Bhavya Bishnoi Won Adampur Seat: मंडी आदमपुर के नाम से मशहूर आदमपुर हरियाणा के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. इसे इसलिए भी जाना जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल का परिवार 1968 के बाद से यहां कभी नहीं हारा है. यह सिलसिला रविवार (6 अक्टूबर) को भी जारी रहा, जब भजन लाल के पोते भव्य बिश्नोई ने बीजेपी की टिकट पर 16 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल की. 


भव्य के पिता कुलदीप बिश्नोई ने पार्टी के साथ मतभेदों को लेकर कांग्रेस छोड़ दी और सत्तारूढ़ दल (BJP) में शामिल हो गए, जिसके बाद यहां मतदान आवश्यक हो गया. हालांकि, राजनीतिक निष्ठा में बदलाव से मतदाताओं को कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि उन्होंने एक बार फिर भजन लाल के परिवार में अपना विश्वास जताया. 2019 में सत्ता में आने के बाद से बीजेपी और जननायक जनता पार्टी (JJP) के सत्तारूढ़ गठबंधन की यह पहली उपचुनाव जीत है. चलिए अब उन पांच कारणों की बात करते हैं जिनकी वजह से भव्य बिश्नोई को जीत मिली.


भजन लाल का गढ़, बिश्नोई की जीत आसान


तीन बार के पूर्व सीएम के परिवार ने 1968 के बाद से आदमपुर को कभी नहीं खोया, भले ही उन्होंने किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ा हो. 1967 से कांग्रेस ने आदमपुर में 10 जीत दर्ज की हैं, जबकि भजन लाल छह मौकों पर पार्टी के उम्मीदवार थे. वहीं उनकी पत्नी जसमा देवी ने एक बार पार्टी के लिए सीट बरकरार रखी थी. 2007 में कांग्रेस छोड़ने के बाद, भजन लाल और कुलदीप ने हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) बनाई. HJC उम्मीदवार के रूप में कुलदीप ने 2009 का विधानसभा चुनाव लड़ा और उनकी पत्नी रेणुका ने 2011 का उपचुनाव लड़ा और 2014 में कुलदीप ने फिर से चुनाव लड़ा. तीनों मौकों पर उन्हें जीत मिली.


2016 में कुलदीप ने HJC (BL) का कांग्रेस में विलय कर दिया और आदमपुर 2019 के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर कांग्रेस के खाते में वापस आ गई. हालांकि, हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त नहीं किए जाने के बाद कुलदीप ने इस साल अगस्त में पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में चले गए. आदमपुर में कुलदीप का वोट शेयर पिछले कुछ वर्षों में बढ़ रहा था. 2009 में, उन्हें 48,000 से अधिक वोट मिले. यह 2014 में बढ़कर 56,000 से अधिक और 2019 में 63,000 से अधिक वोट हो गए.


कुलदीप बिश्नोई और उनके परिवार के बीजेपी में शामिल होने के तुरंत बाद पार्टी ने भव्य बिश्नोई को अपना उम्मीदवार घोषित किया, क्योंकि पार्टी जानती थी कि आदमपुर जीतने के लिए उसके पास दूसरों की तुलना में यह बेहतर मौका है.


पॉलिटिकल कैंपने पर दिया गया खास ध्यान


हरियाणा में अगला विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2024 में होना है. उपचुनाव के बाद अब नए विधायक के पास दो साल का समय है. आदमपुर के लोग सरकार का हिस्सा बनना चाहते थे, ताकि उनके प्रतिनिधि निर्वाचन क्षेत्र को सरकार की प्राथमिकता सूची में ऊपर उठा सकें. चार बार आदमपुर का प्रतिनिधित्व करने वाले कुलदीप बिश्नोई ने अपने बेटे के लिए इस एजेंडे पर अभियान चलाया कि वह आदमपुर से ज्यादातर बार विपक्ष में रहे और इसलिए वह विकास के उस स्तर को नहीं ला सके, जिसके वह हकदार हैं. वह मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब रहे कि अगर उनका बेटा चुनाव जीतता है तो वह सरकार का हिस्सा होगा और अगले दो वर्षों में आदमपुर के लिए विकास सुनिश्चित करेगा.


जाति समीकरण


भव्य को तीन मुख्य विपक्षी दलों के तीन जाट उम्मीदवारों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा. कांग्रेस ने तीन बार के सांसद जय प्रकाश को मैदान में उतारा, इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) के उम्मीदवार कुर्दाराम नंबरदार थे और आम आदमी पार्टी (आप) ने सतेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया. तीनों जाट उम्मीदवार हैं और इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि जाट वोट उनके बीच विभाजित हो गए, जबकि बिश्नोई गैर-जाट वोट बैंक को मजबूत करने में कामयाब रहे.


इंडियन एक्सप्रेस पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक, विधानसभा में जाट अधिकतम 55,000 वोटों के साथ हावी हैं, जबकि बिश्नोई समुदाय के मतदाताओं की संख्या लगभग 28,000 है. लगभग 26,000 अनुसूचित जाति (एससी) मतदाता, पिछड़ा वर्ग (ए) श्रेणी के 29,000 मतदाता, 4,800 पिछड़ा वर्ग (बी) वोट, पंजाबी समुदाय के लगभग 4,000 वोट, 750 मुस्लिम मतदाता, 1,900 राजपूत वोट, 75 ईसाई मतदाता और 1,000 सिख वोट हैं.


बीजेपी-जेजेपी गठबंधन का समर्थन


बीजेपी-जेजेपी गठबंधन ने 1 नवंबर को आदमपुर में अपनी ताकत दिखाने के लिए एक विशाल रैली की. सीएम मनोहर लाल खट्टर और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में बीजेपी और जेजेपी के शीर्ष नेतृत्व वाले पूरे राज्य मंत्रिमंडल ने मंच साझा किया और जनता से भव्य बिश्नोई के लिए वोट मांगे. दोनों सत्तारूढ़ दलों ने एक संयुक्त रैली कर अपने-अपने वोट बैंक को बिश्नोई के समर्थन में ट्रांसफर करने में कामयाबी हासिल की. 


कमजोर विपक्ष


कांग्रेस उम्मीदवार जय प्रकाश ने भव्य बिश्नोई को कड़ी टक्कर दी, लेकिन पार्टी का अभियान मुख्य रूप से विपक्ष के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा, राज्यसभा सांसद के आसपास केंद्रित था. रणदीप सुरजेवाला, कुमारी शैलजा और किरण चौधरी सहित कोई अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता आदमपुर अभियान में शामिल नहीं हुए. कुछ कांग्रेसी नेताओं ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्हें आदमपुर में प्रचार करने के लिए भी आमंत्रित नहीं किया गया था. आदमपुर में पूरे अभियान के दौरान, भाजपा-जजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए इसे "बापू-बेटा (पिता-पुत्र)" अभियान बताया. कांग्रेस के लिए शुरू से ही बिश्नोई परिवार के गढ़ में सेंध लगाना एक कड़ा मुकाबला माना जाता था. हालांकि भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र दोनों ने जय प्रकाश के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया, लेकिन यह पर्याप्त साबित नहीं हुआ. 


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