नई दिल्ली: ट्विटर पर फ़र्ज़ी प्रोफाइल और भारत विरोधी सामग्री की मौजूदगी के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज नोटिस जारी किया. बीजेपी नेता विनीत गोयनका की इस याचिका पर केंद्र सरकार और ट्विटर से जवाब मांगा गया है. सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर पहले से कुछ याचिकाएं लंबित हैं. कोर्ट ने कहा है कि इस याचिका को भी उनके साथ सुना जाएगा.
विनीत गोयनका की याचिका में कहा गया है कि ट्विटर पर आम नागरिक ही नहीं, बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों के भी नाम और तस्वीर का इस्तेमाल कर फ़र्ज़ी प्रोफाइल बनाए जा रहे हैं. सिख फ़ॉर जस्टिस जैसे भारत विरोधी संगठनों को भी अपना प्रोपेगैंडा फैलाने की खुली छूट मिली हुई है. याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट सरकार से इस तरह की सामग्री पर नियंत्रण की व्यवस्था बनाने के लिए कहे.
पहले से लंबित हैं दो याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले जिन याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार किया है, उनमें से एक वकील विनीत जिंदल की है. इस याचिका पर 1 फरवरी को नोटिस जारी हुआ था. दूसरी याचिका कानून के छात्रों स्कंद वाजपेयी और अभ्युदय मिश्रा की है. इस पर पिछले साल 13 अक्टूबर कोर्ट ने नोटिस जारी किया था.
'हिंसा फैलाने में भूमिका'
विनीत जिंदल की याचिका में सोशल मीडिया से आपत्तिजनक और भड़काऊ सामग्री हटाने की व्यवस्था बनाने की मांग की गई है. याचिका में इस तरह की सामग्री के लिए फेसबुक, ट्विटर की भी जवाबदेही तय करने की भी मांग की गई है. याचिका में ऐसी कई हिंसक घटनाओं का हवाला दिया गया है, जिनके फैलने में झूठी जानकारी देने वाले सोशल मीडिया पोस्ट की बड़ी भूमिका रही है. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने धार्मिक मामलों और देवी-देवताओं पर सोशल मीडिया में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को भी कोर्ट के सामने रखा. उनका कहना था कि इस समय देश में न तो ऐसे पोस्ट को तुरंत हटाने की कोई व्यवस्था है, न ही फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म की कोई ज़िम्मेदारी तय की गई है.
'अनैतिक गतिविधियों का अड्डा'
स्कंद वाजपेयी और और अभ्युदय मिश्रा की याचिका में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पर लगाम की व्यवस्था बनाने के अलावा फ़र्ज़ी प्रोफाइल पर रोक, आयु के आधार पर सोशल मीडिया में पहुंच, प्लेटफॉर्म की जवाबदेही तय करने जैसी मांग की गई है. याचिका में सोशल मीडिया को लेकर सरकारी नियम स्पष्ट न होने का मसला उठाया गया है. बताया गया है कि इसका लाभ उठा कर तमाम अवैध और अनैतिक गतिविधियां सोशल मीडिया पर चल रही हैं. मामले में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही भी तय नहीं की गई है.
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि बिना वेरिफिकेशन की व्यवस्था के प्रोफाइल बनाने की छूट ने फ़र्ज़ी और गुमनाम प्रोफाइल को बढ़ावा दिया है. लोग कई बार किसी दूसरे व्यक्ति के नाम से भी प्रोफाइल बना लेते हैं. कई तरह का अवैध व्यापार भी सोशल मीडिया के ज़रिए चलाया जा रहा है. इसलिए, दूसरे के नाम या तस्वीर के साथ प्रोफाइल बनाने को कानूनन अपराध घोषित किया जाए. प्रोफाइल वेरिफिकेशन की व्यवस्था बनाई जाए. साथ ही, आपत्तिजनक सामग्री को हटाने और दोबारा अपलोड होने से रोकने की व्यवस्था बने.
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