Manipur Election and AFSPA: मणिपुर में सियासी शोर है, चुनाव प्रचार में पूर्वोत्तर में विकास की कहानी के किस्सों का जिक्र हो रहा है, लेकिन ऐसे में एक ऐसी चीज हैं, जिसका जिक्र भी धीरे-धीरे होने लगा है. नागालैंड में हाल ही में हुई हिंसा के बाद वहां AFSPA कानून को हटाने की बात शुरू हुई. इसको लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने असम और नागालैंड के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग की. नागालैंड सरकार के मुताबिक राज्य से AFSPA को हटाने के लिए समिति बना दी गई है. जिसकी सिफारिशों के आधार पर राज्य से AFSPA को वापस लिया जा सकता है.


मणिपुर में अफस्पा मुद्दे पर BJP के लिए मुश्किल
सत्तारूढ़ BJP ने 2017 के चुनाव में कांग्रेस के 15 साल के शासन को खत्म कर दिया था. मणिपुर सहित उत्तर-पूर्वी राज्यों के अधिकांश मुख्यमंत्री AFSPA को निरस्त करने की मांग कर चुके हैं. कांग्रेस ने मणिपुर में विधानसभा चुनाव में सत्ता में आने पर "अफ्सपा को तत्काल और पूर्ण रूप से हटाने" के लिए जोर देने का वादा करके इस मुद्दे को चुनावी हवा दी है. मणिपुर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि कांग्रेस शासन ने 7 विधानसभा क्षेत्रों से AFSPA हटा दिया, अगर कांग्रेस 2022 में सत्ता में वापस आती है तो पहली कैबिनेट बैठक में मणिपुर के पूरे राज्य से अफस्पा को तत्काल और पूर्ण रूप से हटाने पर निर्णय लिया जाएगा. 




BJP का एजेंडा विकास 
BJP जहां इस मुद्दे पर चुप है, वहीं पार्टी ने राज्य में प्रचार तेज कर दिया है. BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा अक्टूबर से अब तक तीन बार मणिपुर का दौरा कर चुके हैं, उन्होंने वहां कई रैलियां की हैं. वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने भी राज्य की विजिट की है. अक्टूबर में अमित शाह ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अपनी यात्रा के दौरान, अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति के दौरान पूर्वोत्तर राज्य से अपने जीवन का बलिदान करने वालों की याद में माउंट हैरियट द्वीप को माउंट मणिपुर के रूप में पुनः नामित किया. नवंबर में राज्य की अपनी यात्रा के दौरान अमित शाह ने कहा कि एन बीरेन सिंह सरकार के तहत कानून और व्यवस्था की स्थिति, शिक्षा, बिजली और अन्य बुनियादी ढांचों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है.


BJP ने मणिपुर में इनर लाइन परमिट (ILP) की शुरुआत पर मतदाताओं को ये याद दिलाया कि ये पार्टी का मणिपुर को सबसे बड़ा उपहार है. इनर लाइन परमिट मणिपुर में कुछ समूहों की लंबे समय से मांग रही है. एक दस्तावेज है कि अन्य राज्यों के भारतीय नागरिकों को सीमित अवधि के लिए संरक्षित क्षेत्र में प्रवेश करने की इजाजत होती है.


दलबदल, अंदरूनी कलह


मणिपुर में BJP पहली बार 2017 में सत्ता में आई थी. भले ही कांग्रेस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. BJP ने एनपीपी, एनपीएफ और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के समर्थन से सरकार बनाई. कांग्रेस ने तब से कई विधायकों का दलबदल करते हुए देखा है, जिसमें इस साल अगस्त में राज्य के पार्टी प्रमुख गोविंददास कोंथौजम भी शामिल हैं. पूर्व मंत्री और बिष्णुपुर से छह बार के कांग्रेस विधायक गोविंददास कोंटौजम BJP में शामिल हो गए.


NPP के लिए भी अफ्सपा है मुद्दा


गठबंधन सहयोगी एनपीपी के साथ दरार की खबरों के साथ यह BJP के लिए भी आसान नहीं रहा है. कॉनराड संगमा की NPP चार में से दो मंत्रियों को कैबिनेट से हटाए जाने से निराश है. अफ्सपा को वापस लेने की मांग करने वाले संगमा ने कहा है कि एनपीपी इस बार अकेले चुनावों में उतरेगी और मणिपुर में लगभग 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. एबीपी सी वोटर के हालिया सर्वे में 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में BJP को 29-33, कांग्रेस को 23-27 और नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) को 2-6 सीटें मिलने की संभावना है जताई गई है. 


क्या है AFSPA ?


