कुछ दिन पहले ही असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी अफस्पा (AFSPA) को लेकर बड़ा बयान दिया था. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ट्वीट कर बताया था कि साल 2023 के अंत तक असम राज्य से AFSPA कानून को समाप्त कर दिया जाएगा.


उस ट्वीट के बाद कल यानी 27 मई को असम के डीजीपी जीपी सिंह ने बताया कि राज्य के 35 जिलों में से 28 जिलों से सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (AFSPA) को वापस ले लिया गया है. उन्होंने अपने ट्विटर पर एक ट्वीट करते हुए कहा, 'राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार को देखते हुए 28 जिलों से अफस्पा को वापस ले लिया गया है.' 


ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये अफस्पा है क्या? इसके तहत सुरक्षा बलों को कौन-से विशेष अधिकार मिले हैं?


अफस्पा एक ऐसा कानून है जो भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त अस्तित्व में आया और आज़ाद भारत के सबसे विवादित कानूनों में से एक रहा. यह कानून कभी पंजाब में, तो कभी मणिपुर में कभी त्रिपुरा में तो कभी असम में चर्चा का केंद्र बनाता रहा है. अब असम में सीएम के ट्वीट के बाद एक बार फिर से ये कानून चर्चा में आ गया है.  


असम के मुख्यमंत्री ने ये ऐलान किया है कि अफस्पा को इस साल के अंत तक असम से पूरी तरह हटा दिया जायेगा. वैसे तो करीब पुरे असम से अफस्पा को हटा दिया गया है लेकिन अभी भी 8 जिले और एक सब डिवीज़न ऐसे है जहां ये कानून लागू है. 


असम के मुख्यमंत्री का कहना है कि अब  CAPF को असम पुलिस बटालियनों से बदला जायेगा. उन्होंने कहा कि अब पुलिस कर्मियों को वैसे प्रशिक्षित किया जाएगा. सितंबर 2021 में असम को अशांत क्षेत्र घोषित किया गया था और अगले 6 महीने के लिए अफस्पा  को बढ़ा दिया गया था. लेकिन अब सरकार ने फैसला लिया है कि इसे पुरे राज्य से हटाया जायेगा.  


क्या है अफस्पा कानून?


भारत छोड़ो आंदोलन के समय ब्रिटिश सरकार एक कानून ले कर आई थी जिस कानून को आज़ादी के बाद 1947 में 4 अध्यादेशों के माध्यम से जारी किया गया था. फिर 1958 में तत्कालीन गृह मंत्री जीबी पंत  इस ने कानून को संसद में पेश किया. इस कानून का नाम था अफस्पा जिसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम 1958 में नाम से जाना जाता है. 


इस कानून में क्या है खास  


अफस्पा कानून के अशांत क्षेत्रों में तैनात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने, किसी भी क्षेत्र में बिना किसी वारंट के तलाशी लेने का अधिकार देता है. 


क्यों पड़ी इस कानून की जरूरत 


साल 1951 में नागा नेशनल काउंसिल ने एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह आयोजित किया. जिसमें नागाओं ने फ्री सॉवरेन नागा नेशन के लिए मतदान किया. इसके बाद साल 1952 में जो जनरल इलेक्शन हुए उन्होंने उसे भी बायकाट किया. नॉर्थ ईस्ट के कई इलाकों में आगजनी और लूटपाट देखी गई. इस स्थिति से निपटने के लिए असम सरकार ने 1953 में नागा हिल्स में असम मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर एक्ट लागू कर दिया और विद्रोहियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई तेज कर दी. 


जब स्थिति बिगड़ी, तो असम की राज्य सरकार ने नागा हिल्स में असम राइफल्स को तैनात किया और साल 1955 में असम अशांत क्षेत्र अधिनियम को लागू किया गया और इस तरह अर्धसैनिक बलों और राज्य पुलिस बलों के लिए इस क्षेत्र में उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए एक कानूनी ढांचा तैयार किया गया. 


हालांकि असम राइफल्स और राज्य पुलिस बल नागा विद्रोह को रोक नहीं पाए और विद्रोही नागा राष्ट्रवादी परिषद ने साल 1956 में एक समानांतर सरकार का गठन किया. इस खतरे से निपटने के लिए ही साल 1958 में असम में अफस्पा कानून लागू किया गया. 


इस कानून को सबसे पहले असम और मणिपुर के कुछ इलाकों में ही लागू किया गया था. साल 1972 में इसमें कुछ बदलाव किए गए और इसे अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैंड में भी लागू कर दिया गया. 


AFSPA के जरिए सैन्य बलों को क्या विशेषाधिकार दिए गए?


1. अफस्पा कानून के जरिए सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए विशेष अधिकार दिए जाते हैं


2. कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को चेतावनी देने के बाद सशस्त्र बल उस व्यक्ति पर बल प्रयोग कर सकता है. इसके अलावा फोर्स को उस व्यक्ति पर गोली चलाने की भी अनुमति होती है. 


