Jan Man Dhan e-Conclave: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कल वित्त वर्ष 2021-22 के लिए कुल 34,83,236 करोड़ रुपये के खर्चे का बजट पेश कर दिया है. सरकार और उसके सहयोगियों ने जहां इस बजट को जनता के लिए फायदेमंद बताया है, वहीं विपक्ष ने इसे खराब और देश को गुमराह करने वाला बजट करार दिया है. इस बीच आज आपने पसंदीदा चैनल abp न्यूज़ पर दिनभर बजट का विश्लेषण किया जाएगा.
एबीपी न्यूज ने आज जन मन धन e-कॉनकलेव (JAN MAN DHAN e-Conclave) का आयोजन किया है. इस खास कार्यक्रम में पक्ष-विपक्ष और विशेषज्ञों से नए बजट में खूबियां और खामियों को समझने की कोशिश होगी. बजट के बाद कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने सरकार के बजट को पूरी तरह से नकार दिया. उन्होंने कहा कि सरकार का एक ही लक्ष्य है कि किस तरह से घर का सोना गिरवी रखकर घाटे को पूरा किया जाए. सरकार अपने घाटे को पूरा करने के लिए सरकारी संपत्तियां बेच रही है.
मनीष तिवारी ने कहा, ''हर बजट को एक परिपेक्ष्य में देखने की जरूरत है. इस बजट का परिपेक्ष्य यह है कि पिछले 37 महीने से अर्थव्यवस्था गिर रही है. कोविड के दौरान बिना सोचे समझे लॉक डाउन करने यह और बढ़ गया. सरकार ने अपने इस घाटे को कर्जा लेकर पूरा किया. इस बजट में सरकार का एक ही लक्ष्य है कि किस तरह से घर का सोना गिरवी रखकर घाटे को पूरा किया जाए. सरकार के पास जो जमीन पड़ी है और सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों को बेचकर अपना घाटा पूरा करना चाहती है.''
मनीष तिवारी ने कहा, ''स्टॉक मार्केट एक सट्टे का बाजार है, इसका असली अर्थव्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है. कोरोना काल के दौरान भी यह उछाल मार रहा था. जो मनरेगा की योजना है जिसे यूपीए ने लागू किया था. प्रधानमंत्री मोदी ने इसे गड्ढे खोदने की स्कीम बताया. लेकिन जब से यह स्कीम शुरू हुई सबसे ज्यादा लोगों ने इसके तहत काम मांगा. देश में इस वक्त देश भयंकर बेरोजगारी है जो पिछले 70 सालों में नहीं हुई. इस वक्त दो भारत हैं, एक जिनकी दौलत पिछले आठ नौ महीनों में बढ़ी है. इसके अलावा करोड़ों लोग जिनकी नौकरियां गयीं हैं. अगर भारत की अर्थव्यवस्था आठ से दस प्रतिशत की दर से ना बढ़े तो एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे चली जाती है. ''
मनीष तिवारी ने कहा, ''अगर हमारी सरकार होती तो इस बजट में हम लोगों के हाथों में सीधे पैसा देते. लोगों के हाथ में पैसा नहीं है इसलिए अर्थव्यवस्था नहीं चल रही है. एक बड़े वर्ग को खाने के लाले पड़े हैं. अभी जो पैसा दिया जा रहा है वो पर्याप्त होता तो जीपीडी लगातार नीचे क्यों जा रही है. इसका मतलब है कि सरकार जो कदम उठा रही है वो पर्याप्त नहीं है. सरकार करती है कि कोरोना काल में बीस लाख करोड़ का पैकैज दिय. लेकिन इसमें सिर्फ साढ़े तीन लाख करोड़ सीधे पैसे दिए.
विनिवेश के मुद्दे पर मनीष तिवारी ने कहा, ''मेरा मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र का देश के विकास में बड़ा रोल है. इसे सुधारने के बजाए चर्चा हो रही है कि सब कुछ बेच दो. अगर आप ऐसा करना भी चाहते हैं, जैसा एयर इंडिया में किया गया. या फिर बैंक, रेल सब बेचकर जो पैसा आएगा उसका इस्तेमाल घाटे को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. विनिवेश के बाद जो पैसा आएगा उसका इस्तेमाल कैसे होगा, इसका सरकार की ओर से कोई ब्योरा नहीं दिया गया है.''
किसान आंदोलन के मुद्दे पर मनीष तिवारी ने कहा, ''अगर आपने किसानों के लिए इतनी बड़ी घोषणाएं की हैं तो किसान खुश क्यों नहीं हैं? अगर आप किसानों के इतने बड़े हिमायती हैं तो फिर किसान सड़क पर क्यों हैं? देश जब आजाद हुआ तो उस वक्त बड़े बड़े जमींदार थे. कांग्रेस की सरकार बनने के बाद खेती करने वाले किसानों को उसकी जमीन दिलाने का काम हुआ. आज 84% किसान हैं जिनके पास तीन हेक्टेयर से कम जमीन है. इसलिए कृषि क्षेत्र में जो कठिनाइयां हैं, उसे दूर करने के बजाए आप कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग पर जोर देंगे तो यह सही कदम नहीं है.''