काबुल: लंबे समय से अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा रहे सिख अब भारत आने का फैसला कर रहे हैं. उन्होंने ये फैसला उस आत्मघाती हमले के बाद किया जिसमें इस समुदाय के कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई थी. आईएस के इस हमले में हुई मौतों में वहां की संसद में इकलौते सिख अवतार सिंह खालसा और अपने समुदाय के बीच खासी पैठ रखने वाले रवैल सिंह शामिल थे.
देश में 300 के करीब सिख परिवार रह गए हैं
देश छोड़ने का फैसला करने वालों में शामिल तेजवीर सिंह का कहना है कि ये साफ है वो लोग अब वहां नहीं रह सकते. 35 साल के तेजवीर ने इस आत्मघाती हमले में अपने चाचा को खो दिया. उन्होंने आगे कहा कि हमारा धर्म अलग है जिसे यहां कि सरकार से मान्यता प्राप्त है, लेकिन आईएस के आतंकी हमारी धार्मिक आस्था के खिलाफ हैं क्योंकि हम मुसलमान नहीं हैं. आपको बता दें कि वहां अब महज़ 300 के करीब सिख परिवार रह गए हैं जिनके पास सिर्फ दो गुरुद्वारे (एक जलालाबाद और एक काबुल में) हैं.
पहले 250,000 सिख और हिंदू रहते थे
इस मुसलमान बहुल देश में साल 1990 में शुरू हुए सिविल वॉर के पहले 250,000 सिख और हिंदू रहते थे. यूएस डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट में कहा गया कि महज़ एक दशक पहले यहां 3000 के करीब सिख और हिंदू रहते थे. राजनीति में प्रतिनिधत्व होने और अपने धर्म को निभाने की अनुमति होने के बावजूद इनमें से बहुतों को पूर्वाग्रह का शिकार होने पड़ता है, वहीं ये आईएस की हिंसा से भी अछूते नहीं हैं जिसकी वजह से लंबे समय से हज़ारों सिखों और हिदुओं ने भारत का रुख किया है.
मुसलमान हो जाएं या भारत चले जाएं
जलालाबाद में हुए आत्मघाती हमले के बाद सिखों ने भारत के वाणिज्य दूतावास में शरण ली. शहर में किताब और कपड़ों की दुकान के मालिक बलदेव सिंह का कहना है कि उनके पास दो ही विकल्प हैॆ, या तो धर्म बदलकर मुसलमान हो जाएं या भारत चले जाएं. आपको बता दें कि अफगानिस्तान के हिंदुओं और सिखों को भारत लॉन्ग टाइम वीज़ा जारी करता है.