(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'...विश्वसनीयता पर शक नहीं', अडानी समूह को सुप्रीम कोर्ट से राहत, हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच के लिए SIT बनाने की मांग ठुकराई
Adani Hindenburg Case: हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी समूह पर गंभीर आरोप लगाए गए थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जांच की मांग करते हुए याचिका दाखिल की गई. अब शीर्ष अदालत ने इसपर फैसला दिया है.
Supreme Court Verdict In Hindenburg Case: अडानी समूह को लेकर पिछले 1 साल से चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने विराम लगा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए SIT बनाने की मांग ठुकरा दी है. कोर्ट ने कहा है कि मामले की जांच सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी सेबी ने की है और उससे वह संतुष्ट है. याचिकाकर्ता कोई भी ऐसा ठोस आधार नहीं रख पाए हैं, जिसके चलते जांच का ज़िम्मा किसी और एजेंसी को सौंपने की जरूरत लगे.
बेंच ने क्या कहा?
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारडीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि अखबारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर सेबी जैसी संस्था की विश्वसनीयता पर शक नहीं किया जा सकता. सेबी ने मामले से जुड़े 24 में से 22 बिंदुओं की जांच पूरी कर ली है. जिन दो पहलुओं पर जांच लंबित है, उसे भी सेबी 3 महीने में पूरा कर ले. इसके बाद वह अपनी रिपोर्ट के आधार पर ज़रूरी कार्रवाई करे.
अमेरिकी संस्था हिंडनबर्ग रिसर्च की पिछले साल आई रिपोर्ट में अडानी समूह पर गंभीर आरोप लगाए गए थे. इसमें कहा गया था कि अडानी समूह ने स्टॉक मार्केट के नियमों का उल्लंघन करते हुए गलत तरीके से अपने शेयरों की कीमत बढ़ाई. उसने शेयर बाजार में न्यूनतम शेयर जारी करने से जुड़े नियमों का भी उल्लंघन किया है.
सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि हिंडनबर्ग रिसर्च शॉर्ट सेलिंग यानी शेयरों की कीमत गिरा कर लाभ उठाने की प्रक्रिया से जुड़ी संस्था है. सेबी ने भी यह बताया की हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद जिस तरह अडानी के शेयरों की कीमत गिरी, उससे निवेशकों को बहुत नुकसान हुआ. लेकिन कुछ बड़ी संस्थाओं ने इससे काफी फायदा कमाया. सुप्रीम कोर्ट ने अब सेबी से इस पहलू की भी जांच करने को कहा है.
क्या थी याचिकाकर्ता की दलील?
याचिकाकर्ता ने यह दलील भी दी थी कि सेबी ने निवेश से जुड़े नियमों में बदलाव किए. इससे पूरी प्रक्रिया अपारदर्शी हो गई. इसका लाभ उठाकर अडानी समूह ने अपने ही पैसों को विदेश के जरिए अपने शेयरों में लगाया और उसकी कीमत बढ़ाई. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा है कि शेयर बाजार से जुड़े नियम बनाने का काम सेबी का है. कोर्ट को पूरे मामले में ऐसा कोई ठोस आधार नजर नहीं आता कि वह सेबी के इस काम में दखल दे.
सुनवाई के दौरान से भी सेबी के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण पर आरोप लगाया था कि उन्होंने विदेशी मीडिया में लेख छपवाए और फिर उन्हीं के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाए. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अखबारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर वह कोई आदेश नहीं दे सकता. याचिकाकर्ता को ठोस सबूत रखने चाहिए थे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.
जजों ने शेयर बाजार के कामकाज में सुधार पर सुझाव देने के लिए एक विशेषज्ञ कमिटी भी बनाई थी. कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार और सेबी से कहा है कि वह पूर्व जज जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता वाली इस कमिटी की सिफारिशों पर विचार कर उन्हें लागू करे.