ABP Ideas of India Live: हरीश साल्वे ने बताया क्यों न्याय प्रणाली में लगता है समय, कहा- जजों की नियुक्तियों पर बात करने की जरूरत
ABP Ideas of India Summit 2022 Day 2 Live: आइडियाज ऑफ इंडिया समिट के दूसरे दिन यानी 26 मार्च को देश की दिग्गज राजनीतिक हस्तियों से लेकर मनोरंजन जगत व सामाजिक कार्यों से जुड़ी हस्तियां भाग ले रही हैं.
पूर्व सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया और जाने माने वकील हरीश साल्वे ABP Ideas of India के समिट में शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने कहा कि न्याय की प्रणाली में गंभीर रूप से सुधार की जरूरत है. उन्होंने कहा कि अगर कोई याचिका दाखिल करते हैं और उसमें 10 साल का समय लगता है तो आप नहीं कह सकते हैं कि सिस्टम सही से काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली का काम तब सही होता है, जब जल्द से जल्द न्याय को दिया जा सके.
राजीव कुमार ने कहा कि राज्य सरकारें अपनी सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों का कब निजीकरण करेंगी कहना मुश्किल है. लेकिन भारत सरकार ने एयर इंडिया का निजीकरण कर दिखाया है. उन्होंने कहा कि गवर्नेंस में सुधार हुआ है 400 योजना का पैसा सीधे नागरिकों के बैंक खाते में जा रहा है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि गुजरात, हिमाचल प्रदेश और अन्य सत्ताधारी दल शाषित पार्टी की राज्य सरकारें केंद्र सरकार को नीतियों को आगे बढ़ा रही हैं.
राजीव कुमार ने कहा कि जहां तक 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी का लक्ष्य हासिल कब तक होगा तो हमें ये याद रखना चाहिए कि दो सालों में कोरोना महामारी का दौर हमने देखा, वैश्विक कारणों ( रूस- यूक्रेन के युद्ध) के चलते कमोडिटी प्राइसेज कहां जाएंगी कहां तक जाएंगी कहना कठिन है. तेल की कीमतें कहां जाएंगी कहना कठिन है. राजीव कुमार ने जोर देकर कहा कि कोरोना महामारी का अगर चौथा संक्रमण नहीं आया तो 8 फीसदी का ग्रोथ रेट हम हासिल कर सकते हैं तो अगले आठ सालों से कम समय में अर्थव्यवस्था दोगुनी हो सकती है. 2030 से पहले भारत 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनमी का लक्ष्य हासिल कर सकता है.
मोंटेक सिंह आहलूवालिया का कहना है कि सरकार का जीएसटी का कदम शानदार कदम था और इसके चलते कुछ पहलुओं पर असर आया है लेकिन इसे लागू करना बेहतरीन फैसला था इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. जीएसटी के चलते शुरुआत में दिक्कतें आईं ये साफ था लेकिन अब इसका स्वरूप बहुत बेहतर हो चुका है और इसके क्रियान्वयन से देश को फायदा ही होगा.
योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन मोंटेक सिंह आहलूवालिया का मानना है कि साल 2024 तक 5 ट्रिलियन इकोनॉमी का लक्ष्य रखना नहीं सही नहीं है और इसे रिवाइज करना चाहिए. कोरोना महामारी ने देश की आर्थिक स्थिति पर असर डाला है और इससे कोई भी अछूता नहीं रहा. अब ये कहा जा रहा है कि इस टार्गेट को रिवाइज करके इसे 2030 तक 10 ट्रिलियन डॉलर का बनाया जा सकता है लेकिन इसके लिए आपको मैराथन प्रयास करने होंगे. हमें अगले 9 सालों तक 11 फीसदी की दर से जीडीपी ग्रोथ हासिल करनी होगी और ये सवाल अपने आप में बहुत बड़ा है कि क्या अगले 9 सालों तक हम 11 ट्रिलियन डॉलर तक के ग्रोथ रेट को हासिल कर सकते हैं? चीन भी ऐसा नहीं कर सका और 10 फीसदी से ज्यादा विकास दर हासिल कर नहीं पा रहा है.
नीति आयोग के चेयरमैन राजीव कुमार का कहना है कि हमें इस तथ्य को पहचानना होगा कि भारत एकमात्र ऐसी इकोनॉमी है जो इस 8 फीसदी की ग्रोथ दर को हासिल कर सकता है लेकिन इसके साथ लोगों के जीवन को भी आसान बनाना जरूरी है. सरकार के सामने चुनौतियां बहुत हैं और इसके लिए सरकार को ग्रीन एनर्जी से लेकर रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में, सस्टेनेबल ग्रोथ के साथ पर कैपिटा इनकम तक के मोर्चे पर काम करना होगा.
नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने कहा है कि अगर कोरोना महामारी का चौथा संक्रमण नहीं आया, 8 फीसदी के दर से भारतीय अर्थव्यवस्था विकास करती है जो हम पहले हासिल कर चुके हैं तो अगले आठ सालों से कम समय में अर्थव्यवस्था दोगुनी हो सकती है. ऐसे में 2030 से पहले भारत 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनमी का लक्ष्य हासिल कर सकता है.
एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर अब प्लानिंग कमीशन ऑफ इंडिया के डिप्टी चेयरमैन मोंटेक सिंह आहलूवालिया और नीति आयोग के वाइस चेयरमैन डॉ राजीव कुमार आ चुके हैं.
जसलीन रोयाल ने आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर ए आर रहमान के गीत 'लुका-छिपी बहुत हुई' गीत को गाया और बताया कि ये गीत उन्हें बहुत पसंद है. हालांकि वो पहले इस गीत को गाने से हिचक रही थीं पर उन्होंने इसे बखूबी निभाया.
सिंगल जसलीन रोयाल ने एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर अपने गीतों की कहानी बताई और बताया कि 'दिन शगना दा' उस समय पॉपुलर हुआ जब विराट कोहली और अनुष्का शर्मा की शादी में ये गीत बजा और ब्राइडल एंट्री के तौर पर ये गाना नेशनल चॉइस हो गया. इस कहानी को वो अक्सर बताती हैं और ये बहुत अजीब भी लगता है कि पहले गीत ने इतनी पॉपुलेरिटी हासिल नहीं की थी लेकिन विराट-अनुष्का की शादी के बाद ये गीत चर्चा में आया.
