दिल्ली: भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 44 लाख से ज्यादा हो गई है. वहीं 75 हजार से ज्यादा लोग इस संक्रमण की वजह से अपनी जान गवां चुके हैं. एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के डॉक्टर और इंडियन पब्लिक हैल्थ एसोसिएशन के डॉक्टर पुनीत मिश्रा के मुताबिक अभी और केस सामने आएंगे. डॉ मिश्रा के मुताबिक संक्रमण फैल चुका और जैसी भारत में आबादी है ये और फैलेगा.


डॉ पुनीत मिश्रा, कम्युनिटी मेडिसिन, एम्स का कहना है कि, बहुत जल्दी मैं नहीं समझता हूं कि मामले कम होने वाले हैं, और जिस तरह से बीमारी फैल रही है और हमारी आबादी है उस हिसाब से मामले अभी बढ़ेंगे. यह कहना या यह दिलासा दिलाना कि मामले कम होंगे वह भी सही नहीं है. दूसरी बात यह कि भारत बहुत बड़ा देश है और इसकी आबादी 1.3 बिलीयन है उस संख्या के हिसाब से सिर्फ चीन ऐसा देश है जहां हम से ज्यादा लोग हैं उनके डाटा पर मैं भी कमेंट नहीं करूंगा. और अभी के डाटा को देखते हुए मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में और भी केस आएंगे क्योंकि इन्फेक्शन अभी फैला हुआ है और अभी उसको रोक नहीं सकते. महत्वपूर्ण यह है कि हमें किसी भी तरह मृत्यु दर को कम करना होगा ताकि लोगों की सफरिंग कम हो और नुकसान कम हो.


डॉ पुनीत मिश्रा के मुताबिक कोरोना महामारी देश में अलग अलग जगह पर अलग अलग स्टेज में है. बड़े शहरों में ज्यादा केस है और अब कमी दिख रही उसी तरह अब ये संक्रमण छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में भी हो रहे है और आने वाले समय में इन जगहों पर केस बढ़ेगे. उनके मुताबिक संक्रमण फैल चुका है और इसका असर दिख रहा है. ऐसे में स्ट्रेटजी में बदलाव करने की जरूरत है, खासकर कंटेनमेंट स्ट्रेटजी. अब देश के जगह और केस के हिसाब से कंटेनमेंट जोन बनाने की जरूरत है. बड़े शहर जैसे दिल्ली मुंबई जहां बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए है वहां बड़े कंटेनमेंट जोन की जरूरत नहीं बल्कि केस वाली जगह के मुताबिक होने चाहिए.


उन्होंने कहा कि, “मुझे लगता है अब तो स्ट्रेटजी होनी चाहिए कंटेनमेंट की वो वहां की स्थिति के हिसाब से अलग होनी चाहिए. दिल्ली जैसे शहर में मुझे लगता है कि कंटेनमेंट का अब ज्यादा यूज़ नहीं है हालांकि जहां पर बहुत कम केसेस है या नहीं कैसा रहे हैं वहां पर कंटेनमेंट छोटे स्तर पर प्रभावी हो सकता है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि दिल्ली जैसे शहर में अब कंटेनमेंट की जरूरत है. हमारी स्ट्रेटजी ही होनी चाहिए कि मृत्यु दर कम हो.


इसके अलावा टेस्टिंग में भी बदलाव की जरूरत है. जिन जगहों पर अब नए केस आ रहे है वहां ज्यादा टेस्टिंग की जरूरत है. जहां पहले बहुत केस आ चुके है वहां ज्यादा टेस्टिंग से कुछ फायदा नहीं होगा। वहीं सिर्फ हाई रिस्क और लक्षणवाले मरीजों की ही टेस्टिंग होनी चाहिए.


टेस्टिंग के लिए आईसीएमआर ने भी हाल में गाइडलाइंस में बदलाव किए हैं, टेस्टिंग भारत सरकार ने भी काफी बढ़ाई है और अब 12 लाख से ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं लेकिन मैं समझता हूं जब आप ऐसी एपिडेमियोलॉजिस्ट को समझ जाते हैं. तो कुछ जगह जैसे दिल्ली-मुंबई है मैं समझता हूं यहां प्रत्येक व्यक्ति को टेस्ट कराने की आवश्यकता नहीं है. इसमें रिसोर्सेस का इस्तेमाल होता है. टेस्टिंग का हम सही इस्तेमाल करें जो अस्पताल आ रहे हैं या जो हाई रिस्क में है उनको टेस्टिंग की जरूरत है. लेकिन जनरल पब्लिक को अभी नहीं, इससे हमें कुछ हासिल नहीं होगा. जिन शहरों में इसका प्रचार प्रसार कम हुआ है वहां पर सर्विलांस पर्पज के लिए और दूसरी चीजों के लिए टेस्टिंग बढ़ानी चहिए.


वहीं उनका मानना है की आशान्वित हो कर नहीं चलना चाहिए. क्योंकि अगर आती भी है तो उसमें वक्त लगेगा. ऐसे में मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करना और हाथ धोना यही हमारे पास उपचार है जिससे हम इसे फिलहाल रोक सकते हैं. लेकिन केस फिलहाल बढ़ेंगे.


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