नई दिल्ली: लॉकडाउन का कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों पर कितना असर हुआ, इसपर देश में बहस चल रही है, लेकिन सरकार के एक आंतरिक अध्ययन में जो आंकड़े निकलकर आए हैं, वो ज़रूर इस बात की ओर इशारा करते हैं कि लॉकडाउन के बिना आज हालात काफ़ी ख़राब हो सकते थे.


इसकी पहली झलक तब देखने को मिली जब विदेश मंत्रालय में सचिव ( पश्चिम ) विकास स्वरूप ने भारत में कोरोना के हालात और सरकार की ओर से उठाए गए क़दमों के बारे में 9 अप्रैल को दिल्ली स्थित विदेशी पत्रकारों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए बात की. बातचीत में मंत्रालय की ओर से जो लिखित आंकड़े पेश किए गए वो चौंकाने वाले थे.


लिखित प्रेस नोट में जानकारी दी गई कि अगर देश में लॉकडाउन लागू नहीं हुआ होता तो स्थिति काफ़ी भयावह हो सकती थी. इसके मुताबिक़ लॉकडाउन नहीं होने की हालत में 15 अप्रैल तक भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 8,20,000 तक पहुंच गई होती. जब इस बातचीत में शामिल एक पत्रकार ने इस आंकड़े का आधार पूछा तो उसमें मौजूद विदेश मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने आईसीएमआर के एक आंतरिक आंकलन का हवाला दिया.


तब प्रेस नोट में ये भी कहा गया कि लॉकडाउन के चलते कोरोना संक्रमण के 80 फ़ीसदी से ज़्यादा मामले देश के महज 78 जिलों तक सिमट कर रह गए. बातचीत के दौरान विकास स्वरूप ने यहां तक कहा था कि लॉकडाउन नहीं होने से भारत की स्थिति भी इटली जैसी हो सकती थी.


ये आंकड़ा चूंकि बेहद चौंकाने वाला था लिहाज़ा एबीपी न्यूज़ ने इसका आधार जानने की कोशिश की. पता चला कि ये आंकलन R0-2.5 के सिद्धांत पर आधारित है. इस सिद्धांत के मुताबिक़ अगर लॉकडाउन नहीं किया जाता है, तो कोरोना से प्रभावित एक व्यक्ति 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है. जबकि लॉकडाउन के चलते उसकी क्षमता महज 2.5 लोगों को संक्रमित करने तक रह जाती है.


इन आंकड़ों के आधार पर एबीपी न्यूज़ ने 9 अप्रैल को एक स्टोरी की जिसपर बवाल मच गया. 10 अप्रैल को जब सरकार की रोज़ाना होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल से इस आंकड़े के बारे में ज़िक्र करते हुए एक पत्रकार ने ये पूछा कि क्या आईसीएमआर की ऐसी कोई 'रिपोर्ट' आई है, तो अग्रवाल ने बस इतना ही कहा कि आईसीएमआर की ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई है.


इसी बात पर न्यूजलॉन्ड्री नामक एक अंग्रेजी वेबसाइट ने एबीपी न्यूज़ पर फेक न्यूज़ फैलाने का आरोप लगाते हुए एक आलेख लिख दिया. वेबसाइट ने इस ख़बर देने वाले एबीपी न्यूज़ के पत्रकार प्रशांत पर एक काल्पनिक फॉर्मूला देने का भी आरोप जड़ दिया. हालांकि फेक न्यूज़ का भंडाफोड़ करने का दावा करने वाले इस तथाकथित स्वघोषित वेबसाइट ने ख़बर लिखते समय पत्रकारिता और रिपोर्टिंग की कुछ बुनियादी ग़लतियां कर दी.


ग़लती नम्बर एक: 9 अप्रैल को प्रकाशित एबीपी न्यूज़ की रिपोर्ट का मूल आधार विदेश मंत्रालय की विदेशी पत्रकारों के साथ वो बातचीत थी जिसमें एक प्रेस नोट दिया गया था. प्रेस नोट में 8 लाख 20 हज़ार का आंकड़ा साफ़ साफ़ लिखा था.



ग़लती नम्बर दो: लव अग्रवाल ने 10 अप्रैल की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में केवल आईसीएमआर की ऐसी किसी रिपोर्ट से इनकार किया था. जबकि एबीपी न्यूज़ की ख़बर का आधार कुछ और ही था.


ग़लती नम्बर तीन: पत्रकारिता का ये बुनियादी उसूल है कि जिसके बारे में ख़बर लिखी जा रही है उसका पक्ष भी शामिल किया जाए. ज़ाहिर है पत्रकारिता के इस इस स्वघोषित ठेकेदार की ओर से ऐसी कोई कोशिश नहीं की गई .


एबीपी न्यूज़ की ख़बर पर मुहर तब लग गई जब अगले ही दिन यानि 11 अप्रैल को सरकार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने सिलसिलेवार तरीक़े से इस महामारी पर लॉकडाउन के असर की जानकारी दी. अग्रवाल ने एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया कि अगर लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो 10 अप्रैल को जहां देश में 2,08,544 मामले आ गए होते वहीं 15 अप्रैल तक ये आंकड़ा 8.20 लाख पहुंच गया होता. जबकि लॉकडाउन के चलते 10 अप्रैल तक ये आंकड़ा 7447 तक ही सीमित था और आज 10350 के आसपास है.


मतलब ये कि एबीपी न्यूज़ की ख़बर बिल्कुल खरी साबित हुई, लेकिन इन स्वघोषित झंडाबरदारों से अपनी गलती के लिए क्षमा की अपेक्षा करना ख़ुद से ही थोड़ी ज़्यादती हो जाएगी. फिर भी , हम उम्मीद ज़रूर करेंगे कि किसी पर कीचड़ उछालने से पहले अपने नीचे की धरती का भी थाह ले लिया जाए. इसे आम बोलचाल में 'अपने गिरेबां में झांकना' कहते हैं.