पैपॉन ने 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' गीत को आजादी के अमृत महोत्सव के मौके के लिए उपयुक्त माना और इसे एबीपी के आइडियाज ऑफ इंडिया समिट 2022 के मंच पर गाया. इसके अलावा उन्होंने पहले 'आज जाने की जिद ना करो' गाकर भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. आजकल के चलने वाले गीतों की तरह जैसे कच्चा बादाम और बसपन का प्यार जैसे गानों के लिए उन्होंने कहा कि मैंने ये सब सुना नहीं है, मेरा मानना है कि संगीत में जो अच्छा है वो रह जाएगा और जो बेकार है वो चला जाएगा.
पैपॉन ने कहा कि आजकल वो गुलजार साहब से मिलते हैं तो उनकी बात याद आती है जो उन्होंने कही थी कि लकीरें हैं रहने दो- किसी ने खींची थी ...हालांकि संगीत के साथ लकीरें भी मिटा दी जाती हैं और फासले खत्म कर दिए जाते हैं. ये कल्चर के बीच भेदभाव नहीं करता और सुरों के साथ फासले को मिटाने की ताकत म्यूजिक में है. उन्होंने एक कुमाउंनी गीत गाया जिसमें असम के गीत की भी झलक रही और अन्य पहाड़ी मिश्रण भी रहे.
मेरे पहले गाने के बाद मुझे 3 साल तक कोई दूसरा गाना नहीं मिला तो मुझे लगा कि शायद मेरी आवाज़ में बॉलीवुड वाली बात नहीं है लेकिन मुझे इससे कोई परेशानी नहीं थी क्योंकि मेरा कोई बॉलीवुड ड्रीम नहीं था. असम में मैं जब भी गाता था तो ये कहा जाता था कि हां उसका बेटा है तो गाएगा ही लेकिन मैं दिल्ली का शुक्रगुजार हूं कि यहां लोगों ने मेरी आवाज़ को पसंद किया और मैंने यहां बैंड के साथ भी काम किया.
पैपॉन ने बताया कि पैपॉन का उनका घर का नाम है, घरवाले उन्हें पैपॉन बुलाते थे. वो मूल रूप से असम के हैं और वहां एक गुड नेम और बैड नेम होता है. इसी तरह उनका पैपॉन घर का नाम है. उनका असली नाम अंगराग महंता है और इस नाम के जरिए उन्हें ज्यादा नहीं जाना जाता है और पैपॉन नाम से बुलाए जाते हैं. संगीत उन्हें विरासत में मिला और वो पहले संगीत के क्षेत्र से भागते थे क्योंकि कहते हैं ना कि स्टार चाइल्ड पर प्रैशर ज्यादा होता है, कुछ इसी तरह का होता था. मैं कहूंगा कि 30 साल की उम्र में मैंने संगीत से जुड़ाव किया है और अब मैं 32 साल का हूं तो कह सकते हैं कि बहुत देरी से शुरुआत की और सीख रहा हूं.
पैपॉन का कहना है कि उनकी आवाज़ कुदरती है और इसके लिए मैं प्रकृति को धन्यवाद देता हूं, उसमें मेरा योगदान नहीं है. हालांकि रियाज़ हमेशा जरूरी है और इसको लेकर गंभीर रहता हूं.
मोह-मोह के धागे जैसा सुरीला गीत गाने वाले सिंगर और कंपोजर पैपॉन इस समय एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर आ चुके हैं. उनसे सबसे पहले गीत की फरमाइश की गई जिसे उन्होंने पूरा किया.
चाहे हिजाब विवाद का मामला हो या सबरीमाला जैसे मुद्दे हों और कुछ ऐसे मामले भी रहे जो सुप्रीम कोर्ट के लिए भी बेहद कठिनाई लेकर आए लेकिन न्यायपालिका को इन सब से पार पाना ही होता है. लोगों के लिए न्याय पाने का दरवाजा कभी बंद नहीं होता पर इस प्रक्रिया में ज्यूडिशियरी के सामने कठिनाइयां भी आती हैं.
देश की पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद का कहना है कि कई बार ऐसा देखने को मिला है कि न्यायपालिका का कुछ मामलों में जरूरत से ज्यादा दखल हो जाता है जिन मामलों को प्रशासनिक स्तर पर सुलझाया जा सकता था. 2जी, कोल घोटाला जैसे मामलों पर कई बार ऐसी स्थिति आई कि लगा कि हर बार इस तरह के आदेशों की जरूरत नहीं थी पर इसको लेकर भी अलग-अलग मत रहे.
Ideas of India Live: सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पिछले 75 सालों में न्यायपालिका के सामने कई ऐसे मुद्दे आए जिनपर कहा जा सकता है कि इसके अस्तित्व की स्वतंत्रता पर सवाल उठे लेकिन न्यायपालिका ने कभी भी गलत फैसलों को नहीं दिया. न्याय के लिए एक ही रास्ता है कि वो सबूतों के आधार पर चलता है और इस बात को आधार मानता है कि वो किसी निर्दोष को दोषी न ठहराए.
एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया समिट 2022 के मंच पर अब सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया की सीनियर एडवोकेट और देश की पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद बोल रही हैं.
साल 2022 ऐसा साल है जो फिल्म इंडस्ट्री के लिए बहुत से बदलाव लेकर आ रहा है और इसके लिए ये कहना आसान नहीं है कि चुनौतियां नहीं आ रही हैं. इसके साथ ही आपको ये भी मानना होगा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे अमेजन पर फिल्में सक्सेसफुल हो रही हैं और लोगों को इसके जरिए अच्छा कंटेट देखने को मिल रहा है जो वो शायद कोविड की स्थितियों के चलते मिस कर सकते थे. हमें नई स्थितियों को समझना होगा और इसके अनुकूल खुद को ढालना होगा.
करण जौहर ने कहा कि ओटीटी के मंच पर फिल्में रिलीज करने की मुख्य वजह कोविड महामारी से आई परिस्थितियां रहीं और इसके चलते फिल्ममेकर्स को बहुत से फैसले बदलने पड़े. शेरशाह अगस्त में आई थी जब कोविड का असर बहुत ज्यादा था और इसके बावजूद फिल्म ने शानदार कमाई की जो दिखाती है कि थियेटर में ना आने के बावजूद फिल्मों के लिए एक स्थान है. अगर स्थितियां अनुकूल होती तो वो निश्चित तौर पर इसे थिएटर में रिलीज करते लेकिन ऐसा नहीं हो सका. शेरशाह निश्चित तौर पर बड़ी स्क्रीन के लिए बनाई गई पिक्चर थी लेकिन गहराइयां के साथ ऐसा नहीं था. ये ऐसी फिल्म थी जो घर में बैठकर, आराम से अपनों के साथ देखी जा सकती है.
