Abortion Laws in India: दुनियाभर में शादी शुदा या अविवाहित महिलाओं या कुंवारी लड़कियों के गर्भपात का मसला चर्चा का विषय रहा है. गर्भपात कानून (Abortion Laws) को लेकर बहस होती रही है. भारत में भी गर्भपात को लेकर पहले से कानून हैं. देश में गर्भपात का फैसला कई परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है. हालांकि अविवाहिता या फिर यौन शोषण की शिकार महिलाओं के लिए गर्भ धारण कर लेना न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी असहनीय है.


अभी हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने 25 वर्षीय अविवाहित महिला को 23 हफ्ते और 5 दिनों की गर्भावस्था को खत्म करने की मांग करने वाली याचिका पर अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था. कई बार विवाहित महिलाओं के साथ स्वास्थ्य (Woman Health) की विषम परिस्थितियां में गर्भपात की इजाजत दी जाती है. 


गर्भपात को लेकर क्या है देश में कानून?


देश में अबॉर्शन यानी अनचाहे गर्भ को लेकर पहले से कानून है. देश में इसके लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 है. इसके तहत 20 हफ्ते तक यानी करीब 5 महीने के गर्भ को गिराने की मंजूरी दी जाती है. कुछ विशेष परिस्थितियों में महिला को 24 हफ्ते यानी करीब 6 महीने के अनचाहे भ्रूण को हटाने की इजाजत दी जाती है. इसमें कोई ठोस कारण होना चाहिए और इसके लिए भी दो रजिस्टर्ड डॉक्टरों की मंजूरी होनी चाहिए. साल 2021 में इस कानून में संशोधन किया गया था.


किन-किन परिस्थितियों में गर्भपात की मंजूरी?


मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत कई परिस्थितियों में गर्भपात की मंजूरी दी जा सकती है-



  • अगर गर्भ 0-20 हफ्ते तक का है और कोई महिला मानसिक रूप से मां बनने के लिए तैयार नहीं है.

  • अगर गर्भ 20 से 24 हफ्ते के बीच है और मां-बच्चे के हेल्थ पर बुरा असर पड़ रहा हो. इस मामले में डॉक्टर की अनुमति जरूरी है.

  • 24 हफ्ते के बाद गर्भपात के लिए कोई खास और ठोस वजह का होना जरूरी है.

  • यौन उत्पीड़न का शिकार होने पर गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है.

  • कोई महिला अचानक विधवा हो जाए या फिर उसका डायवॉर्स हो जाए और जब वो बच्चे को जन्म देने की स्थिति में न हो.

  • गर्भ में पल रहे बच्चे में कोई गंभीर बीमारी का पता चलने पर गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है.

  • महिला की विकलांगता की स्थिति में भी इसकी इजाजत दी जा सकती है.

  • मां की जान को खतरा होने पर भी कोर्ट से गर्भपात की अनुमति मिल सकती है.


गर्भपात पर दिल्ली HC का हाल का फैसला क्या?


दिल्ली हाईकोर्ट ने 25 साल की अविवाहित महिला को 23 हफ्ते और 5 दिनों की गर्भावस्था को खत्म करने की मांग वाली याचिका पर अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा कि सहमति से गर्भवती होने वाली अविवाहित महिला साफ तौर से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत इस श्रेणी में नहीं है. याचिकाकर्ता की गर्भावस्था 18 जुलाई को ही 24 हफ्ता पूरे करेगी.


अविवाहित महिला को लेकर क्या है कानून?


पीड़ित महिला ने ये कहते दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि वह सहमति से गर्भवती हुई, लेकिन वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती क्योंकि वह अविवाहित है और उसके साथी ने उससे विवाह करने से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 का नियम 3बी भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें अविवाहित महिला को शामिल नहीं किया गया है. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स को 2021 में संशोधित किया गया है. कोर्ट का कहना है कि आपसी सहमति से प्रेंगनेंट होने वाली अविवाहित महिला उन श्रेणियों में शामिल नहीं है.


गर्भपात पर अमेरिका में क्या आया था SC का फैसला?


अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट (US Supreme Court) ने इसी साल जून के अंतिम हफ्ते में अपने 50 साल पुराने फैसले को पलट दिया था. यहां सुप्रीम अदालत ने गर्भपात के संवैधानिक अधिकार (Right to Abortion) को खत्म कर दिया था. ‘रो वर्सेज वेड’ में महिलाओं को गर्भपात (Abortion) का संवैधानिक अधिकार दिया गया था जिसे अमेरिका की सबसे बड़ी अदालत ने खत्म कर दिया. कोर्ट के इस फैसले का अमेरिका में भारी विरोध हुआ था. 50 साल पहले अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले में ये फैसला सुनाया था, उसे रो बनाम वेड मामला के तौर पर जाना जाता है.


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