Afghanistan Crisis: सुई-धागे से ज़िंदगी के टुकड़ों को संजो रही हैं 'सिलाईवाली' अफगान शरणार्थी महिलाएं, अब कभी अफगानिस्तान वापस नहीं जाना चाहतीं
Afghanistan Crisis: दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन इलाके में 'सिलाईवाली' नाम से हैंडीक्राफ्ट लघु उद्योग चलाने वाले दंपत्ति के यहां अफगान शरणार्थी महिलाएं सिलाई-कढ़ाई, क्रोशिए और बुनाई का काम करती हैं.
Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान में तालिबान की दहशत के चलते पिछले कई सालों से वहां के नागरिक पलायन कर रहे हैं. ख़ासकर महिलाओं को लेकर तालिबान का कट्टर रवैया किसी से छिपा नहीं है. राजधानी दिल्ली में अफगान शरणार्थियों का एक बड़ा तबका रहता है. बीते सालों में तालिबान के ज़ुल्म और दहशत से बचकर दिल्ली आईं अफगान महिलाओं के एक समूह ने जीवन चलाने के लिए अपने परंपरागत हुनर का सहारा लिया है. अपने पारंपरिक सिलाई कढ़ाई के हुनर को 'सिलाईवाली' संस्था के ज़रिये न सिर्फ इन महिलाओं ने ज़िंदा रखा है बल्कि अपना सबकुछ गंवाकर शरणार्थी के रूप में आईं इन महिलाओं के आजीविका का साधन भी है.
दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन इलाके में 'सिलाईवाली' नाम से हैंडीक्राफ्ट लघु उद्योग चलाने वाले दंपत्ति के यहां अफगान शरणार्थी महिलाएं सिलाई-कढ़ाई, क्रोशिए और बुनाई का काम करती हैं. बिश्वदीप मोइत्रा और उनकी फ्रांसीसी मूल की पत्नी ईरीस स्ट्रिल ने दिसम्बर 2018 में 'सिलाईवाली' की शुरुआत हुई थी और आज करीब 70-80 अफगान शरणार्थी महिलाएं यहां काम कर रही हैं और अपने परिवार की आजीविका चला रही हैं. ये सभी महिलाएं हजारा मुस्लिम समुदाय की हैं.
सिलाईवाली की शुरुआत के बारे मे बिश्वदीप मोइत्रा ने बताया कि दिसम्बर 2018 में सिलाईवाली की शुरुआत हुई थी. यहां वेस्ट फैब्रिक से हैंडीक्राफ्ट बनाया जाता है. हमने UNHCR से सम्पर्क करके अफगान शरणार्थी समुदाय के साथ काम करने की साथ शुरुआत की. मेरी पत्नी ईरीस आर्ट एंड क्राफ्ट बैकग्राउंड की हैं. वो भारत मे कई एनजीओ के साथ पहले भी काम कर चुकी हैं, जहां वो क्राफ्ट डिजाइनिंग का काम सिखाया करती थीं. उसी दौरान उन्होंने एक अफगान ग्रुप के साथ भी काम किया था और उन्हें बहुत अच्छा लगा था तभी हमने निर्णय लिया कि हम अफगान ग्रुप के साथ काम करेंगे.
बिश्वदीप मोइत्रा ने बताया कि हम चाहते थे कि काम की जगह वहां बनाएं जहां काम करने वालो को पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आने की ज़रूरत न पड़े. अगर काम करने की जगह पास होगी तो काम करने की प्रोडक्टिविटी बहुत बढ़ेगी, वर्कर के लिए सहूलियत होगी और वो परिवार के करीब भी होंगे. खिड़की एक्सटेंशन में एक बहुत बड़ी आबादी अफगान रिफ्यूजी की रहती है इसलिए हमने यहां ही सिलाईवाली की शुरुआत की.
हमें भारत मे रहना पसंद है यहां मर्दों से ज़्यादा औरतों को इज़्ज़त मिलती है- शबनम
सिलाईवाली में काम करने वाली 23 साल की शबनम अफगानिस्तान में रह रहे अपने परिवार की हालत बताते हुए फफक कर रो पड़ती हैं और भारत का शुक्रिया अदा करती हैं कि उन्हें यहां रहने की जगह मिली. दिसम्बर 2017 में शबनम अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गई थीं. जब वो यहां आईं तो 17 साल की थीं. उनके पिता काबुल में बड़े शेफ थे और नामी लोगों के लिए खाना बनाते थे. घर पर किसी चीज़ की दिक्कत नहीं थी, लेकिन तालिबान के बढ़ते खौफ के चलते उनके पूरे परिवार को काबुल छोड़कर आना पड़ा.
शबनम ने बताया कि मेरे भाई के स्कूल में एक बार ब्लास्ट हो गया था. उसके बाद हमारे स्कूल के पास लड़कियों का एक स्कूल था जिसमें एक बार बेहोशी की गैस छोड़ दी गई थी. इसके बाद से ही हमारे पिता को लगा कि यहां रहना महफूज़ नहीं है फिर हमारा पूरा परिवार दिल्ली आ गया. जब हम बड़े हो रहे थे तब तालिबान के हमले बढ़ गए थे. दसवीं के बाद मैंने पढ़ाई भी छोड़ दी थी क्योंकि वहां हर वक्त खौफ रहता था.