करण जौहर ने कहा कि अब भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को बॉलीवुड कहा जाना बंद होना चाहिए और ये हॉलीवुड के बेस पर बनाई गई टर्म है जो बॉम्बे से जोड़कर बॉलीवुड हुई थी. अब इसका नाम इंडियन फिल्म इंडस्ट्री होना चाहिए क्योंकि इसमें तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ सिनेमा सबका समावेश है और इसका उदाहरण 'पुष्पा' जैसी फिल्मों से देखा जा सकता है. राजामौली साफ तौर पर इस समय सबसे बड़े भारतीय फिल्ममेकर हैं और कोई उनसे ये खिताब नहीं छीन सकता है.
करण जौहर ने कहा कि 'कुछ कुछ होता है' में उन्होंने उन सब फिल्मों के असर का इस्तेमाल किया जो वो बचपन से देखते आ रहे थे. उन्होंने उस फिल्म को दिल से बनाया और उसे बेहद प्यार से बनाया. यूथ को स्पेशली वो फिल्म बहुत पसंद आई और वो ऐसी फिल्म थी जिसके बारे में वो खुलकर कह सकते हैं कि वो उनकी बेहतरीन फिल्मों से एक है.
फिल्ममेकर करण जौहर ने कहा कि उन्हें खुद को KJO कहलाना पसंद नहीं है लेकिन ये शोबिज है जहां लोगों को आकर्षक नाम दिए जाते हैं और उनके साथ भी ऐसा ही हुआ. एक फिल्म की सफलता के बाद उन्हें ये नाम मिला था जो कि अब उनके साथ शामिल हो गया है और लोग इसको ही बोलना ज्यादा पसंद करते हैं.
फिल्म डायरेक्टर और फिल्ममेकर करन जौहर इस समय एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर बोल रहे हैं.
एल सुब्रमण्यन ने एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर उस पीस को प्रदर्शित किया जो उन्होंने आजादी के 40 साल पूरे होने के अवसर पर प्रस्तुत किया था.
वायलिन वादक एल सुब्रमण्यन ने कहा कि मैंने 6 साल की उम्र से वायलिन बजाना शुरू कर दिया था और तब से लेकर यात्रा जारी है और वो कई मौकों पर देश के लिए वादन कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि वो उस पीस को प्ले करेंगे जो आजादी के 40वें साल के मौके पर उन्होंने बजाया था हालांकि उसके लिए बड़ी संख्या में ऑर्केस्ट्रा की जरूरत होगी तो वो एक सोलो वर्जन उसका प्रस्तुत करेंगे.
गायिका ऊषा उत्थुप आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर दर्शको का अपार प्यार देखकर इमोशनल हो गईं और उन्होंने दर्शकों का आभार जताया. उन्होंने कहा कि वो अकेली ऐसी महिला सिंगर हैं जिसने मेल एक्टर (मिथुन चक्रवर्ती) के लिए भी गाना गाया है. शान पिक्चर में गाए उनके गाने 'शान से' के लिए ऐसी एक्टर नहीं मिल रही थी जो उनकी आवाज से मैच कर सके लेकिन वो अपनी आवाज की खासियत से कभी भी अलग नहीं हुईं.
एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर ऊषा उत्थुप पर लिखी गई किताब 'द क्वीन ऑफ इंडियन पॉप' की रिलीज भी की गई जिसमें रमेश सिप्पी, ऊषा उत्थुप के साथ एल सुब्रमण्यन ने भी शिरकत की.
फिल्म डायरेक्टर और प्रोड्यूसर रमेश सिप्पी का कहना है कि शोले जैसे फिल्में कई सालों में एक बार बनती हैं और इसके हर किरदार, हर गीत, हर सीन को कमाल कहा जाता है. ये फिल्म अपने आप में एक नायाब हीरा है और इसके लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं. इसकी ब्रिलियंट स्क्रिप्ट और लिरिक्स इसके लिए काफी शानदार साबित हुए. गब्बर का कैरेक्टर हो या जय-वीरू के किरदार में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की अदाकारी, सभी ने फिल्म में चार चांद लगाए थे. ये फिल्म एक मॉडल बन गई और इसके असिस्टेंट डायरेक्टर से लेकर हरेक वो शख्स जिसने फिल्म के लिए योगदान दिया वो इसके तारीफ के पात्र हैं. उन्होंने एक मजेदार किस्सा अमिताभ बच्चन के बारे में भी बताया कि लोगों ने उन्हें कहा कि इस 'लंबू' को तो मत लेना. हालांकि अपने किरदार को जिस तरह अमिताभ बच्चन ने निभाया उसने सबको जवाब दे दिया.
फिल्म डायरेक्टर और प्रोड्यूसर रमेश सिप्पी का कहना है कि शोले जैसे फिल्में कई सालों में एक बार बनती हैं और इसके हर किरदार, हर गीत, हर सीन को कमाल कहा जाता है. ये फिल्म अपने आप में एक नायाब हीरा है और इसके लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं.
एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर अब रमेश सिप्पी, ऊषा उत्थुप और एल सुब्रमण्यन आ चुके हैं.
नागेश कुकुनूर का कहना है मैंने 2006 से अपने यहां केबल भी कटवा दिया है और मैं किसी सोशल मीडिया पर भी नहीं हूं और सोशल मीडिया पर चलाई जा रही किसी भी निगेटिविटी से दूर हूं. मेरा मानना है कि फिल्में बनाने के लिए मेरा समाज से जुड़ना जरूरी है और मैं
इसके साथ न्याय कर सकता हूं.
अपने राष्ट्रवाद और देशप्रेम को लेकर कबीर खान ने कहा कि, जो भी मैं फिल्म बनाता हूं वो मेरी पर्सनैलिटी का रिफ्लेक्शन है. आजकल राष्ट्रवाद और देशभक्ति में फर्क आ गया है. राष्ट्रवाद के लिए आपको एक विलेन चाहिए होता है, लेकिन देशभक्ति के लिए कोई काउंटर प्वाइंट नहीं चाहिए होता है. इस बार मेरी वही कोशिश थी. मेरी कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिसमें मैंने बहुत सारे तिरंगे दिखाए लेकिन वो नहीं चलीं. कबीर खान ने आजकल राष्ट्रवाद को लेकर गलत भाषा के इस्तेमाल पर कहा कि, आजकल सोशल मीडिया की वजह से लोगों को छूट मिल गई है. कई साल पहले वो ऐसा नहीं कर पाते थे. ये सब देखकर बुरा लगता है, सोशल मीडिया की नेगेटिविटी उसकी पॉजिटिव चीजों से ज्यादा हो गई हैं. मैं लड़ने नहीं निकला हूं, कहानी सुनाने निकला हूं. क्योंकि मेरा नाम खान भी है इसलिए गो टू पाकिस्तान ज्यादा कहा जाता है. एक बार पाकिस्तान गया था, तब वहां लश्कर ने कहा था कि गो बैक टू इंडिया. मैं ना इधर का रहा ना उधर का.
