नई दिल्ली: कल यानि 10 दिसंबर को होने वाले समारोह में नोबेल पुरस्कार विजेताओं को राशि और मेडल से सम्मानित किया जाएगा. भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को भी इस बार नोबेल पुरस्कार दिया गया है. वैश्विक गरीबी को कम करने और प्रयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए अभिजीत बनर्जी समेत तीन लोगों को अर्थशास्त्र का नोबेल मिला है. सम्मानित किए जाने से पहले एबीपी न्यूज़ से उन्होंने खास बातचीत की है. इस दौरान बनर्जी ने मौजूदा भारतीय अर्थव्यवस्था और जेएनयू विवाद पर खुलकर बात रखी है.
अभिजीत बनर्जी को गरीबी पर अध्यन के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. अर्थशास्त्र का ये नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से अभिजीत बनर्जी के साथ एस्थर डुफ्लो और माइकल क्रेमर को मिला है. एस्थर डुफ्लो अभिजीत बनर्जी की पत्नी हैं.
इस सवाल पर कि अभिजीत बनर्जी ने बार-बार यह कहा है कि उनके करियर में जेएनयू का बड़ा रोल रहा है. जेएनयू के कुछ छात्रों पर एंटी नेशनल होने के आरोप लग रहे हैं, अभिजीत बनर्जी ने कहा, ''मुझे लगता है कि ये बच्चे हैं. इनके बारे में एक तरह का ऑइडियोलिज्म है और उस ऑइडियोलिज्म को मानना चाहिए. ये लोग जिस वजह से और जिस सोच में काम कर रहे हैं उसको समझना चाहिए. ऐसा नहीं है कि इनका कोई हिस्सा इंडिया से बाहर से कोई शक्ति लाएगा. हम लोग ये भी सोचते हैं कि वे लोग नेशनलिस्ट हैं. उनके नेशनलिज्म पर थोड़ा सा भरोसा रखना चाहिए.''
हम लोगों ने अपने हिसाब से देश को प्यार करना सीखा है- अभिजीत बनर्जी
अभिजीत बनर्जी ने कहा कि जैसे ही उन छात्रों की उम्र बढ़ेगी वो लोग समझ जाएंगे. हम लोग भी ऐसे ही थे. हमारी भी कोई खास समझ नहीं थी. उन्होंने कहा कि ''हम लोगों ने अपने हिसाब से देश को प्यार करना सीखा है. अगर इसे नहीं समझा गया तो ये लोग देश से और दूर चले जाएंगे. एक तरह से इनको साथ लेकर चलना बहुत जरूरी है. ये लोग देश को बहुत प्यार करते हैं.'' वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का उदाहरण देते हुए बनर्जी ने कहा, ''जैसे हमारे साथ सीतारमण थी वैसे ही इनमें से कई लोग भविष्य में नेता होंगे. योगेंद्र यादव भी हमारे साथ थे.''
मौजूदा अर्थव्यवस्था को लेकर इस सवाल पर कि क्या डिमांड का क्राइसिस इतना बढ़ सकता है कि देश के सामने चुनौती बन सकता है? बनर्जी ने कहा, ''हो सकता है क्योंकि हम लोग तो देखे हैं कि जब साल 2008 में एक क्राइसिस हुआ वो एक तरह से डिमांड से ही हुआ था. उसमें काफी इमरजेंसी एक्शन लेना पड़ा था. अमेरिका में भी एक्शन लेना पड़ा. उसके बाद भी अर्थव्यवस्था को ठीक करने में पूरा पांच साल लगा.''
निर्मला सीतारमण को दी ये सलाह
निर्मला सीतारमण को सलाह देते हुए अभिजीत बनर्जी ने कहा, ''अभी डिमांड पर सोचना चाहिए, जिनके पास पैसा नहीं है उनके पास पैसा पहुंचना जरूरी है. वे लोग उसको अभी-अभी खर्च करेंगे. यही सलाह है.''
कौन हैं अभिजीत बनर्जी?
अभिजीत बनर्जी का जन्म मुंबई में हुआ, उनके माता-पिता भी अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे. उनके पिता कोलकाता के मशहूर प्रेसिडेंसी कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख थे. अभिजीत बनर्जी ने कोलकाता यूनिवर्सिटी में शुरुआती पढ़ाई की. इसके बाद अर्थशास्त्र में एमए के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय आ गए. इसके बाद उन्होंने हावर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में साल 1988 में पीएचडी की.
58 साल के अभिजीत बनर्जी फिलहाल अमेरिका की मेसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. बता दें कि 21 साल बाद अर्थशास्त्र का नोबल किसी भारतीय मूल के अर्थशास्त्री को मिला है, इससे पहले 1998 में प्रोफेसर अमर्त्य सेन को ये सम्मान मिला था.
अभिजीत और इनकी पत्नी डुफलो, अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी ऐक्शन लैब के को-फाउंडर भी हैं. बनर्जी संयुक्तराष्ट्र महासचिव की '2015 के बाद के विकासत्मक एजेंडा पर विद्वान व्यक्तियों की उच्च स्तरीय समिति' के सदस्य भी रह चुके हैं.
लगातार अर्थशास्त्र पर लेख लिखने वाले अभिजीत बनर्जी ने चार किताबें भी लिखी हैं. उनकी किताब पुअर इकनॉमिक्स को गोल्डमैन सैक्स बिजनेस बुक ऑफ द ईयर का खिताब भी मिला. अभिजीत ने दो डॉक्यूमेंटरी फिल्मों का डायरेक्शन भी किया है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भी अपनी सेवाएं दी हैं.
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