Madras High Court Verdict: मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि एक मां अपनी मृत बेटी की संपत्ति की कानूनी उत्तराधिकारी होती है, इसलिए वह बेटी के गुजारा भत्ता के लिए मिलने वाला बकाया पाने की हकदार है. साथ ही कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली महिला के पूर्व पति की याचिका खारिज कर दी.
अन्नादुरई नामक शख्स का अपनी पत्नी से तलाक हो गया था. इस दौरान मुकदमेबाजी के दौरान उनकी तलाकशुदा पत्नी की मौत हो गई, जिसके बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट ने भरण-पोषण के तौर पर मिलने वाली राशि मृतका की मां को देने का आदेश दिया. यह राशि 6.2 लाख रुपये थी. महिला के पूर्व पति ने निचली अदालत के फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.
क्या कहता है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ?
मद्रास हाई कोर्ट में जस्टिस वी शिवगणनम की पीठ ने 21 अप्रैल को दिए अपने फैसले में कहा, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की उपधारा 1 और 2 को साथ में पढ़ने पर ये साफ हो गया है कि डिक्री के तहत हासिल भरण-पोषण के बकाया को चल और अचल दोनों संपत्ति के रूप में माना जाना चाहिए.
कोर्ट ने आगे कहा, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के अनुसार, भरण-पोषण का बकाया, संपत्ति की प्रकृति का होगा जो कि विरासत में मिला है. हालांकि, भविष्य के गुजारा भत्ता का अधिकार ट्रांसफर या विरासत के योग्य नहीं है.
याचिकाकर्ता पति ने तर्क दिया कि गुजारा भत्ता मृतका का व्यक्तिगत अधिकार था, जो उसकी मौत के साथ ही खत्म हो गया. चूंकि, तलाकशुद पत्नी की मृत्यु पर भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार नहीं बचता, इसलिए उसकी मां कार्यवाही को जारी नहीं रख सकती और भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है.
कोर्ट ने दिया तर्क
पीठ ने तर्क दिया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1) सी के अनुसार एक मां अपनी बेटी की संपत्ति की उत्तराधिकारी होती है. यह सिद्धांत वर्तमान मामले में भी लागू होगा.
कोर्ट ने कहा, कोई शक नहीं कि गुजार भत्ता पत्नी का व्यक्तिगत अधिकार है. जहां तक भविष्य के गुजारा भत्ता का संबंध है, एक व्यक्तिगत अधिकार व्यक्ति की मौत के साथ ही खत्म हो जाता है. जहां बात गुजारा भत्ता के बकाया की आती है, सेक्शन 14 की उपधारा 2 की व्याख्या करने पर यह पत्नी की संपत्ति है और इस पर मां दावे की हकदार है.
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