अपने राष्ट्रवाद और देशप्रेम को लेकर कबीर खान ने कहा कि, जो भी मैं फिल्म बनाता हूं वो मेरी पर्सनैलिटी का रिफ्लेक्शन है. आजकल राष्ट्रवाद और देशभक्ति में फर्क आ गया है. राष्ट्रवाद के लिए आपको एक विलेन चाहिए होता है, लेकिन देशभक्ति के लिए कोई काउंटर प्वाइंट नहीं चाहिए होता है. इस बार मेरी वही कोशिश थी. मेरी कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिसमें मैंने बहुत सारे तिरंगे दिखाए लेकिन वो नहीं चलीं. कबीर खान ने आजकल राष्ट्रवाद को लेकर गलत भाषा के इस्तेमाल पर कहा कि, आजकल सोशल मीडिया की वजह से लोगों को छूट मिल गई है. कई साल पहले वो ऐसा नहीं कर पाते थे. ये सब देखकर बुरा लगता है, सोशल मीडिया की नेगेटिविटी उसकी पॉजिटिव चीजों से ज्यादा हो गई हैं. मैं लड़ने नहीं निकला हूं, कहानी सुनाने निकला हूं. क्योंकि मेरा नाम खान भी है इसलिए गो टू पाकिस्तान ज्यादा कहा जाता है. एक बार पाकिस्तान गया था, तब वहां लश्कर ने कहा था कि गो बैक टू इंडिया. मैं ना इधर का रहा ना उधर का.
आनंद एल राय का कहना है कि इंडस्ट्री में हर फिल्म के लिए जगह है लेकिन आजकल एक फिल्म के लिए 200-250 रिव्यूज होते हैं और इसके आधार पर आप अपनी फिल्म का भविष्य तय नहीं कर सकते हैं. आपकी फिल्म का ट्रीटमेंट क्या हो ये तय करना मेरा काम है और उस पसंद या नापसंद करना दर्शकों का काम है. लिहाजा फिल्म रिव्यूज के बेस पर मैं ज्यादा भावुक या परेशान नहीं होता और इसके जरिए अपनी काम के विषय या फिल्म के सबजेक्ट को दिशा नहीं देता, दर्शकों का प्यार हमें उनके बारे में सोचने के लिए मजबूर करता है और हम चाहते हैं कि हमें प्यार करने वाले लोगों के लिए हम काम कर सकें.
जब नागेश कुकुनूर से पूछा गया कि पिछले 10 साल के और आज के सिनेमा में क्या बदलाव आया है और क्या आज के दौर में फिल्म बनाना मुश्किल है तो उन्होंने कहा, आज के दौर में फिल्में बनाना ज्यादा आसान है क्योंकि ऑडियंस तक पहुंचने के कई माध्यम हैं. ओटीटी के कारण हमें अपनी बात दर्शकों तक पहुंचाने में मुश्किल नहीं होती. मैंने हमेशा ऐसी फिल्में बनाईं, जो मुझे समझ में आएं. इसकी फिक्र नहीं की कि ये कैसे दर्शकों तक पहुंचेगी. मैंने फिल्मों के बिजनेस को लेकर ज्यादा परवाह नहीं की, जो असल में काफी जरूरी है. इसलिए मेरे लिए ओटीटी एक वरदान है. नागेश ने कहा कि मैं अंग्रेजी में सोचता हूं लेकिन जो भी मैं करता हूं वो सब हिंदी में होता है. मैं डायलॉग राइटर्स के साथ भी काम करता हूं. मैं अंग्रेजी बोलता हूं बस यही अलग है. वैसे भी हम सब जीने के लिए झूठ बोलते हैं तो लोगों से झूठ बोलना कहां मुश्किल है.
आनंद एल राय का कहना है कि ऐसा नहीं है कि सभी स्टार्स के नखरे हैं और वो फिल्मों को सही से लेना नहीं चाहते हैं. स्टार स्टोरी स्क्रिप्ट नहीं सुनते और केवल नैरेशन सुनना चाहते हैं, ये भी एक धारणा है. बिना स्क्रिप्ट पढ़े कलाकार के लिए कैरेक्टर से जस्टिस करना संभव नहीं है और स्टार हों या नए कलाकार, सभी स्क्रिप्ट को पढ़ने के लिए उत्सुक रहते हैं.
कबीर खान का कहना है कि करियर के शुरुआती दिनों में मैंने अपनी फिल्मों के लिए संघर्ष किया है और मेरी पहचान डॉक्यूमेंट्री डायरेक्टर के रूप में हो गई थी, इसलिए भी मेरे लिए अपनी फिल्म के लिए निर्माता और एक्टर ढूंढना थोड़ा मुश्किल था. ऐसा इसलिए क्योंकि एक धारणा बन जाती है कि ये तो डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाता है और कमर्शियल फिल्मों के लिए न्याय नहीं कर सकता है. मेरे लिए काबुल एक्सप्रेस के समय जो स्थिति थी वो आज नहीं है क्योंकि अब स्थिति बदल गई है. कुछ समय के बाद जो सफलता मिलती है वो आपकी पहचान बनाने में मददगार साबित होती है.
फिल्म डायरेक्टर नागेश कुकुनूर का कहना है कि ओटीटी माध्यम से फिल्मों को दिखाना आज आसान हुआ है और मेरा अप्रोच हमेशा अलग रहा है. मैं स्टार के लिए वेट करने में यकीन नहीं रखता और मेरे लिए जो शख्स मेरी फिल्म के साथ न्याय कर सकता है वही सही चॉइस है. मैंने अक्षय कुमार और जॉन अब्राहम के साथ काम किया है और उनके बारे में सुना गया था कि वो हमेशा समय से सेट पर आते हैं, इसीलिए मैंने उनको अप्रोच किया और पाया कि वो वाकई अपने काम को लेकर बेहद प्रोफेशनल हैं. मेरे लिए जरूरी है कि मैं अपनी फिल्म को समय से पूरा कर सकूं और इसके लिए मैं सिर्फ स्टार मैटिरियल के बारे में नहीं सोचता.
