Afghanista Crisis: अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बाद भारत में बढ़ने वाले ड्रग्स व्यापार के मद्देनजर भारतीय एजेंसियों ने कमर कस ली है. इसके तहत संदेहास्पद जहाजों और नाविकों का डाटा रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है. साथ ही ड्रग हॉटस्पॉट की पहचान भी की जा रही है. जल्द ही देश के विभिन्न स्थानों पर बॉडी स्कैनर लगाया जा सकता है और बाहर से आने वाले पार्सलों के लिए नए पैरामीटर बनाए जा सकते हैं.
तालिबान की आय का मुख्य आधार मादक पदार्थों का व्यापार है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में अफीम की जितनी खपत होती है उसका 80 फीसदी हिस्सा अफगानिस्तान में पैदा होता है. अफगानिस्तान से पाकिस्तान होता हुआ यह मादक पदार्थ विश्व के विभिन्न देशों में जाता है और भारत उसका एक मुख्य रास्ता है. एजेंसियों के पास मौजूद सरकारी नक्शे में बताया गया है कि मादक पदार्थ किस तरह से अफगानिस्तान पाकिस्तान से होता हुआ भारत के विभिन्न राज्यों में पहुंचता है और फिर वहां से दूसरे देशों तक पहुंचाया जाता है.
मादक पदार्थों की धरपकड़ में लगे सरकारी एजेंसी के एक आला अधिकारी ने बताया कि भारत में मादक पदार्थों की जितनी खपत होती है प्रतिवर्ष उसमें से मात्र 7-10 फीसदी सामान पकड़ा जाता है जबकि 90 फीसदी सामान पकड़ा ही नहीं जा पाता क्योंकि इस काम में लगा सिंडिकेट हर बार नए रास्तों की तलाश करता रहता है. साथ ही उसके नेटवर्क में अनेक सरकारी अधिकारी भी शामिल रहते हैं.
इस सरकारी नक्शे में स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि मैरिटाइम रूट के रास्ते किस तरह से अफगान पाकिस्तान में बनी हीरोइन को अरेबियन सी और बंगाल की खाड़ी में उतारा जाता है जहां से यह मादक पदार्थ मछली पकड़ने वाली बोटों के जरिए दूसरे स्थानों पर भेजा जाता है.
सरकारी रिकॉर्ड बताता है कि साल मार्च 2021 में त्रिवेंद्रम के पास श्रीलंकाई मछुआरों की वोट से 300 किलोग्राम हीरोइन पकड़ी गई थी जबकि अप्रैल 2021 में कोच्चि के पास श्रीलंका के ही मछुआरों वोट से 337 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई थी. अगर पिछले सालों की बात करें तो साल 2020 में गुजरात मुंबई और कोच्चि के समुद्र से 325 किलो हेरोइन पकड़ी गई थी. अफगानिस्तान में तालिबान का शासन होने के बाद जांच एजेंसियों को शक है कि तालिबान भारत के जरिए अपने ड्रग व्यापार को बढ़ा सकता है और इसमें जल, थल और नभ तीनों रास्ते शामिल हैं.
भारतीय जांच एजेंसियों ने हालातों की समीक्षा कर अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है. सूत्रों ने बताया कि तालिबान के शासन के बाद अब सुरक्षा एजेंसियों ने जांच की नई सीमाएं तय करनी शुरू कर दी हैं. इसके तहत संदेहास्पद जहाजों और संदेहास्पद नागरिकों का डेटाबेस तैयार किया जा रहा है. ऐसे लोगों की बाकायदा प्रोफाइलिंग की जा रही है जो लंबे समय से इस धंधे में लिप्त हैं या फिर बड़ी डील को अंजाम देते हैं. इसके साथ ही ड्रग के नए रूट पर कौन से हॉटस्पॉट हो सकते हैं उनकी पहचान भी की जा रही है. एयरपोर्ट और अन्य जगहों पर एक्स-रे और पकड़ने की नई टेक्नोलॉजी लगाई जा रही है.
एक आला अधिकारी के मुताबिक कोरोना के दौरान यह देखा गया कि कुरियर के जरिए ड्रग का व्यापार 386 फीसदी तक बढ़ा लिहाजा कोरियर पार्सल वालों की पहचान किए जाने और पार्सल लाने या भेजने के नए पैरामीटर बनाए जा रहे हैं.
साथ ही डार्क नेट के जरिए जो ड्रग्स खरीदी बेची जाती है उनकी भी पहचान की जा रही है. आला अधिकारी के मुताबिक भारत की सीमाओं से जुड़ी जितनी भी समुद्री या जमीनी सीमा है वहां सभी चेक पोस्ट पर सख्ती बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं और सरप्राइज चेकिंग दस्तों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है. सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार भी इस बारे में अपने पड़ोसी देशों से कूटनीतिक स्तर पर वार्ता करती रहेगी जिससे ड्रग के काले धंधे पर लगाम लगाई जा सके सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को इलेक्ट्रॉनिक और मैनुअल सर्विलांस बढ़ाए जाने के निर्देश भी दिए गए हैं.
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