राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है. वहीं चुनावी मैच के क्वार्टर फाइनल यानी कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस जीत गई है. कर्नाटक में मिली जीत ने कांग्रेस का मनोबल बढ़ा दिया है.
दिसंबर में हिमाचल प्रदेश में मिली सफलता को छोड़ दें तो 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से एक भी राज्यों के चुनाव में खुद की बदौलत कांग्रेस को जीत नहीं मिली थी.
ऐसे में कहीं न कहीं कर्नाटक की जीत कांग्रेस को उस नैरेटिव और धारणा का मुकाबला करने में मदद करेगी कि वह हर बार बीजेपी के साथ आर-पार की लड़ाई में हारती आई है.
आने वाले महीनों में तीन राज्यों में चुनाव होने हैं. इनमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश शामिल हैं. पूरे देश में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा मजबूत है.
जानकार ये मानते हैं कि अगर कांग्रेस कुल 90 सीटों में से 70 से 75 सीटें जीत जाए तो इसमें कोई हैरानी नहीं होगी. वहीं राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की लड़ाई कांग्रेस के लिए बड़ा सवाल बन कर उभरा है. दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच 50-50 का मुकाबला माना जा रहा है.
तीनों राज्यों को लेकर क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार?
पत्रकार ओम प्रकाश अश्क के मुताबिक कांग्रेस छत्तीसगढ़ में 2500 रुपये के धान खरीदी के वादे पर आई थी. इसके अलावा एक क्विंटल पर 300 रुपया बोनस भी अलग से दिया जाता है. ये वादा रमन सरकार ने भी किया था. लेकिन रमन सरकार को बोनस की याद चुनावों के नजदीक आने पर ही आती थी.
बीच के सालों में वो अपने ही किए इस वादे को भूल जाते थे. कांग्रेस के भूपेश बघेल इसी मुद्दे को भुनाते आए हैं. भूपेश बघेल सरकार ने गरीब समर्थक उपाय किए हैं. भूपेश का ये दांव कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है.
इसके अलावा बीजेपी के रमन सरकार पर ये आरोप लगता रहा है कि वो दिल्ली से सरकार चलाते थे. बीजेपी के पास छत्तीसगढ़ में एक मजबूत नेतृत्व का अभाव है. मौजूदा वक्त में रमन सिंह कहीं नहीं हैं.
ऐसे में बीजेपी के सामने नेतृत्व का सवाल होगा. ओम प्रकाश आगे बताते हैं- बीजेपी के अंदर से ये बात आ रही है कि पीएम मोदी को किसी भी राज्य के विधानसभा चुनाव में चेहरा नहीं बनाया जाएगा.
किसानों के अंदर बीजेपी को लेकर नाराजगी
बीजेपी के शासन के दौरान किसान बहुत खुश नहीं थे. छत्तीसगढ़ में एक बड़ी आबादी किसानों की है. किसानों के लिए न्याय योजना भी बघेल सरकार लेकर आई है. इसके अलावा गोधन न्याय योजना, मजदूर न्याय योजना भी कांग्रेस ने ही शुरू किया है. इससे भूपेश बघेल की सरकार को किसानों और मजदूरों के अलग-अलग वर्गों को साधने में आसानी होगी.
एक बड़ा फैक्टर जो कांग्रेस के पक्ष में काम करेगा वो क्षेत्रीय इलाकों में 'छत्तीसगढ़िया' पहचान को बढ़ावा देना है. छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां पर पारंपरिक रूप से काम करने वालों को भी काम मिल रहा है. साफ है कि भूपेश बघेल ने 'छत्तीसगढ़िया सरकार' का कार्ड खेला है.
ओम प्रकाश अश्क ने बताया कि अगर कांग्रेस सरकार पिछले पांच सालों में ज्यादा मजबूत होकर उभरी है. अगर कांग्रेस जीतती है तो ये जीत सीधे तौर पर बघेल की जीत मानी जाएगी.
वो मुद्दे जो कांग्रेस के खिलाफ जा सकते हैं
पत्रकार दीपक तिवारी ने एबीपी को ये बताया कि बीजेपी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर हावी होने की कोशिश कर रही है. सवाल ये भी है कि शराब घोटाले की ईडी-जांच किस हद तक बघेल और उनके बेटे पर असर डालेगी. बीजेपी इसका फायदा उठा सकती है.
टीएस बाबा को लेकर भी सवाल है. अगर टीएस सिंह देव चुनाव से पहले किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो कांग्रेस को झटका लगेगा. 2018 के चुनाव में भी टीएस सिंह देव पार्टी से नाराज हो गए थे.
उन्होंने चुनाव प्रचार से मना कर दिया था. इस बार भी अगर वो नाराज होते हैं और चुनाव प्रचार से मना करते हैं तो पार्टी के लिए एक झटका माना जाएगा.
मध्यप्रदेश में क्या है स्थिति?