डायरेक्टर आनंद एल राय ने कहा कि वो अब ऐसे विषयों पर भी फिल्म दिखाने का साहस कर सकते हैं जो पहले समाज में टैबू माने जाते थे. अब उन विषयों के लिए दर्शक जागरुक हो रहे हैं जो पहले दिखाने में कठिन माने जाते थे. आज का दर्शक अधिक जागरुक है और अधिक ओपन है, ज्यादा भावुक भी है और ज्यादा प्रैक्टिकल भी है. कुल मिलाकर आज फिल्मों के लिए विषय ढूंढने में डर नहीं होता है.
फिल्म डायरेक्टर कबीर खान ने कहा कि निश्चित तौर पर हम समाज से बहुत कुछ सीखते हैं और इसे दिखाने के तरीके पर हमारा मत अलग होता है. हालांकि मैं समाज से कहानियां उठाता हूं लेकिन ये देखना भी एक डायरेक्टर का काम है कि वो कैसे रोचक तरीके से उसे प्रेजेंट कर सकता है.
अब एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया समिट 2022 के मंच पर फिल्म डायरेक्टर कबीर खान, आनंद एल राय और नागेश कुकुनूर मौजूद हैं और अपने विचारों को साझा करेंगे.
रितेश अग्रवाल ने बताया कि हमारे 40 फीसदी ग्राहक ऐसे हैं जो कारोबार के लिए किसी शहर के लिए आते हैं और रात का आराम ओयो रूम में करके अगले दिन वापस चले जाते हैं. ऐसे लोग पहले सुबह सामान खरीदने के बाद रात को ट्रेन का सफर करके वापस जाते थे लेकिन इस स्थिति में अब बदलाव आया है और लोग रात को आराम करने के लिए ओयो रूम्स का इस्तेमाल करते हैं और दिन में खरीदारी कर लेते हैं. इस तरह देखा जाए तो उनके लिए कई तरह से बदलाव आया है जो अच्छा है.
ओयो के रितेश अग्रवाल ने कहा कि ओयो के इस्तेमाल का तरीका बदल गया है और अब घरों के कई काम के लिए भी जब जगह की जरूरत होती है तो लोग ओयो रूम्स का यूज करते हैं जैसे कि गृह प्रवेश, शादी या घरों में पेंटिंग का काम हो तो इसके लिए भी ओयो के रूम इस्तेमाल किए जाते हैं. यानी केवल इसका इस्तेमाल वैसा नहीं होता जैसा कि कुछ लोगों को लगता है.
ओयो के फाउंडर रितेश अग्रवाल का कहना है कि कोविडकाल के शुरू होने के समय हमने विदेश में भी कारोबार शुरू कर दिया था और इसके एक्सपेंशन पर हम काम कर रहे थे. उन्होंने 2012 में कंपनी शुरू की और कम से कम संसाधनों के साथ काम किया है. ऐसा भी समय आया है जब मैंने हफ्ते के आधार पर सर्वाइवल का चैलेंज फेस किया है.
ओयो के फाउंडर और ग्रुप सीईओ रितेश अग्रवाल का कहना है कि ओयो रूम्स की सर्विसेज इस आधार पर तय की गईं कि लोगों को जरूरत के समय होटल में कमरा मिल सके और मेरे सामने आए डेटा के मुताबिक ओयो रूम्स की बुकिंग मंदिरों वाले शहरों में ज्यादा रही है. रितेश अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने 19 साल की उम्र में ओयो रूम्स बिजनेस को शुरू किया था. मेरी शुरुआत ओडिशा के रायगड़ से हुई है जहां का नाम भी कई लोगों ने नहीं सुना था. मुझे पता नही था कि ये कारोबार करना कितना मुश्किल था वर्ना मैं ये काम ही नहीं शुरू करता. मैंने अपने कारोबार को शुरू करने के दौरान देखा कि देश में कारोबार करना कितना मुश्किल है. 2013 में मैं भारत आया और इस कारोबार को शुरू किया.
ओयो के संस्थापक और ग्रुप सीईओ रितेश अग्रवाल अब एबीपी के आईडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर आ चुके हैं.
चाहे महिला हो या पुरुष या कोई और सभी के लिए सेल्फ केयर बेहद जरूरी है और इसके लिए सभी को समय निकालना चाहिए. चाहे हम जॉब में हों या खुद कोई व्यवसाय कर रहे हों, या गृहिणी हों या स्टूडेंट हमें सबसे पहले खुद की शारीरिक और मानसिक हेल्थ के लिए काम करना चाहिए. अगर हम खुद ठीक होंगे, तभी दूसरे की मदद कर पाएंगे.
ABP Ideas of India Live: नीरजा बिरला ने कहा कि अगर लोग मेंटल हेल्थ से जुड़े इश्यू पर बात करना चाहते हैं तो वो उनसे संपर्क कर सकते हैं. 180-120-820050 पर कॉल करके मेंटल हेल्थ के इश्यू से जुड़ी बातों पर मदद हासिल कर सकते हैं. ये बहुत ही गंभीर मुद्दा है जिस पर देश में अभी भी जागरुकता की कमी है और इसे बढ़ाना जरूरी है.
नीरजा बिरला ने कहा कि महिलाओं के लिए अनियमित पीरियड्स भी मेंटल हेल्थ का एक कारण होता है. बिरला ने कहा कि हमें पुरुषों को भी पीरियड्स के बारे में जानकारी देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि हमारे देश में मेंटल हेल्थ केयर एक्ट है. मार्च 27, 2017 को लोकसभा ने मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 पारित किया था. इसमें मानसिक रूप से अस्वस्थ्य लोगों के अधिकारों की बात को नहीं रखा गया है.
नीरजा बिरला ने मेंटल हेल्थ पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि हमें मेंटल हेल्थ को भी उतना ही सीरियस लेना चाहिये जितना हम बुखार या अन्य किसी बीमारी को लेते हैं. उन्होंने कहा कि हम ऐसी दुनिया बनाने की कोशिश कर रहे हैं जहां हम मेंटल हेल्थ को फिजिकल हेल्थ जितना ही सीरियस ले सकें और इलाज के लिए अस्पताल तक पहुंच सकें.
छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल का कहना है कि अब गुजरात मॉडल की बात नहीं हो रही है. ये पहले भी प्रचार का हिस्सा था और आज भी येही हो रहा है. अब इस समय छत्तीसगढ़ मॉडल की बात हो रही है और येही हमारे काम की तारीफ के रूप में देखा जाना चाहिए.
भूपेश बघेल ने कहा कि देश में इस समय महंगाई चरम पर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम से देश की अर्थव्यवस्था संभल नहीं रही है. ये सरकार मिलकर सभी कुछ बेच दे रही है, एयर इंडिया को बेच दिया, कई बड़ी कंपनियों को बेच दिया गया है, सारे एयरपोर्ट को बेचा जा रहा है. सारी संपदा कुछ खास हाथों में जा रही है और फिर भी देश की इकोनॉमी सुधर नहीं रही है. आप देखिए कि कैसे तेल और गैस के दाम बेतहाशा बढ़ते जा रहे हैं. पांच राज्यों के चुनावों के बाद डीजल और पेट्रोल के दाम किस तरह बढ़ रहे हैं, ये सब देख रहे हैं पर कोई बोल ही नहीं रहा है. लोगों को बरगलाया जा रहा है.
भूपेश बघेल ने कहा कि देश में गाय की बात केवल वोटों को हासिल करने के लिए की जा रही थी, गाय की बात हर कोई करने को तैयार है पर गायों के वास्तविक कल्याण के लिए कुठ ठोस कदम नहीं हो रहे थे. हमने छत्तीसगढ़ के अंदर ये व्यवस्था की जिससे गायों को खुला और सड़कों पर ऐसे ही ना छोड़ा जाए. पुराने व्यंगकार हरिशंकर परसाई जी ने कहा था कि दुनियाभर में गाय दूध देती है और सिर्फ भारत ऐसा देश है जहां गाय वोट भी देती है तो साफ है कि देश में इस समय गायों का इस्तेमाल राजनीति के लिए हो रहा है. हमने गोबर खरीदने की योजना शुरू की जिससे लोग अपने पशुओं को ऐसे ही खुला छोड़ने की सोच पर लगाम लगा सकें. गोबर से अब पेंट बनाने के लिए भी योजना चालू की जा रही है जो जल्द ही पूरी होगी. राज्य की जनता गोधन योजना से बहुत बड़े फायदे ले रही है और इस योजना के साथ जुड़ रही है.
एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर इस समय छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अगले वक्ता हैं और कई मुद्दों पर अपने विचार रख रहे हैं.
लेखक सुधीर कुलकर्णी का कहना है कि पुरानी बातों के आधार पर आज लोगों के साथ जो बर्ताव हो रहा है देश के मुखिया को उसके खिलाफ बोलना चाहिए और उसकी निंदा करनी चाहिए पर अभी तक उन्होंने ऐसा नहीं किया है.
लेखक सुधींद्र कुलकर्णी का कहना है कि पुरानी बातों को ध्यान में रखकर आज के लोगों को निशाना बनाना गलत है जैसा कि आजकल के समय में हो रहा है. उदाहरण के लिए आप 'द कश्मीर फाइल्स' को ले सकते हैं जिसका इस्तेमाल आज के मुस्लिमों को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है. कंगना रणाऊत जैसी नामचीन हस्ती सरकार के संरक्षण में ऐसी बातें कर रही हैं जो गलत हैं और उन्हें कोई डर नहीं है. वो लोगों के लिए जानीमानी हस्ती हैं और अगर वो कुछ कहती हैं तो तो इसका असर पड़ता है.
प्रोफेसर मकरंद आर परांजपे का कहना है कि कई इतिहासकारों ने पूरा सच इसलिए नहीं लिखा क्योंकि देश के साथ जो बर्बरता हुई उसके बारे में उन्हें लिखने नहीं दिया गया. आप किसी भी म्यूजियम में जाएं या भारतीय कलाकृतियों के संग्रहालय में जाएं आपको वो क्षतिग्रस्त मिलेंगी जो प्राचीन समय में हुई तबाही के बारे में बताती हैं. आपको बाबरी मस्जिद के बारे में हजारों किताबें मिल जाएंगी लेकिन दूसरे पक्ष के बारे में आपको किताबों की पहुंच नहीं है. भाषा, धर्म, क्षेत्र, खानपान के आधार पर भारत को बांटने की मंशा रखने वालों के लिए कई तथ्य ऐसे हैं जो आंख खोलने वाले हैं. आप भारत के इतिहास को मुस्लिम बनाम हिंदू की लड़ाई पर आधारित रखकर नहीं देख सकते हैं. क्या आप जानते हैं कि अकबर और महाराणा प्रताप की लड़ाई में अकबर का सेनानायक एक राजपूत था और महाराणा प्रताप की सेना में कई मुस्लिम भी थे. कश्मीर में जो हिंदू पवित्र स्थल तोड़े गए उनकी बात कौन करता है.
प्रोफेसर मकरंद आर परांजपे ने कहा कि आपको समझना चाहिए कि इतिहास केवल बीती बातों के बारे में बताना नहीं है, ये वर्तमान पर भी असर डालता है. जिन लोगों ने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया आज वो भुलाए जा रहे हैं. जिन लोगों ने बलिदान किया वो क्यों कहानियों में नहीं आ रहे हैं. आजादी की लड़ाई को केवल महात्मा गांधी और नेहरू से जोड़कर देखना गलत है. इसमें कई नायकों और नायिकाओं का योगदान है और उनके बारे में हमें नहीं भूलना चाहिए. आजादी की लड़ाई में भगत सिंह, लाला लाजपत राय का जिक्र है लेकिन हजारों नायक नायिकाएं ऐसे रहे हैं जिनका जिक्र इतिहास में ज्यादा नहीं है. देश की आजादी की लड़ाई रामायण की तरह एक नायक केंद्रित नहीं है बल्कि ये महाभारत की तरह एक महाकाव्य की तरह विशाल है. लोगों के पास इसे समझने के लिए केवल इतिहास पढ़ना ही काफी नहीं है क्योंकि देश की इतिहास की कई किताबों में समान तथ्य मिलते हैं.
सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि हमें इतिहास को अवश्य पढ़ना चाहिए और अगर हम ये नहीं पढ़ेंगे तो हम चोट के प्रति संवेदनशील हो जाएंगे. हमें जानना चाहिए कि देश को धर्म और जाति के भाव पर बांटने की राजनीति बंद होनी चाहिए. जहां हमें अपने पड़ोसियों के मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है वहीं अगर हम देश में आंतरिक मतभेदों में उलझ जाएंगे तो ये दोहरा नुकसान पहुंचाएगा. हमें समझना होगा कि इतिहास के तथ्यों को ऐसे ही सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है. हम कह सकते हैं कि बाबर एक आक्रमणकारी था लेकिन बहादुर शाह जफर उतना ही भारतीय था जितना रानी लक्ष्मी बाई भारतीय थीं. इसके पीछे का कारण है कि बहादुर शाह जफर ने भी औरों की तरह देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया.
देश में कुछ राजनीतिज्ञ अभी भी अतीत की सीख को लेकर चल रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कुछ कथनों को यहां मैं बताना चाहता हूं जिनके बारे में आजकल कई नेता पढ़ते नहीं हैं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन ऐसी चीज है जिसे सभी को जानना चाहिए. दुख की बात है कि आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के बारे में पार्टियां बात तो करती हैं पर उन्हें सही से समझती नहीं हैं. बीजेपी के कुछ नेताओं के लिए भी ये मैं कह सकता हूं. देश में इस समय बहुत बड़े बड़े बदलाव हो रहे हैं और देश नए इतिहास का साक्षी बन रहा है.
लेखक और सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता सुधींद्र कुलकर्णी और प्रोफेसर मकरंद आर परांजपे हैं एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर अगले वक्ता हैं.
शशि थरूर ने आगे कहा, संविधान सभा में भी इस बात पर बहस चली थी कि क्या समूहों को सशक्त करना चाहिए जैसे अंग्रेजों ने मुस्लिमों, हिंदुओं के एक खास वर्ग के साथ किया. या फिर हर एक भारतीय को सशक्त करना चाहिए. हमारे देश में हर इंसान के लिए समान मौके हैं. वह देश में कहीं भी किसी भी पोजिशन पर पहुंच सकते हैं. इसी के साथ स्वतंत्रता की धारणा भी बनी. हर कोई राजनीति पर बात कर सकता है और संविधान के जरिए कानून यह गारंटी देता है कि हर किसी को सहमत और असहमत होने का अधिकार है. किसी सरकार को वोट या फिर उसके खिलाफ वोट देने का अधिकार है. सरकार की सार्वजनिक तौर पर आलोचना करने का अधिकार है और समर्थन करने का भी. हर किसी के पास समान अधिकार हैं. हमारा संविधान बताता है कि भारत क्या है.
जब हम बात स्वतंत्रता, संस्थागत आजादी और भारत के विचार की बात करते हैं तो इनको एक साथ आप कैसे देखते हैं? इस पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, ये भारत के मन की बात है. हमारी आजादी का संग्राम विचारधारा, कम्युनिस्ट बनाम कैपिटलिस्ट या फिर ज्योग्राफी पर निर्भर नहीं था. यह एक मूलभूत सिद्धांत पर निर्भर था कि क्या धर्म आपकी राष्ट्रीयता पर निर्धारित किया जा सकता है? जो ये समझते थे कि उनकी पहचान उनके धर्म से है, वो पाकिस्तान चले गए. ये पाकिस्तान का आइडिया था. जो ये समझते थे कि हम एक विविधता भरे बहुलवादी समाज का हिस्सा बनेंगे, उन्होंने भारत का निर्माण किया. मैं मानता हूं कि मौलिक विभाजन पहचान आधारित राष्ट्रवाद, जो पाकिस्तान है, उसका इस्लाम में यकीन है और भारत में यह संविधान और संस्थागत पर आधारित है. यह हमारा राष्ट्रवाद है. जब हम कानून की बात करते हैं तो यह हमारे राष्ट्रवाद का आधार है.
कांग्रेस नेता शशि थरूर और जगदीप धनखड़ के बीच कुछ मुद्दों पर तेज बहस होती हुई दिखी जब शशि थरूर ने कहा कि ममता बनर्जी एक प्रभावशाली नेता हैं और उन्होंने राजनीति में अपना मुकाम खुद के बल पर बनाया है. वहीं जगदीप धनखड़ ने कहा कि ममता बनर्जी मेरी छोटी बहन की तरह हैं और 30 साल पहले उन्हें चोट लगने पर मैं उनसे मिलने पश्चिम बंगाल गया था. हालांकि कई बार रिश्तों को सरल और सहज बनाए रखने के लिए छोटी बहन को भी आईना दिखाना जरूरी है. पश्चिम बंगाल में हुई चुनावी हिंसा से कोई इंकार नहीं कर सकता है. चुनावों के समय जो हुआ वो किसी से छुपा नहीं है. मुझे ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि पश्चिम बंगाल में कोई मीडिया नहीं है. वहां की सीएम से कोई सवाल नहीं पूछ सकता है, सीनियर एडिटर्स को भी ये अधिकार नहीं है कि वो कोई सवाल कर सकें. मीडिया अपना काम नहीं कर पा रहा है और मैं मीडिया से हाथ जोड़कर आग्रह करता हूं कि वो ग्राउंड रियलटी को दिखाएं और ये जमीनी हकीकत इतनी कड़वी है कि गवर्नर होने के नाते मुझ से कहा जाना चाहिए कि मैं अपना काम क्यों नहीं कर पा रहा हूं और राज्य सरकार से सवाल कर रहा हूं या रिपोर्ट क्यों नहीं दे पा रहा हूं.
धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति को लेकर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने स्वामी विवेकानंद का जिक्र करते हुए कहा कि, सभी धर्म एक ही हैं. किसी धर्म में ये नहीं सिखाया जाता कि आप दूसरे का अपमान करें, उसके विचारों का मजाक उड़ाएं या किसी और कारण से उसे नीचा दिखाएं. जहां तक धर्म को लेकर शर्मिंदा होने की बात है तो ऐसा बिलकुल नहीं है- मैंने खुद एक किताब लिखी है कि Why I am a Hindu और इसमें मैंने वो सब कुछ लिखा है जिसके जरिए मुझे अपने धर्म पर गर्व है. जहां तक देश में सवाल पूछने का अध्कार की बात है वो सबके पास है और सवाल पूछना किसी तरह से गलत नहीं है.
आइडियाज ऑफ इंडिया समिट में शामिल हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि हम अपने इतिहास के सबसे नाजुक मोड़ से गुजर रहे हैं. जब भी मैं पश्चिम बंगाल के किसी भी हिस्से में जाता हूं तो वहां कोई ना कोई होता है जिसने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. आज देश के सामने जो चुनौतियां हैं, वो काफी बड़ी हैं.
