(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Aditya-L1 Solar Mission: 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद क्या और कैसे स्टडी करेगा आदित्य-एल1?
Aditya-L1 Solar Mission: भारत का सौर मिशन 'आदित्य-एल1' सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च कर दिया गया है. सबको इस पल का बेसब्री से इंतजार है.
ISRO Aditya L1 Mission: सूर्य से जुड़ी जानकारियां जुटाने के लिए मिशन आदित्य-एल1 उड़ान भर चुका है. धरती से करीब 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यह मिशन क्या और कैसे अध्ययन करेगा, इस पर नजरें टिकी होंगी.
मिशन के नाम 'आदित्य-एल1' से ही संक्षेप में इसके उद्देश्य का पता चलता है. सूर्य का एक नाम आदित्य भी है और L1 का मतलब है- लाग्रेंज बिंदु 1. इसरो के मुताबिक, L1 प्वाइंट की दूरी धरती से लगभग 1.5 मिलियन (15 लाख) किलोमीटर है. आदित्य-एल1 को L1 बिंदु की प्रभावमंडल कक्षा में रखकर सूर्य का अध्ययन किया जाएगा.
क्या है लाग्रेंज प्वाइंट और क्यों आदित्य-एल1 को इसमें भेजा जाएगा?
पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा को मिलाकर इस सिस्टम में पांच लाग्रेंज प्वाइंट हैं. इतालवी-फ्रांसीसी गणितज्ञ जेसेफ लुई लाग्रेंज के नाम पर इनका नाम पड़ा है. ये ऐसे बिंदु बताए जाते हैं जहां दो बड़े पिंडों जैसे कि सूर्य और पृथ्वी के ग्रेविटेशनल पुल (गुरुत्वाकर्षण खिंचाव) के कारण अंतरिक्ष में पार्किंग स्थल जैसे क्षेत्र उपलब्ध होते हैं.
आसान तरीके से समझें तो लाग्रेंज प्वाइंट पर सूर्य-पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण कुछ इस तरह बैलेंस होता है कि वहां कोई चीज लंबे समय तक ठहर सकती है. इसीलिए आदित्य-एल1 को लांग्रेज बिंदु 1 में स्थापित करने के लिए लॉन्च किया जाएगा, जहां से यह सूर्य पर हर समय नजर रखकर अध्ययन कर सकेगा, साथ ही स्थानीय वातावरण की जानकारी भी जुटाएगा.
15 लाख किलोमीटर दूर आखिर क्या और कैसे अध्ययन करेगा आदित्य-एल1?
इसरो के मुताबिक, सूर्य की विभिन्न परतों का अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 सात पेलोड ले जाएगा. अंतरिक्ष यान में लगे ये पेलोड इलेक्ट्रोमैग्नेटिक, पार्टिकल और मैग्नेटिक फील्ड डिटेक्टर्स की मदद से फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना का अध्ययन करेंगे.
इसरो के मुताबिक, सात में चार पेलोड सीधे सूर्य का अध्ययन करेंगे और बाकी तीन L1 पर पार्टिकल्स और फील्ड्स का इन-सीटू (यथास्थान) अध्ययन करेंगे. इससे इंटरप्लेनेटरी (अंतरग्रहीय) माध्यम में सौर गतिकी के प्रसार प्रभाव का अहम वैज्ञानिक अध्ययन हो सकेगा.
इसरो के मुताबिक, आदित्य-एल1 के पेलोड के जरिये कोरोनल हीटिंग की समस्या, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर एक्टिविटीज (गतिवधियां) और उनकी विशेषताएं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कण और क्षेत्रों के प्रसार आदि को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी मिलने की उम्मीद है.
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