लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में फैसला दिए जाने के बाद अब ध्यान अयोध्या से जुड़े बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले पर केंद्रित होगा. यह विध्वंस 6 दिसंबर, 1992 को हुआ था. यह मामला लखनऊ में विशेष सीबीआई अदालत में अपनी सुनवाई के अंतिम चरण में है. यह मामला मस्जिद के विध्वंस के पीछे की कथित आपराधिक साजिश से जुड़ा है.


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इस मामले में भारतीय राजनीति के कुछ हाई प्रोफाइल नाम आरोपी हैं. यह मामला लगभग तीन दशक से चल रहा है. इस मामले के कुछ आरोपियों का निधन भी हो चुका है. बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े मामले में पहली प्राथमिकी छह दिसंबर, 1992 को मस्जिद गिरने के तत्काल बाद दर्ज की गई थी. यह पहली प्राथमिकी संख्या 197/92, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 और आईपीसी की धाराओं 395, 397, 332, 33, 338, 295, 297, 153ए के तहत अज्ञात 'कारसेवकों' के खिलाफ दर्ज की गई थी.


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इसके बाद दूसरी प्राथमिकी संख्या 198/92, आईपीसी की 153ए, 153बी, 505 धाराओं के तहत लाल कृष्ण आडवाणी, अशोक सिंहल, गिरिराज किशोर, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, विष्णु हरि डालमिया और साध्वी रितंभरा के खिलाफ दर्ज की गई थी. यह विध्वंस से पहले शत्रुता फैलाने के लिए दिए गए भड़काऊ भाषण से जुड़ा था.


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मीडियाकर्मियों के साथ मारपीट, कीमती सामान और रिपोर्टिग उपकरणों को लूटने से जुड़े अपराधों के मामलों में 47 प्राथमिकी दर्ज की गई. सभी प्राथमिकी अयोध्या में राम जन्मभूमि पुलिस थाने में दर्ज की गई. कुछ दिनों बाद सरकार ने विध्वंस मामला नंबर 197 के लिए सीबीआई जांच की सिफारिश की, जबकि दूसरे मामले नंबर 198 को यूपी पुलिस के सीबी-सीआईडी की शाखा को सौंपा. हालांकि, एक साल बाद दूसरे मामले को भी सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई ने बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े 49 मामलों की जांच की और 5 अक्टूबर, 1993 को लखनऊ के एक विशेष कोर्ट में इन मामलों में 40 लोगों के खिलाफ संयुक्त आरोप पत्र दाखिल किया.


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