जगदीप धनखड़ ने कहा कि हमें अपने धर्म पर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए और इसके लिए गर्व करना चाहिए. वहीं देश की संस्थाओं के लिए ये जरूरी है कि वो संविधान से चलें और संविधान के मुताबिक ही कार्य करें ना कि अपने मन के हिसाब से चलें. आजादी की आधारशिला रखने वाले कितने लोगों को देश आज सम्मान दे रहा है और याद कर रहा है? इस पर हमें सोचना चाहिए.
पश्चिम बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ का कहना है कि देश में इस समय आजादी का अमृत महोत्सव चलाया जा रहा है लेकिन इसके लिए हमने कितने बलिदान दिए हैं, इसका भान कितने लोगों को हैं. बहुत कम..इस समय मैं खुद को परेशानी वाले मोड़ पर खड़ा पाता हूं क्योंकि पश्चिम बंगाल में किसी हद तक ऐसा हो रहा है जो समभाव के भाव को दिखाने वाला नहीं कहा जा सकता है. कोविड-19 के समय में भी देश में कई ऐसे पल आए जब लोगों को एकसमान सुविधाएं नहीं मिलीं. हमारे सामने इस समय बड़ी चुनौतियां हैं और इसके लिए
हमें पहले से ज्यादा लगन से काम करना होगा.
कांग्रेस नेता शशि थरूर का कहना है कि भारत का सिविलाइजेशन कई सालों में विभिन्न फिलॉसफी से मिलकर बना है और यहां कई मतों के लोग रहते हैं और ये इसकी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है. मैं भी अपने धर्म पर उतना ही गर्व करता हूं जितना गवर्नर जगदीप धनखड़ साहब को है. मुझे अपने धर्म के गर्व पर कोई शंका नहीं है लेकिन इसे दूसरे के विचारों को गलत या बेकार बताने का आधार नहीं बनाया जा सकता है.
कांग्रेस नेता शशि थरूर का कहना है कि देश के सभी लोगों का दिल एक है, भले ही हम कई मुद्दों पर बंटे हुए हैं लेकिन जब राष्ट्र की बात आती है तो सभी एक हैं. हमारे देश में कई धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं, विभिन्न आइडियोलॉजी के साथ एक साथ रहते हैं ये हमारा राष्ट्रवाद है. जहां तक राष्ट्रीयता की बात है वो किसी एक के लिए ही अहम नहीं है, वो सभी के लिए जरूरी है. देश को बांटना किसी भी तरह से राष्ट्रवाद नहीं हो सकता है.
एबीपी आइडियाज ऑफ इंडिया के मंच पर आज सबसे पहले लोकसभा के मेंबर और कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर और उनके साथ पश्चिम बंगाल के गवर्नर जगदीप धनखड़ बोल रहे हैं.
बैकग्राउंड
ABP Ideas of India Summit 2022 Day 2 Live: आइडियाज ऑफ इंडिया समिट का आज दूसरा दिन है और इसमें कल के कार्यक्रम को आज आगे बढ़ाया जाएगा. मुंबई में आयोजित हो रहे इस कार्यक्रम में आज देश की दिग्गज हस्तियां शामिल हो रही हैं जिनमें शशि थरूर, जगदीप धनखड़, भूपेश बघेल, नीरज बिरला, कबीर खान, नागेश कुकुनूर, आनंद एल राय, ऊषा उत्थुप रमेश सिप्पी, एल सुब्रमण्यम, करन जौहर पैपॉन, जसलीन रोयाल, मोंटेक सिंह आहलूवालिया, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, फरीद जकारिया, और एक्टर आमिर खान हिस्सा लेंगे.
आप एबीपी न्यूज के कार्यक्रम आइडियाज ऑफ इंडिया को एबीपी लाइव डॉटकॉम पर देख सकते हैं.
कांग्रेस नेता शशि थरूर का कहना है कि भारत का सिविलाइजेशन कई सालों में विभिन्न फिलॉसफी से मिलकर बना है और यहां कई मतों के लोग रहते हैं और ये इसकी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है. मैं भी अपने धर्म पर उतना ही गर्व करता हूं जितना गवर्नर जगदीप धनखड़ साहब को है. मुझे अपने धर्म के गर्व पर कोई शंका नहीं है लेकिन इसे दूसरे के विचारों को गलत या बेकार बताने का आधार नहीं बनाया जा सकता है.
आइडियाज ऑफ इंडिया समिट में शामिल हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि हम अपने इतिहास के सबसे नाजुक मोड़ से गुजर रहे हैं. जब भी मैं पश्चिम बंगाल के किसी भी हिस्से में जाता हूं तो वहां कोई ना कोई होता है जिसने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी. आज देश के सामने जो चुनौतियां हैं, वो काफी बड़ी हैं.
छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि देश में गाय की बात केवल वोटों को हासिल करने के लिए की जा रही थी, गाय की बात हर कोई करने को तैयार है पर गायों के वास्तविक कल्याण के लिए कुठ ठोस कदम नहीं हो रहे थे. हमने छत्तीसगढ़ के अंदर ये व्यवस्था की जिससे गायों को खुला और सड़कों पर ऐसे ही ना छोड़ा जाए. पुराने व्यंगकार हरिशंकर परसाई जी ने कहा था कि दुनियाभर में गाय दूध देती है और सिर्फ भारत ऐसा देश है जहां गाय वोट भी देती है तो साफ है कि यहां गाय का इस्तेमाल किसलिए हो रहा है.
लेखक और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता सुधींद्र कुलकर्णी ने कहा कि हमें इतिहास को अवश्य पढ़ना चाहिए और अगर हम ये नहीं पढ़ेंगे तो हम चोट के प्रति संवेदनशील हो जाएंगे. हमें जानना चाहिए कि देश को धर्म और जाति के भाव पर बांटने की राजनीति बंद होनी चाहिए. जहां हमें अपने पड़ोसियों के मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है वहीं अगर हम देश में आंतरिक मतभेदों में उलझ जाएंगे तो ये दोहरा नुकसान पहुंचाएगा. हमें समझना होगा कि इतिहास के तथ्यों को ऐसे ही सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है. हम कह सकते हैं कि बाबर एक आक्रमणकारी था लेकिन बहादुर शाह जफर उतना ही भारतीय था जितना रानी लक्ष्मी बाई भारतीय थीं. इसके पीछे का कारण है कि बहादुर शाह जफर ने भी औरों की तरह देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया.
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