3. अफस्पा के तहत सैन्य बलों को अगर किसी व्यक्ति पर संदेह होता है तो वह उस व्यक्ति को बिना अरेस्ट वारंट के केवल संदेह के आधार पर गिरफ्तार करने का अधिकार है. इसके अलावा सैन्य बल किसी भी व्यक्ति के परिसर में प्रवेश कर सकती है और उसके घर की तलाशी भी ले सकती है.


4. एक्ट की बड़ी बात ये है कि जब तक केंद्र सरकार मंजूरी न दें, तब तक सुरक्षा बलों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है.


किसी राज्य में अफस्पा कानून कैसे लगाया जाता है?


सबसे पहले उस राज्य के राज्यपाल अपनी रिपोर्ट तैयार करते हैं जिसमें सभी पैरामीटर को देखते हुए उस राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित किया जाता है. राज्यपाल उस रिपोर्ट को केंद्र सरकार को सौंपते है जिसके बाद केंद्र उस रिपोर्ट के आधार पर अफस्पा  लगाती है. 


अशांत क्षेत्र अधिनियम 1976 के अनुसार अगर कोई क्षेत्र या राज्य एक बार अशांत घोषित हो जाता है और वहां अफस्‍पा लगाया जाता है. और एक बार अफस्पा लगाए जाने के बाद उस क्षेत्र में यह कानून कम से कम 3 महीने तक लागू रहता है. 3 महीने पूरे होने के बाद राज्य सरकार केंद्र को इस कानून को हटाने को लेकर अपनी राय दे सकती है. लेकिन आखिरी फैसला केंद्र सरकार का ही होता है. 


अफस्पा को अब तक उत्तर पूर्वी राज्यों, जम्मू एंड कश्मीर और पंजाब में लागू किया जा चुका है. कई क्षेत्रों से इसे कानून को हटाया भी गया जिसमें पंजाब,त्रिपुरा,मेघालय शामिल है. 


असम को पूरी तरह से अशांत क्षेत्र नवंबर 1990 में घोषित किया गया था. फिर इसे हर 6 महीने पर बढ़ा दिया गया था.  लेकिन पिछले साल सरकार ने कुछ क्षेत्र को छोड़ कर  पूरे असम से अफस्पा हटा दिया था और अब सरकार ने फैसला लिया है कि अब बचे हुए 8 जिलों से भी इस साल के अंत तक इस कानून को हटा दिया जायेगा.


ये अशांत क्षेत्र क्या होते हैं?


अशांत क्षेत्र का मतलह है वो इलाके जहां शांति बनाए रखने के लिए सैन्य बलों की मदद बेहद जरूरी है. कानून की धारा 3 कहती है कि किसी भी क्षेत्र को नस्ली, भाषा या विभिन्न धार्मिक, क्षेत्रीय समूहों, जातियों या समुदायों के सदस्यों के बीच मतभेदों  के कारण अशांत घोषित किया जा सकता है. किसी भी राज्य का क्षेत्र को अशांत घोषित करने का काम केंद्र सरकार, राज्य के राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल का है. 


AFSPA को लेकर कब-कब हुआ है विरोध?


मणिपुर की आयरन लेडी: जब भी अफस्पा को लेकर विरोध की बात होती है तो भी मणिपुर की इरोम शर्मिला को सबसे पहले याद किया जाता है. साल 2000 का  नवंबर महीना था जब सैन्य बलों ने एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को गोली मार दी थी. गोली मारते वक्त इरोम शर्मिला वहीं मौजूद थीं. वह इस घटना के विरोध में 16 सालों तक भूख हड़ताल पर रहीं.  अगस्त 2016 में भूख हड़ताल खत्म करने के बाद उन्होंने चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उन्हें नोटा से भी कम वोट मिले. 


महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन: साल 2004 के जुलाई महीने में सेना के जवानों ने कथित तौर पर 32 साल के थंगजाम मनोरमा का रेप कर उसकी हत्या कर दी थी. मनोरमा का शव क्षत-विक्षत हालत में बरामद हुआ था. इस घटना के बाद 15 जुलाई 2004 को लगभग 30 मणिपुरी महिलाओं ने नग्न होकर अफस्पा के सेना बलों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था. 


क्यों होता आया है अफस्पा कानून का विरोध?


जिन राज्यों में अफस्पा कानून लाया गया था वहां की जनता लगातार इसका विरोध करती आई है. जनता के साथ ही मानवाधिकार संगठन और कार्यकर्ता भी इस कानून का विरोध करते रहे हैं. लोगों का आरोप है कि इस कानून की वजह से राज्य में तैनात सेना को जो शक्तियां मिलती हैं, वह उसका गलत इस्तेमाल करते हैं. सेना पर फेक एनकाउंटर, मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत में टॉर्चर जैसे आरोप लगते रहे हैं. क्योंकि अर्धसैनिक बलों पर मुकदमे के लिए भी केंद्र सरकार की मंजूरी होनी चाहिए, इसलिए ज्यादातर मामलों में न्याय भी नहीं मिल पाता है.