मध्यप्रदेश में 2018 तक कांग्रेस बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंची थी. अन्य विपक्षी दलों के सहयोग से मिलकर पार्टी चला रही थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर के चंबल से आते हैं. यहां पर 34 सीटें हैं. यहां से कांग्रेस ने 28 सीट जीती थी. लेकिन सिंधिया अब कांग्रेस से जा चुके है.
पत्रकार हिमांशु शेखर कहते हैं कि सिंधिया के जाने के बाद पार्टी कोई भी चुनाव नहीं लड़ी है. इसका चुनावी नतीजों पर क्या असर पड़ेगा ये देखा जाना अभी बाकी है. नतीजों से निपटने के लिए कांग्रेस किस तरह की तैयारी करती है ये भी देखा जाना अभी बाकी है. शेखर ने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया महत्वाकांक्षी नेता है. वहीं बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान सबसे बड़ा विकल्प हैं. मध्यप्रदेश बीजेपी में मतभेद भी है.
पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने बताया कि ये कहना पूरी तरह से सही नहीं होगा कि बीजेपी में चेहरे को लेकर कोई दिक्कत आएगी. हरियाणा में 2014 के बाद बीजेपी ने अचानक मनोहर लाल खट्टर का चेहरा आगे कर दिया था जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. बीजेपी की इलेक्शन मशिनरी बहुत ताकतवर है.
राजस्थान में गुटबाजी से परेशान कांग्रेस
राजस्थान में 2013 में सचिन पायलट चुनाव जीत कर आए लेकिन अपने समर्थकों को टिकट नहीं दिलवा पाए. न ही मुख्यमंत्री बन पाए. राजस्थान कांग्रेस में शुरू से अदवात चली आ रही है. अब ये अदावत खुले तौर बगावत में बदल गयी है. कुछ दिन पहले जयपुर में शांति धरना भी दिया.
अब खुल कर बोल रहे है कि गहलोत का समर्पण वसुंधरा राजे के लिए है. टॉक से लेकर जयपुर तक मार्च भी निकाल रहे हैं साफ है कि कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. राज्य में पार्टी में गुटबाजी है.
पायलट का बगावती तेवर अपनाए रखना बीजेपी के लिए पॉजिटिव साबित हो सकता है. बीजेपी कांग्रेस के असंतोष का भी उठाएगी. दूसरी तरफ गहलोत का ये दावा कि वो अपनी स्कीम के दम पर चुनाव जीत जाएंगे. लेकिन किसी स्कीम के दम पर कोई चुनाव जीतना या हारना तय किया जा सकता है ये कहा नहीं जा सकता.
पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी की सरकार ने 80 करोड़ गरीबों को लगातार तीन साल से 5 किलो राशन की सुविधा देती आई है. यानी 300 करोड़ की आबादी में कुल 80 करोड़ सीधे तौर पर बीजेपी के वोटर होने चाहिए. ऐसी ही योजना पीएम आवास योजना, आयुष्मान भारत योजना भी है. ऐसी योजनाओं का कोई खास असर वोटिंग पैटर्न पर नहीं पड़ता है.
राजस्थान में अभी कांग्रेस की सरकार है. इस बार राजस्थान में अंतर्विरोध दिख रहे है. ओम प्रकाश अश्क ने बताया कि इस बार राजस्थान में कांग्रेस का अंतर्विरोध पार्टी को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है. पायलट का एक भी कदम कांग्रेस के हितों के खिलाफ जाने का मतलब है सीधा नुकसान राज्य में पूरी कांग्रेस पार्टी को होगा. दूसरा पक्ष ये है कि कुछ राज्य ऐसे हैं जहां पर 'एक बार मैं एक बार तुम' की धारणा चली आ रही है. राजस्थान में अभी कांग्रेस की सरकार है.
विपक्ष अगर मजबूत हुई तो डाल सकती है बीजेपी में सेंध
कर्नाटक में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत पर कई विपक्ष के बड़े नेताओं का कहना है कि ये बीजेपी के अंत की शुरुआत है. ममता बनर्जी ने कहा 'यह साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के अंत की शुरुआत है. कर्नाटक के बाद छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ेगा'.
विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के साथ एकजुटता जताने के लिए बेंगलुरु भी पहुंची थी. ममता बनर्जी शपथ ग्रहण समारोह में नहीं पहुंची थी उन्होंने पार्टी की तरफ से किसी दूसरे नेता को भेजा था. अरविंद केजरीवाल को भी बुलावा नहीं भेजा गया था, लेकिन विपक्ष में उत्साह जरूर है.
पत्रकार दीपक तिवारी ने एबीपी न्यूज को बताया कि कर्नाटक जीत के बाद विपक्ष में उत्साह देखा जा रहा है. कांग्रेस की जीत ने विपक्ष की उम्मीदों को एक नया जोश भर दिया है.