सुंजवां आर्मी कैंप हमला: बेहद लचर दिखी सुरक्षा व्यवस्था, बच सकती थी 5 जवानों की जान
जम्मू के सुंजवान में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद से आर्मी कैंप की सुरक्षा में चूक को लेकर बड़ी बहस शुरु हो गई है.
जम्मू-कश्मीर: जम्मू के सुंजवां में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद से आर्मी कैंप की सुरक्षा में चूक को लेकर बड़ी बहस शुरु हो गई है. कुछ लोगों का कहना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों का आर्मी कैंप के बेहद करीब रहना सेना के लिए ठीक नहीं है. लेकिन एबीपी न्यूज़ की पड़ताल में पता चला है कि सिर्फ रोहिंग्या शरणार्थियों का आर्मी कैंप के बेहद करीब रहना ही सुरक्षा में बड़ी चूक नहीं है. आर्मी कैंप में और भी कई सारी सुरक्षा खामियां हैं. बता दें कि इस हमले में पांच जवान शहीद हो गए थे.
बता दें कि सुंजवां आर्मी कैंप पर बड़े आतंकी हमले के बाद इस बात की जांच की जा रही है कि आखिर आतंकी आर्मी कैंप में आतंकी घुसे कैसे? एबीपी न्यूज़ ने अपनी पड़ताल वहां से शुरु की जहां से आतंकियों के कैंप में दाखिल होने की आशंका है. वहां पहुंचकर कई सारी खामियां दिखीं जो जवानों की सुरक्षा पर कई सारे सवाल खड़ी करती हैं.
जम्मू में बने सुंजवां कैंप से कुछ ही दूरी पर एक खाली इमारत ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है. सूत्रों के मुताबिक हमले से पहले शुक्रवार देर रात तक आतंकियों ने इस इमारत में छुपे हुए थे. शक इसलिए भी गहरा जाता है, क्योंकि इमारत की दीवारों पर भारत के खिलाफ कई बातें लिखी गई हैं जिसे बाद में मिटाने की कोशिश भी हुई.
सुंजवां सेना कैम्प के बीचों बीच तीन से चार बरसाती नाले निकलते हैं. नाले रिहायशी इलाक़ों से होकर सीधा कैम्प में जाते हैं. जो इस कैम्प में घुसने का आसान रूट हो सकता है. साथ ही कैम्प की चारदीवारी में भी कई जगह टीन की चादरों का इस्तेमाल किया गया है, जिसे पार कर कोई भी आसानी से कैंप में दाखिल हो सकता है.
कैंप की दीवार के करीब काफी मकान हैं. अब सवाल ये उठता है कि आखिर आर्मी कैंप के नजदीक इतने सारे मकान कैसे बन गए? पड़ताल में ये पता चला है कि कैम्प से सटे हुए मकान सुंजवान कैम्प की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं. इन सुरक्षा खामियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सुंजवान कैंप की सुरक्षा व्यवस्था बेहद लचर है.
बाउन्ड्री वॉल के बाहर से भीतर देखने पर पता चलता है कि थोड़ी ही दूर पर क्वार्टर बने हैं, लेकिन कहीं कहीं चारदीवारी ही गायब है. अब सवाल ये है कि क्या टीन की शेड से इतने बड़े आर्मी कैंप की सुरक्षा हो सकती है? सेना के जवान और अधिकारी तो सीमा पर लड़ने के लिए जाते हैं, लेकिन उनके परिवारों की सुरक्षा किसके भरोसे है ? टूटी हुई दीवारों का पक्का इलाज क्यों नहीं किया गया?
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