काबुल में अपने परिवार और वहां की यादों के बारे में बात करते हुए शबनम फफक कर रो पड़ती हैं. शबनम ने बताया कि ईद और नवरोज़ पर पूरा परिवार मिलकर खुशियां मनाता था अब वहां दहशत है. जिस हालात में अभी हमारा परिवार वहां रह रहा है वो बहुत मुश्किल है. मेरे मामा हैं, उनकी बेटियां हैं, बुआ हैं वो लोग घर से नहीं निकल पा रहे हैं, खाने पीने की दिक्कत है. जो बाहर निकल रहा है उसे पता नहीं कि वो ज़िंदा वापस आ भी पायेगा या नहीं. हमारे परिवार की एक महिला को कल एयरपोर्ट पर गोली लग गई और उसकी मौत हो गई. जिस दिन तालिबान ने कब्जा शुरू किया उस दिन मेरी बुआ घर से बाहर थी. उनको घर लौटने को कहा रास्ते में आते समय उनके पैर के पास आकर एक रॉकेट फट गया जिसके बाद उनका कान खराब हो गया. काश हमारा परिवार 1 साल पहले ही यहां आ जाता. उन लोगो की हमको बहुत चिंता रहती है. वहां बिजली नहीं है, मोबाइल चार्ज नहीं हो पाता. जब हम कॉल करते हैं और बात नहीं हो पाती तो हम यहां तिल-तिल मरते हैं
भारत में अपनी ज़िंदगी के बारे में बताते हुए शबनम ने कहा कि हमें भारत में रहना पसंद है. यहां मर्दों से ज़्यादा औरतों को इज़्ज़त मिलती है. हम अपनी मर्ज़ी से कहीं भी जा सकते हैं काम पर देर भी हो तो महफूज़ घर वापस आ सकते हैं. सिलाईवाली वाली ने हमें काम दिया हम उनके बहुत शुक्रगुज़ार हैं. मैं पहले 2500 रुपए में एक ब्यूटी पार्लर में काम करती थी. लेकिन यहां आई काम सीखा और आज अच्छी सैलरी मिल रही है. भारत सरकार बहुत अच्छी है कोई किसी भी शहर से आये उनसे अच्छे से पेश आते हैं. किसी को ये नहीं कहा जाता की तुम तालिबानी हो या मुस्लिम हो यहां कोई भेद नहीं है. जैसे लड़के आज़ाद घूम सकते हैं वैसे ही लड़कियां भी आज़ाद घूम सकती हैं दोनों में कोई फर्क नहीं है.
नाखून तक दिखने पर महिलाओं को बेंत से मारते थे तालिबानी- शरीफा
सिलाईवाली में ही काम करने वाली शरीफा की उम्र 46 साल है. वो परिवार के साथ 6 साल पहले हिंदुस्तान आई हैं. उन्होंने तालिबान का शासन भी देखा है और महिलाओं के प्रति उनकी कट्टरता भी. वो बताती हैं कि तालिबानी महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलने देते थे. अगर निकल भी आएं तो हाथों में ग्लव्स पैरों में मोज़े पहनने पड़ते थे आंखों पर भी जाली वाला हिजाब पहनना होता था. हाथ पैर आंखे कुछ भी नहीं दिखना चाहिए था अगर कुछ भी दिखता था तो वो मारपीट करते थे.
शरीफा की 2 बेटियां हैं उन्होंने महिलाओं को लेकर तालिबान की कट्टरता अपनी आंखों से देखी है, यही वजह है कि वो अपने परिवार के साथ भारत आ गईं. उन्होंने बताया कि एक बार एक महिला के नाखून दिख रहे थे तो उसे हाथों पर लकड़ी से मारा था जिसके बाद शरीफा डर से घर वापस चली गई थीं. वहां महिलाएं लिपस्टिक, काजल, नेल-पॉलिश जैसी चीजें लगाकर बाहर नहीं निकल सकती थीं. 12-15 साल की लड़कियों को तालिबानी उठाकर ले जाते थे. बेटी थोड़ी भी जवान हो जाती थी तो वो तालिबान के खौफ से स्कूल जाना बंद कर देती थीं उन्हें डर रहता था कि कहीं तालिबानी उन्हें उठाकर न ले जाएं.
शरीफा का कहना है कि हमारा परिवार अभी भी वहां हैं उनकी सुरक्षा को लेकर बहुत खौफ है. ऐसे हालात हैं वहां अभी कि अगर कोई मर भी गया तो उसकी लाश नहीं मिलेगी. इसीलिए भारत सरकार का मैं बहुत शुक्रिया करती हूं उन्होंने हमें यहां शरण दी, काम दिया हम यहां खुश हैं. सिलाईवाली के ज़रिए हम अच्छा कमा लेते हैं और परिवार चला लेते हैं. हम इनके बहुत शुक्रगुज़ार हैं.
शरीफा और शबनम दोनों का कहना है कि जो हालात हम अब देख रहे हैं हम कभी अफगानिस्तान वापस नहीं जाना चाहते. उनका कहना है कि अल्लाह से दुआ है कि जो लोग वहां फंसे हैं वो भी निकल जाएं.
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