कोलकाता: नव नियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी का वाम दलों के साथ गठजोड़ 2021 के विधानसभा चुनावों में “बाजी पलटने वाली” साबित होगा. साथ ही सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और बीजेपी को चेताया कि उनके लिये मुकाबला आसान नहीं होने वाला.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कटु आलोचक चौधरी ने कहा कि उनका ध्यान टीएमसी और बीजेपी के वोट प्रतिशत में सेंध लगाने और प्रदेश की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को बहाल करने पर होगा. उन्होंने कहा कि दोनों दलों की “संप्रदायवादी राजनीति का काफी समय से असर” धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर देखा जा रहा है.
यह पूछे जाने पर कि क्या त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में कांग्रेस टीएमसी को समर्थन देगी, चौधरी ने इसपर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा, “काल्पनिक सवालों का जवाब तभी दिया जा सकता है, जब ऐसी जरूरत पड़े.” प्रदेश में 1967 के विधानसभा चुनावों में आखिरी बार यह स्थिति बनी थी जब किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और तब बांग्ला कांग्रेस और माकपा ने सरकार बनाने के लिये हाथ मिलाया था.
टीएमसी सरकार की “तुष्टिकरण की राजनीति” को बंगाल में बीजेपी के उदय के लिये जिम्मेदार ठहराते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी ने कहा कि वह विपक्षी खेमों में चले गए पार्टी के पुराने नेताओं को वापस लाकर पार्टी को मजबूत करने का प्रयास करेंगे. चौधरी ने कहा, “बंगाल को हमेशा से उसकी धर्मनिरपेक्षता के लिये जाना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में टीएमसी और बीजेपी दोनों ने हालांकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को आगे बढ़ाया है और राज्य को हमेशा से प्रिय रहे धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों को ग्रहण लगाया है.”
उन्होंने कहा, “मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि वाम मोर्चा-कांग्रेस का गठजोड़ बंगाल की राजनीति में बाजी पलटने वाला साबित हो सकता है. साल 2019 के लोकसभा चुनावों से अलग, मैं 2021 के विधानसभा चुनावों को टीएमसी और बीजेपी के लिये आसान नहीं होने दूंगा.”
प्रदेश में अगले साल अप्रैल-मई में संभावित विधानसभा चुनावों में कड़े त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद व्यक्त करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने हालांकि उन बातों को दरकिनार किया कि त्रिकोणीय मुकाबले में आम तौर पर सत्ताधारी दल को फायदा होता है. उन्होंने कहा, “त्रिकोणीय मुकाबले में सत्ताधारी दल को फायदा होने का सिद्धांत गलत है. राजनीति में दो और दो हमेशा चार नहीं होते. हम सत्ताविरोधी मत प्रतिशत में सेंध लगाने के साथ ही टीएमसी के वोट बैंक को भी तोड़ेंगे.”
उन्होंने कहा, “कांग्रेस के कई वफादारों ने पिछले कुछ सालों में दूसरे दलों का दामन थाम लिया था. हम उन्हें वापस लाने का प्रयास करेंगे. वाम-कांग्रेस गठजोड़ विकास, भ्रष्टाचार मुक्त शासन के वादे पर लड़ेगा.” वहीं, टीएमसी और भाजपा के एक ही सिक्के का दो पहलू होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने जानबूझ कर तुष्टिकरण की राजनीति का रास्ता अपनाया जिससे भगवा दल के इसके विपरीत ध्रुवीकरण की राजनीति करने का मार्ग प्रशस्त हो.
उन्होंने दावा किया कि सत्ताधारी दल ने खुद को “मुसलमानों के मसीहा” के तौर पर पेश किया और बीजेपी ने खुद को “हिंदुओं का रक्षक” बताया और उन्होंने कांग्रेस व वामदलों जैसी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों को कमजोर किया. पिछले लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद वामदल और कांग्रेस साथ मिलकर काम कर रहे हैं, फिर चाहे वह उपचुनाव लड़ना हो या किसी जनआंदोलन का आयोजन. चौधरी ने कहा, “हम गठबंधन को अंतिम रूप देने के कगार पर हैं. दोनों दलों के कार्यकर्ता भी गठबंधन के पक्ष में हैं.”
कांग्रेस-वाम दल ने प्रदेश की 294 सदस्यीय विधानसभा के लिये 2016 में हुए चुनावों में 76 सीटें जीतीं थीं जबकि टीएमसी को 211 और बीजेपी को महज तीन सीटें मिलीं थीं. हालांकि, हाल के लोकसभा चुनावों में प्रदेश में बीजेपी ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की और उसे 41 प्रतिशत मत हासिल हुए थे. टीएमसी को 22 सीटें मिली थीं.
कांग्रेस के खाते में छह प्रतिशत मत के साथ दो सीटें आईं जबकि वामदलों का खाता भी नहीं खुला जबकि उन्हें सात प्रतिशत मत मिले थे.
यह भी पढ़ें.
मानसून सत्र शुरू होने से पहले पांच सांसद कोरोना पॉजिटिव, एहतियातन संसद में सुरक्षा बढ़ाई गयी