दरअसल आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानि (AFSPA) संसद द्वारा बनाया गया कानून है, जिसे साल 1958 में लागू किया गया था. इस कानून को अशांत-क्षेत्र में लागू किया जाता है, जहां राज्य सरकार और पुलिस-प्रशासन कानून-व्यवस्था संभालने में नाकाम रहती है. ये ऐसी 'खतरनाक स्थिति' में लागू किया जाता है जहां पुलिस और अर्द्धसैनिक बल आतंकवाद, उग्रवाद या फिर बाहरी ताकतों से लड़ने में नाकाम साबित होती हैं.


शुरुआत में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड के ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सैन्‍य बलों को इस कानून के जरिए स्पेशल पावर दी गई थीं. हालांकि कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून जम्मू-कश्मीर में भी लागू किया गया.




इस वक्त कहां लागू है AFSPA ?


इस वक्त देश में ये कानून जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के अलावा नागालैंड (Nagaland), असम (Assam), मणिपुर (राजधानी इम्फाल के सात विधानसभा क्षेत्रों को छोड़कर) और अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के कुछ हिस्सों में लागू है. त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय से इस कानून को हटा दिया गया है. नागालैंड से भी गठित की गई समिति की सिफारिशों के बाद इस कानून को हटाया जा सकता है. ऐसे में मणिपुर में इसके राजनीतिक मुद्दे के रूप में सुलगने के आसार हैं.


इरोम शर्मिला का जिक्र भी जरूरी


जब AFSPA के विरोध का जिक्र आता है तो मणिपुर की आयरन लेडी इरोम शर्मिला को नहीं भुलाया जा सकता. साल 2000 में नवंबर के महीने में राज्य में बस स्टैंड के नजदीक सैन्य बलों ने 10 लोगों को गोली मार दी. घटना जिस वक्त हुई, उस वक्त वहां इरोम मौजूद थीं. उन्होंने इस घटना के विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी, जो करीब 16 साल चली. साल 2016 में उनकी भूख हड़ताल खत्म हुई तो इरोम चुनाव के मैदान में भी उतरीं. हालांकि वो जीत हासिल नहीं कर सकीं. 


विरोध में हुआ था नग्न प्रदर्शन


AFSPA का मणिपुर में विरोध साल 2004 में भी शुरु हुआ, जब मणिपर की 30 महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन की वजह ये रही कि सेना के जवानों पर 32 वर्षीय महिला के साथ 10-11 जुलाई 2004 को रेप का आरोप लगाया गया था.


AFSPA का विरोध क्यों?


राज्यों में राजनेताओं के साथ ही समय-समय पर मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस कानून का विरोध करते रहे हैं. आरोप लगता रहा है कि इससे मिली स्पेशल पावर का दुरुपयोग होता रहा है. फेक एनकाउंटर, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत में टॉर्चर जैसे आरोप भी कई मामलों में लगाए जा चुके हैं. इस कानून के तहत अर्धसैनिक बलों पर मामला चलाने के लिए केंद्र की मंजूरी लेनी जरूरी होती है. मणिपुर एनकाउंटर मामलों में सुप्रीम कोर्ट अफस्पा कानून और सेना की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर चुका है.


कब लागू होता है AFSPA


AFSPA तब लगाया जाता है, जब किसी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है. नस्लीय, भाषायी, क्षेत्रीय समूहों, जातियों और समुदायों के बीच मतभेद के चलते भी किसी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित किया जाता है. ऐसे में शांति बहाल करने के उद्देश्य से AFSPA लागू किया जाता है, जिसके तहत आर्म्ड फोर्सेज को स्पेशल पावर मिलती हैं. किसी भी क्षेत्र को केंद्र, राज्य के राज्यपाल, केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय हर छह महीने के लिए (AFSPA) कानून को लागू करता है और जरूरत पड़ने पर फिर से इसे लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर देता है. 


अफस्पा से सैन्य बलों को मिलते हैं ये अधिकार


AFSPA कानून के तहत सैनिकों को बिना किसी अरेस्ट वॉरेंट के किसी भी नागरिक को गिरफ्तार करने का अधिकार है. हालांकि अब गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस के हवाले ही कर दिया जाता है. इसके अलावा गोली चलाने के लिए भी किसी की इजाजत नहीं लेनी पड़ती है. अगर सेना की गोली से किसी की मौत हो जाती है तो उसपर हत्या का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. अगर राज्य सरकार या फिर पुलिस-प्रशासन सैनिक या फिर सेना की किसी यूनिट के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज कर भी लेती है तो अदालत में अभियोग के लिए केंद्र सरकार की इजाजत जरूरी होती है.