जजों की राय एक रही. इसमें दूसरा सबसे अहम मुद्दा था, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी का. दिल्ली सरकार चाहती थी कि एंटी करप्शन ब्यूरो उसके नियंत्रण में होना चाहिए. एसीबी को केंद्र सरकार के लोगों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज करने का अधिकार मिलना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया है.


जांच आयोग बनाने का हक नहीं


कमीशन ऑफ इंक्वायरी मामले में भी दिल्ली सरकार को झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि दिल्ली सरकार को जांच आयोग के गठन का अधिकार नहीं है. ये अधिकार केंद्र सरकार के पास है. यानी ट्रांसपोर्ट घोटाले और दूसरे मामलों में जिस तरह दिल्ली सरकार ने अपनी तरफ से जांच आयोग का गठन कर दिया था, वो गलत है। वैसा वो अब नहीं कर पाएगी.


दिल्ली सरकार को क्या मिला


दिल्ली सरकार को कृषि भूमि का सर्किल रेट तय करने का अधिकार दिया गया है. हालांकि, कोर्ट ने साफ किया है कि इसके लिए उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी. अगर दोनों के बीच लेकर विवाद होता है, तो मामला राष्ट्रपति को भेजा जाएगा.


दिल्ली में बिजली के वितरण पर दिल्ली सरकार को अधिकार दिया गया है. दिल्ली सरकार ने विद्युत वितरण कंपनी में अपनी तरफ से जो निदेशक नियुक्त किए थे, उससे जुड़ी अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट ने वैध करार दिया है. बिजली की कीमतों और उपभोक्ताओं के बिजली से जुड़े हितों पर फैसले लेने का दिल्ली सरकार को हक़ है. इसके अलावा दिल्ली सरकार को मुकदमों की सुनवाई के दौरान विशेष सरकारी वकील नियुक्त करने का अधिकार दिया गया है.