Abdul Ghafoor Death Anniversary Special: भारत के स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और बिहार के 13वें मुख्यमंत्री रहे अब्दुल गफूर की 10 जुलाई को पुण्यितिथि है. वह बिहार के इकलौते मुस्लिम सीएम रहे और 'चाचा गफूर' के नाम से मशहूर थे. 1994 में जॉर्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार ने समता पार्टी की स्थापना की, तब अब्दुल गफूर भी समता पार्टी में थे. 


10 जुलाई 2004 को लंबी बीमारी के बाद 86 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था. अपने स्वभाव और प्रशासनिक कौशल के लिए वह लोगों के चहेते थे, इसलिए राजनीतिक परिदृश्य में उनकी यादें कभी मिटने वाली नहीं हैं. 


साधारण किसान परिवार में जन्मे, AMU से की पढ़ाई


अब्दुल गफूर का जन्म 18 मार्च 1918 में बिहार के गोपालगंज जिले के सरेया अख्तियार गांव (ब्रिटिश शासन के बिहार और उड़ीसा प्रांत) में रहने वाले एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गोपालगंज जिले में ही हुई. हायर एजुकेशन के लिए वह पटना और फिर अलीगढ़ गए थे. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से उन्होंने एलएलबी और एमए किया था. 


ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए चलाए गए महात्मा गांधी के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में अब्दुल गफूर भी शामिल थे. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वह बिहार कांग्रेस के दिग्गजों और भावी मुख्यमंत्रियों बिंदेश्वरी दुबे, भागवत झा आजाद, चंद्रशेखर सिंह, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, केदार पांडेय और कांग्रेस के भावी राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी की मंडली में शामिल थे. 


हेरिटेज टाइम्स डॉट इन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन ने गफूर का ध्यान खींचा था. वह महात्मा गांधी के प्रशंसक थे लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रास्ते का अनुसरण करते थे. 1937 में उन्होंने अखिल भारतीय छात्र बैठक में धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में विश्वविद्यालयों के नामों से 'हिंदू' और 'मुस्लिम' शब्द हटाने का प्रस्ताव रखा था.


ब्रिटिश हुकूमत ने जेल में डाला


रिपोर्ट के मुताबिक, गफूर का मानना था कि देश की आजादी के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस के विचार व्यावहारिक थे. 1941 में जब नेताजी जर्मनी गए तो गफूर पूरी तरह से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उतर गए. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई, ब्रिटिश सरकार के आदेशों की अवहेलना की और अपने प्रेरक भाषणों से लोगों में आजादी पाने की अलख जगाई.


ब्रिटिश सरकार ने करीब ढाई वर्ष के लिए उन्हें जेल में भी डाल दिया था. जेल में रहने के दौरान गफूर अब्दुल कलाम आजाद और रफी अहमद किदवई जैसे नेताओं के करीबी बने. बिहार में आजादी के आंदोलन में वह सक्रिय रहे और मुस्लिम लीग की राजनीति के खिलाफ अभियान चलाया. 


अब्दुल गफूर दो साल के लिए बने थे बिहार के मुख्यमंत्री


राजनीति में गफूर कई पदों पर रहे. 2 जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975 तक वह बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे. राजीव गांधी की सरकार में वह केंद्रीय शहरी विकास मंत्री और आवास मंत्री रहे. 1984 और 1996 में वह क्रमश: कांग्रेस और फिर समता पार्टी के टिकट सीवान और गोपालगंज लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे. वह बिहार विधान परिषद के सभापति भी रहे. 1952 में वह पहली बार राज्य विधानमंडल के सदस्य बने थे. 


रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अब्दुल गफूर ने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए लेकिन लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में शुरू हुए आंदोलन के चलते और इंदिरा गांधी की ओर से लगाए गए आपातकाल से पैदा हुई जटिल राजनीतिक स्थिति के दौरान उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा था.


 इमरजेंसी जब लागू हुई तो उस दौरान बिहार की कुछ घटनाओं के देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अब्दुल गफूर को सीएम पद से हटाकर जगन्नाथ मिश्रा को मुख्यमंत्री बना दिया था. अब्दुल गफूर की पुण्यतिथि पर उनके प्रशंसक उन्हें याद कर रहे हैं.


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