नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से उस फैसले पर स्पष्टीकरण देने की दरख्वास्त की है, जिसमें आईपीसी की धारा 497 को निरस्त किया गया था. यह धारा व्यभिचार को अपराध करार देती थी. कोर्ट ने इसे इस आधार पर रद्द किया था कि यह स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में कमजोर स्थिति में रखता है. कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर कोई विवाहेतर संबंध बनाता है तो यह तलाक का आधार हो सकता है. लेकिन इसके लिए उसे जेल की सजा नहीं दी जा सकती.


27 सितंबर 2018 को जोसेफ शाइन बनाम भारत सरकार मामले में आए संविधान पीठ के इसी फैसले पर केंद्र ने स्पष्टीकरण मांगा है. केंद्र सरकार ने यह बताया है कि फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सेना की अलग स्थिति पर विचार नहीं किया. आर्म्ड फोर्सेस एक्ट में 'व्यभिचार' को अलग से नहीं लिखा गया है. लेकिन अगर कोई सैन्य अधिकारी दूसरे अधिकारी के पत्नी के साथ संबंध बनाता है, तो इसे 'अवांछित कृत्य' माना गया है. इसके लिए उसके खिलाफ कोर्ट मार्शल की कार्रवाई करते हुए उसे बर्खास्त किया जा सकता है.


सरकार ने बताया है कि सेना की सेवा ऐसी है जहां एक सैनिक को लंबे अर्से तक परिवार से दूर रहना पड़ सकता है. इसलिए, थल सेना, जल सेना और वायु सेना के लिए बनाए गए अलग-अलग एक्ट में इस बात का उल्लेख है कि कोई अधिकारी दूसरे की पत्नी के साथ संबंध बनाए, तो इसे और अवांछित कृत्य माना जाएगा. उसे नौकरी से बर्खास्त किया जाएगा. व्याभिचार को अपराध न बताने वाले फैसले को अगर सेना पर भी लागू किया गया तो इससे अस्थिरता फैल सकती है. सरकार ने कोर्ट को यह भी बताया है कि संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत मौलिक अधिकारों को सेना में सीमित रूप से ही लागू किया गया है.


आज यह मामला जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच के सामने लगा. जस्टिस नरीमन 2018 में आईपीसी 497 पर फैसला देने वाली 5 जजों की बेंच के सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने केंद्र की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए कहा, "यह बेंच अर्जी पर नोटिस जारी कर रही है. लेकिन फैसला संविधान पीठ का था. इसलिए, हम चीफ जस्टिस से आग्रह करेंगे कि वह इस पर आगे विचार के लिए उचित बेंच का गठन करें."


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