एक था टाइगर, 83, काबुल एक्सप्रेस जैसी फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर कबीर खान शनिवार को एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया समिट में पहुंचे. उनके साथ डायरेक्टर आनंद एल राय और नागेश कुकुनूर भी थे. जब पूछा गया कि क्या डायरेक्टर कबीर खान यह जान गए हैं कि इतने ग्राम देशप्रेम,इतने ग्राम राष्ट्रवाद डाल दो तो फिल्म हिट हो जाएगी?
इस पर कबीर खान ने मुस्कुराते हुए कहा, जो भी मैं फिल्म बनाता हूं कि वो मेरी पर्सनालिटी का रिफ्लेक्शन है. हर एक फिल्ममेकर का रिफ्लेक्शन का होना चाहिए. आज के दौर में देशभक्ति और राष्ट्रवाद में थोड़ा फर्क आ गया है. जैसा कि मैंने 83 में दिखाने की कोशिश की है कि राष्ट्रवाद के लिए एक काउंटरपॉइंट चाहिए होता है. एक विलेन चाहिए होता है. जबकि देशभक्ति के लिए कोई काउंटर पॉइंट नहीं चाहिए, वहां किसी विलेन की जरूरत नहीं है. जो 83 में मैंने देखा, वही फिल्म में मैंने दिखाने की कोशिश की कि हमारा राष्ट्रवाद क्या है. उन्होंने आगे कहा, ये कोई फॉर्मूला नहीं है. कई फिल्में मेरी ऐसी हैं, जिनमें मैंने कई तिरंगे दिखाए लेकिन फिल्म नहीं चली. कुछ ऐसी हैं, जिनमें कम दिखाए हैं, वो चली हैं.
कबीर खान ने राष्ट्रवाद को लेकर गलत भाषा के इस्तेमाल पर कहा, आजकल सोशल मीडिया की वजह से लोगों को छूट मिल गई है. कई साल पहले वो ऐसा नहीं कर पाते थे. ये सब देखकर बुरा लगता है, सोशल मीडिया की नेगेटिविटी उसकी पॉजिटिव चीजों से ज्यादा हो गई हैं. मैं लड़ने नहीं निकला हूं, कहानी सुनाने निकला हूं. क्योंकि मेरा नाम खान भी है इसलिए गो टू पाकिस्तान ज्यादा कहा जाता है. एक बार पाकिस्तान गया था, तब वहां लश्कर ने कहा था कि गो बैक टू इंडिया. मैं ना इधर का रहा ना उधर का.
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