(हमारे दर्शक संजीव अरोड़ा, पवन सिंह, दिलीप गर्ग नारायणी, मिनिमल भंसाली, कृष्ण कुमार, आर सी वर्मा, सुनील संखवार और प्रकाश के पूछे गए सवालों के आधार पर ये लेख लिखा गया है?)


सवाल- चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की मांग का मतलब क्या है? ये मांग क्यों की गई थी?


चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का मतलब है कि चीफ जस्टिस को उनके पद से हटाने के लिए कार्रवाई की मांग करना। हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को पद से हटाने के लिए महाभियोग देश की संसद में चलाया जाता है।


इस साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जज जस्टिस जे चेलमेशवर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसफ ने मीडिया के सामने आकर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल उठाए थे. इसके बाद कांग्रेस, वामदलों ने महाभियोग की तैयारी शुरू की थी.


सवाल- चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को विपक्ष क्यों हटाना चाहता है? किस आरोप को आधार बनाकर कांग्रेस ने महाभियोग की प्रक्रिया शुरु की थी?


कांग्रेस और कुछ विपक्षी दलों के 64 राज्यसभा सांसदों ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू को देश के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पद से हटाने का प्रस्ताव सौंपा था. उन्होंने उन पर पांच आरोप लगाए थे।


पहला आरोप: प्रसाद ऐजुकेशन ट्रस्ट में लाभ लेने का आरोप


दूसरा आरोप: सबूत होने के बावजूद केस की मंजूरी नहीं दी


तीसरा आरोप: एक मामले में तारीख बदलने का आरोप


चौथा आरोप: वकील रहते झूठा हलफनामा दिया


पांचवां आरोप: संवेदनशील मामलों को चुनिंदा जजों के पास भेजा



सवाल- उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने की मांग को खारिज क्यों किया?


उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति वेंकैया नायडू ने अपने 10 पेज के आदेश में विपक्ष के तमाम आरोपों को निराधार बताते हुए 22 कारण बता कहा कि वो चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की इजाजत नहीं दे सकते हैं।


वेंकैया नायडू ने आदेश में कहा कि उन्होंने प्रस्ताव में लगाए गए सभी 5 आरोपों पर कानून के जानकारों से राय मशविरा करने के बाद काफी सोच समझकर ये फैसला लिया। उनका कहना था कि प्रस्ताव में दिए गए सभी तथ्य, उनके साथ जुड़े कागजातों के परीक्षण से पता चलता है कि कोई ऐसा तथ्य नहीं था जो संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत देश के चीफ जस्टिस के दुर्वयव्हार की पुष्टि करता हो। इसीलिए उन्होंने विपक्ष के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।


महाभियोग का प्रस्ताव खारिज होने पर विपक्ष का कहना था कि नायडू का फैसला असंवैधानिक और गैर-कानूनी है। उन्होंने नायडू के फैसले के खिलाफ खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली।


सवाल- क्या महाभियोग की कार्रवाई की मांग खारिज होने के खिलाफ दी गई याचिका को वो चार जज भी सुन सकते हैं जो खुद भी शिकायतकर्ता हैं?


मामला खुद से जुड़ा होने के चलते चीफ जस्टिस इसे नहीं सुन सकते थे. उनके बाद के 4 वरिष्ठतम जजों जस्टिस चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसफ और मदन बी लोकुर ने 12 जनवरी को उनके काम की तरीकों पर सवाल उठाते हुए प्रेस कांफ्रेंस की थी. वो घटना भी सांसदों की तरफ से लाए गए प्रस्ताव का एक अहम हिस्सा थी. ऐसे में ये चारों जज भी मामला नहीं सुन सकते थे. शायद यही वजह रही कि केस इन पांचों के बाद के वरिष्ठतम जजों को सौंपा गया.


मामले की सुनवाई जिस बेंच को सौंपी गई, उसके सदस्य थे- जस्टिस एके सीकरी, एसए बोबडे, एनवी रमना, अरुण मिश्रा और एके गोयल. ये जज वरिष्ठता के क्रम में छठे से दसवें नंबर पर हैं.


सवाल- क्या ये केस खत्म हो गया है?


चीफ जस्टिस को पद से हटाने का प्रस्ताव खारिज होने के खिलाफ याचिका को आज कांग्रेस सांसदों ने वापस ले लिया है। विपक्षी सांसदों के वकील कपिल सिब्बल इस बात पर अड़ गए कि उन्हें मामले में 5 जजों की बेंच के गठन से जुड़ा आदेश दिखाया जाए. जजों ने उनसे बार-बार केस पर बहस करने का आग्रह किया.


सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि जो 5 जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है उसका गठन भी मुख्य न्यायाधीश ने ही किया है, उस फैसले का आधार क्या है। इसी को आधार बनाते हुए याचिका वापस ली.


सिब्बल ने कहा, "कोई मामला न्यायिक आदेश के ज़रिए ही संविधान पीठ को सौंपा जाता है. ये केस प्रशासनिक आदेश से 5 जजों की बेंच में भेजा गया है. ये आदेश किसने दिया? हमें आदेश की कॉपी दी जाए. हम इसे चुनौती देना चाहते हैं."


सुनवाई के दौरान 5 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस एके सीकरी ने कई बार सिब्बल से कहा, "आपकी मांग मामले को कहीं नहीं ले जाएगी. बेहतर हो आप केस पर जिरह करें."


जस्टिस सीकरी ने ये भी कहा, "चीफ जस्टिस मामला नहीं सुन सकते क्योंकि ये उनसे जुड़ा है. उनके बाद के 4 जज भी इससे कहीं न कहीं जुड़े हैं. ऐसे में सुनवाई आखिर कोई तो करेगा. आपको सुनवाई पर क्यों एतराज़ है?"


लेकिन सिब्बल अपनी मांग पर अड़े रहे. आखिरकार उन्होंने याचिका वापस के ली. जजों ने उठने से पहले दिए संक्षिप्त आदेश में कहा, "डिसमिस्ड ऐज़ विदड्रॉन" यानी याचिकाकर्ता अपनी याचिका वापस लेना चाहता है, इसलिए हम सुनवाई खत्म कर रहे हैं.