स्पेलिंग मिस्टेक होने के चलते बरी हुआ था दो साल की बच्ची के साथ यौन शोषण का आरोपी, HC ने बदला फैसला
तमिलनाडु में एक दो साल की बच्ची का यौन शोषण करने के आरोपी को मुकदमे में स्पेलिंग मिस्टेक होने के कारण बरी कर दिया गया था. अब मद्रास हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए पॉक्सो कोर्ट के फैसले को बदल दिया है.
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तमिलनाडु की मद्रास हाई कोर्ट ने पॉक्सो-एक्ट के आरोपी पर एक बड़ा खुलासा किया है. यहां एक महिला ने अपनी दो साल की बेटी के यौन उत्पीड़न के आरोपी एक व्यक्ति को बरी करने के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिस पर न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन की मद्रास हाई कोर्ट की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए निचली अदालत के फैसले को बदल दिया है.
न्यूज़ मिनट समाचार वेबसाइट के अनुसार यह मामला साल 2017 का है जब एक महिला ने बाजार जाते समय अपनी दो साल नौ महीने की बेटी को पड़ोसी के देखरेख में छोड़ा था. जिसके बाद पड़ोसी ने उसका यौन शोषण किया. बेटी के साथ हुए यौन शोषण का पता लगने पर महिला ने पड़ोसी पर POCSO अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था. वहीं पॉक्सो कोर्ट ने आरोपी पड़ोसी को मुकदमे के दौरान की गई स्पेलिंग मिस्टेक होने के चलते बरी कर दिया था.
फिलहाल मामले में सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने पॉक्सो कोर्ट के फैसले को पलट दिया है. हाई कोर्ट के 2 जुलाई, 2021 के आदेश से पता चलता है कि बचाव पक्ष के वकील ने मुकदमे के दौरान की गई स्पेलिंग मिस्टेक का फायदा उठाया था. दरअसल जब महिला का बयान दर्ज किया गया था, तो अंग्रेजी में "सीमेन" शब्द को तमिल में "सेमेन" के रूप में टाइप किया गया था.
उस दौरान टाइपिस्ट के द्वारा की गई एक गलती से बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि मां ने अपने साक्ष्य में 'सेमन कलर' का जिक्र किया है. जिसका अर्थ लाल रंग की मिट्टी से है. जिसके कारण पॉक्सो कोर्ट में आरोपी को बरी कर दिया गया था. वहीं हाईकोर्ट में याचिका दाखिल होने के बाद मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन ने पॉक्सो कोर्ट के फैसले को पलट दिया है.
मामले में मद्रास हाईकोर्ट की ओर से साफ कहा गया है कि 'ट्रायल कोर्ट भी कभी-कभी अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. वे केवल उचित संदेह से परे सबूत की तलाश कर रहे हैं और जांच में दोष का फायदा उठाकर आरोपी को संदेह का लाभ दे रहे हैं. इस तरह के मामलों में हम सबूत के तकनीकी आधार को ज्यादा महत्व नहीं दे सकते.'
वहीं मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि 'इस मामले में पीड़िता एक बच्ची है, जिस कारण वह अपने बयान और अपराध की व्याख्या नहीं कर सकती है. ऐसे में पीड़िता की मां की बात पर भरोसा करना चाहिए. हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि बच्चा बोल नहीं सकता, इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि अपराधी को कानून के शिकंजे से बचने की इजाजत है.'
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