शिखर सम्मेलन 2020: CDS पद को लेकर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी की राय पार्टी से अलग, जानिए क्या कुछ कहा
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सीडीएस पद के गठन पर कहा कि इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि जिस तरह से सीडीएस का गठन हुआ है वो लोकतांत्रिक ढांचे में सिविलियन कंट्रोल को डाइल्यूट करता है.
ABP Shikhar Sammelan 2020: ABP न्यूज़ के शिखर सम्मेलन कार्यक्रम में आज देश के सियासी गलियारे से आज कई जानें-मानें चेहरे शामिल हुए. कांग्रेस के सीनियर नेता और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत की. इस दौरान उन्होंने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) पद को लेकर विस्तार से बातचीत की. दरअसल इसपर उनकी राय पार्टी से अलग है. उन्होंने कहा कि ये बहुत गंभीर मसला है. इस पर व्यापक चर्चा की जरूरत है. इसपर उन्होंने दो लेख भी लिखे हैं. एक छप चुका है और एक छपने वाला है.
मनीष तिवारी ने कहा कि भारत के लोकतंत्र में एक नई संस्था कायम की गई है. इसके बहुत दूरगामी परिणाम होने वाले है. सवाल किसी एक व्यक्ति का नहीं है. आज तक भारत में परंपरा रही थी कि फौज के ऊपर सिविलियन हुकूमत का कंट्रोल रहता है. जिस तरह से सीडीएस का गठन किया गया है वो रक्षा मंत्रालय में और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में इस सिविलियन कंट्रोल को डाइल्यूट करता है, उसको कम करता है.
कांग्रेस पार्टी की तरफ से किसी ने अभी सीडीएस के गठन के विषय में कुछ नहीं कहा है, इसके जवाब में मनीष तिवारी ने कहा कि अगर किसी ने कही कहा है तो उनका मामला है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स का गठन किया है, सीडीएस को उसका सेक्रेटरी बनाया गया है और रक्षा मंत्रालय में फौज के सारे रिपोर्टिंग स्ट्रक्चर को बदल दिए जाने के दूरगामी परिणाम होने वाले हैं. क्योंकि अक्सर लोकतंत्र में ऐसा होता है कि सभी सरकारें मजबूत नहीं होतीं.
मनीष तिवारी ने कहा कि 1947 के बाद से अबततक भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि हमने अपनी फौज के ऊपर सिविलयन सुपरमेसी को बरकरार रखा है. 1940-50 में आजाद होने वाले दुनिया के दूसरे मुल्क चाहे वो अफ्रिका हो, लैटिन अमेरिका हो चाहे एशिया में हो, भारत एक अकेला ऐसा मुल्क है जो कभी फौज के रूल में नहीं गया है. सिविलियन सुपरमेसी को भारत की सभी सरकारों ने बरकार रखा है.
वहीं नागरिकता संशोधन कानून पर उन्होंने कहा कि भारत की नागरिकता का आधार धर्म नहीं हो सकता. अगर आप धर्म के आधार पर किसी को भारत की नागरिकता देते हैं तो ये संविधान का उल्लंघन करते हैं. एक तरफ हम महाशक्ति बनने की बात करते हैं और दूसरी तरफ जब भारत कानून बनाता है तो अपने तीन पड़ोसी देशों को संज्ञान में लेता है और बाकी के 195 देशों को छोड़ देता है. ये कैसी महाशक्ति हम बनने जा रहे हैं. अगर कोई प्रताड़ित है या किसी के साथ अत्याचार हुआ है तो उसे जरूर नागरिकता मिलनी चाहिए. लेकिन इसका आधार धर्म नहीं होना चाहिए.
यहां देखें मनीष तिवारी से ABP न्यूज़ की पूरी बातचीत