ऑपरेशन हाथरस: कानून की परिभाषा साफ है पर यूपी पुलिस के टॉप अधिकारी छुपा रहे थे सच
एबीपी न्यूज के अंडर कवर रिपोर्टर के खुलासे में पता चला कि हाथरस मामले को पुलिस के बयानों ने कैसे पेंच फंसाने की कोशिश की और कैसे पुलिस की नीयत पर सवाल उठने लगे.
हाथरस रेप मामले में क्या पुलिस को कानून की परिभाषा नहीं मालूम या वो कोई ढोंग कर रही है? एबीपी न्यूज की इस तहकीकात में मालूम हुआ कि निचले दर्जे तक का पुलिसवाला जानता है कि रेप के नए कानून में क्या-क्या प्रावधान हैं लेकिन ऐसा लग रहा है कि यूपी पुलिस के टॉप लेवल में इस पर लीपापोती की जा रही है.
लड़की ने अपने बयान में साफ तौर पर ये कहा था कि उसके साथ रेप हुआ है. लड़की ने कहा था, दो लोगों ने रेप किया था, बाकी सब मम्मी को देखते ही भाग गए थे. वहीं अपर पुलिस महानिदेशक कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हवाले से दावा किया था कि लड़की के साथ बलात्कार नहीं हुआ है.
एडीजी के इस बयान से एक बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि क्या यूपी के कानून व्यवस्था के एडीजी को कानून का ही नहीं पता? या वो जानबूझकर इस मामले में पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं? जबकि कानून के प्रावधानों के बारे में तो पुलिस महकमे के छोटे से छोटे अधिकारी तक को ये बात पता है.
ABP न्यूज के खुफिया कैमरे में हाथरस पुलिस के PRO हाथरस पुलिस के पीआरओ ने कहा, 'मेडिको लीगल में जो है उसका सीमन वगैरह नहीं आया.. इसी आधार पर कहा है कि प्राइवेट पार्ट पर कोई चोट नहीं है. व्यक्तिगत बात मैं बता सकता हूं, जो 2013 में संशोधन हुआ उसके अनुसार जो रेप केस की गाइड लाइन हैं. उसमें प्राइवेट पार्ट पर हाथ लगा देना भी 374 की श्रेणी में आता है.'
तो कानून की परिभाषा बहुत साफ-साफ है. लेकिन यूपी पुलिस के टॉप लेवल के अधिकारी आधा-अधूरा पेश कर रहे हैं, जबकि निचले लेवल के अधिकारी सारा सच जानते हैं. जो एडीजी को नहीं पता वो पीआरओ को पता है.
जिस कानून के बारे में हाथरस के एसएसपी के पीआरओ को भी पता है, उसके बारे में यूपी के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर को न पता हो. क्या ऐसा मुमकिन है? आखिर पुलिस के बड़े अफसर इस मामले में नादान बनने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? क्या वो कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हैं?
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