नई दिल्ली:  भारत चीन के रिश्तों में तनाव के बीच जर्मनी के हैम्बर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की. सूत्र बता रहे हैं कि मोदी ने सिक्किम बॉर्डर पर डोकलाम इलाके को लेकर चल रहे विवाद पर भी जिनपिंग से बात की है. वहीं एबीपी न्यूज़ ने डोकलाम विवाद पर चीन की दादागीरी की पोल खोली है.


एबीपी न्यूज़ ने डोकलाम विवाद की पूरी हकीकत जानने की कोशिश की है. विवाद के बाद पहली बार कोई न्यूज चैनल भारत, चीन और भूटान के पास विवाद वाली इस जगह पहुंचा है. भूटान की राजधानी थिम्पू से करीब 100 किलोमीटर दूर हा नाम का एक इलाका है. ये इलाका चीन-भूटान सीमा का आखिरी शहर है. इसके आगे का इलाका रिस्ट्रिक्टेड एरिया है. इसके आगे सिविलियन को जाने की इजाजत नहीं है.

हा से 80 किलोमीटर दूर है डोकलाम

हा भी एक प्रतिबंधित क्षेत्र है और यहां पहुंचने के लिए रॉयल भूटान गर्वमेंट से परमिट लेनी पड़ती है. यहां से आगे पूरा मिलिट्री एरिया है और डोकलाम इलाका यहां से सिर्फ 80 किलोमीटर दूर है. यहां से आगे भूटान और भारत के सैनिकों के अलावा किसी को भी जाने की इजाजत नहीं है.

चीन से डोलम पैलेट्यू यानि पठार को लेकर चल रहे विवाद के चलते भूटान के नागरिकों को भी यहां जाने नहीं दिया जाता है. इसी डोलम पैलेट्यू को हम डोकलाम के नाम से जानते हैं.

क्या है डोकलाम विवाद?

दरअसल डोकलाम जिसे भूटान में डोलम कहते हैं. करीब 300 वर्ग किलोमीटर का ये इलाका चीन की चुंबी वैली से सटा हुआ है और सिक्किम के नाथुला दर्रे के करीब है. इसलिए इस इलाके को ट्राई जंक्शन के नाम भी जाना जाता है. ये डैगर यानी एक खंजर की तरह का भौगोलिक इलाका है, जो भारत के चिकन नेक यानी सिलिगुड़ी कॉरिडोर की तरफ जाता है. चीन की चुंबी वैली का यहां आखिरी शहर है याटूंग. चीन इसी याटूंग शहर से लेकर विवादित डोलम इलाके तक सड़क बनाना चाहता है.



इसी सड़क का पहले भूटान ने विरोध जताया और फिर भारतीय सेना ने. भारतीय सैनिकों की इस इलाके में मौजूदगी से चीन हड़बड़ा गया है. चीन को ये बर्दाश्त नहीं हो रहा कि जब विवाद चीन और भूटान के बीच है तो उसमें भारत सीधे तौर से दखलअंदाजी क्यों कर रहा है.16 जून से भारत और चीन की सेना के बीच फेसऑफ यानी गतिरोध जारी है.

भारतीय सेना भूटान की मदद क्यों कर रही है

भारत-भूटान के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा कायम रखने की संधि है. भारत और भूटान में 2007 में संधि हुई थी कि एक दूसरे की मदद करेंगे. इसी के तहत भारतीय सेना भूटान की मदद कर रही है.

सड़क के बहाने डोकलाम हड़पने की साजिश

भारत को इस बात का अंदेशा है कि अगर डोलाम इलाके में सड़क बना दी तो अधिकार जमा देगा. जैसा चीन ने तिब्बत में बफर स्टेट पर कब्जा करके किया था. अगर भूटान के इलाके में रोड बनाता है तो वो इलाका खत्म हो जाएगा. आने वाले दिनों में मुश्किलात हो सकती है.



सड़क से भारत की सुरक्षा को खतरा

अगर डोकलाम में चीन सड़क बना लेता है तो भारत की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है. भारत का चिकननेक यानी सिलीगुड़ी कॉरिडोर यहां से बेहद करीब है और युद्ध की स्थिति में अगर चीन की सेना सिलीगुड़ी कोरिडोर तक पहुंच जाती है तो भारत के सभी नार्थ-ईस्ट राज्य देश से कट जाएंगे. यही वजह है कि भूटान भारत के लिए अहम है और इसी अहमियत की वजह से भूटान के सैनिकों को भारतीय सेना ट्रेनिंग देती है.

भूटान के अस्तित्व में आने के बाद से ही ट्रेनिंग के अलावा हथियार और बाकी साजो सामान भी भारत ही मुहैया कराता है. भूटान की सेना को होलीकॉप्टर की जरूरत पड़ने पर भारतीय सेना की कोलकता स्थित ईस्टर्न कमांड की एयरविंग ही मदद मुहैया कराती है.

भारत और भूटान के सैन्य संबंध कितने मजबूत हैं, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने पद संभालने के बाद सबसे पहली विदेश यात्रा भूटान की ही की थी और पीएम बनने के बाद मोदी भी सबसे पहले भूटान ही गए थे.



सूत्रों के मुताबिक, चीन को भारत के इस इमट्राट सेंटर से भी खासी दिक्कत है. चीन का आरोप है कि ट्रेनिंग की आड़ में भारतीय सैनिक चीन-भूटान सीमा पर पेट्रोलिंग करते हैं. जब 16 जून को चीन के सैनिक सड़क बनाने के लिए डोकलाम पहुंचे तो भारतीय सैनिक भी भूटान की सेना की मदद करने पहुंच गए. भारत और भूटान के सैनिकों ने मिलकर चीन की सेना को रोक दिया.

1961 से भारत की बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानी बीआरओ भूटान के सड़क से लेकर हैलिपैड तक बनाती है. भारत ही पहला देश था जिसने भूटान को एक अलग देश के रूप में मान्यता दी थी. भारतीय फौज भूटान की मदद संधि के तहत करती है, लेकिन चीन भारत के साथ भूटान को भी धोखा देना चाहता है. चीन को रोककर भारत ने इरादे जता दिए हैं कि जिस सड़क के जरिये चीन भारत की तरफ कदम बढ़ाना चाहता है, उस चाल में वो कभी कामयाब नहीं हो पाएगा.