नई दिल्ली: CBI Vs CBI की लड़ाई अब केंद्र बनाम राज्य की लड़ाई बनती जा रही है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की राह पर चलते हुए केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की खुली एंट्री पर रोक लगा दी है. यानि अब सीबीआई को कोई भी मामले में कार्रवाई के लिए पहले ममता सरकार से अनुमति लेनी होगी. इससे ठीक पहले आंध्र प्रदेश की सरकार ने सीबीआई की खुली एंट्री पर रोक लगा दी थी. ये फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब सीबीआई अंदरुनी कलह से जूझ रही है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के कारण राज्यों का उन पर से विश्वास कम हो रहा है. तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष बनर्जी और तेलगू देशम पार्टी के प्रमुख नायडू को केंद्र की मोदी सरकार का धुर-विरोधी माना जाता है. दोनों नेता 2019 लोकसभा चुनावों में एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ गठबंधन बनाने के लिए प्रयासरत हैं. बीजेपी ने ममता बनर्जी और नायडू के फैसले को ‘भ्रष्ट दलों द्वारा अपने हितों के बचाव के लिए अधिकारों की स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण कवायद’ करार दिया.
अब क्या होगा?
सीबीआई को अब आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अदालती आदेश वाले मामलों और केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ मामलों को छोड़कर बाकी सभी में किसी तरह की जांच के लिए अनुमति लेनी होगी.
सरकार की क्या है दलील?
आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री (गृह) एन चिना राजप्पा ने कहा कि सहमति वापसी लेने की वजह देश की प्रमुख जांच एजेंसी के शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोप हैं. ताजा सरकारी आदेश (जीओ) के अनुसार, ‘‘दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा छह के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, सरकार दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के सभी सदस्यों को आंध प्रदेश राज्य में इस कानून के तहत शक्तियों तथा क्षेत्राधिकार के इस्तेमाल हेतु दी गई सामान्य रजामंदी वापस लेती है.’’ प्रधान सचिव (गृह) ए आर अनुराधा द्वारा आठ नवंबर को इस संबंध में जारी एक ‘गोपनीय’ सरकारी आदेश गुरुवार की रात ‘‘लीक’’ हो गया.
राजप्पा ने सचिवालय में कहा, ‘‘हमें सीबीआई में भरोसा है लेकिन इसके शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ हाल में लगे आरोपों के कारण हमने सामान्य रजामंदी वापस ले ली. यानी सीबीआई को हर मामले की जांच के लिए राज्य सरकार की अनुमति हासिल करनी होगी.’’ उप मुख्यमंत्री ने दावा किया कि वकीलों और जानकारों की सलाह पर फैसला लिया गया है.
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इसके बाद ही शुक्रवार शाम को पश्चिम बंगाल सरकार ने भी सीबीआई को अपने राज्य में छापे मारने और जांच करने के लिए दी गयी सामान्य रजामंदी वापस ले ली. पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री बनर्जी ने कहा, ‘‘चंद्रबाबू नायडू ने बिल्कुल सही किया है. बीजेपी अपने राजनीतिक हितों के लिए सीबीआई और अन्य एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है.’’
इस साल मार्च में नरेंद्र मोदी नीत सरकार से संबंध तोड़ने के बाद से नायडू आरोप लगाते रहे हैं कि केन्द्र सीबीआई जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने में कर रहा है. कुछ कारोबारी प्रतिष्ठानों पर आयकर अधिकारियों के हालिया छापे से नायडू बहुत नाराज हैं क्योंकि इनमें से कुछ प्रतिष्ठान राज्य की सत्तारूढ टीडीपी के करीबियों के हैं. बाद में उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार छापा मारने वाले आयकर अधिकारियों को पुलिस सुरक्षा मुहैया नहीं कराएगी.
बीजेपी के राज्यसभा सदस्य जीवीएल नरसिंहा राव ने एक बयान में इन फैसलों की आलोचना की है. उन्होंने कहा, ‘‘राज्य सरकार ने सीबीआई में हालिया घटनाक्रम का हवाला कमजोर बहाने के तौर पर किया है और उसकी मंशा भ्रष्टों को बचाने एवं भ्रष्टाचार तथा आपराधिक कृत्यों में शामिल लोगों और संगठनों को राजनीतिक संरक्षण देने की है.’’
बीजेपी नेता राव ने कहा, ‘‘कार्यपालिका की शक्तियों का इस्तेमाल व्यापक जनहित में होना चाहिए. जब कोई नया राजनीतिक गठजोड़ अपने प्रमुख एजेंडे के तौर पर भ्रष्टों को संरक्षण दे तो जनता ऐसे स्वार्थी राजनीतिक दलों को दंडित करेगी.’’