Bio-Decomposer: पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण दिल्ली और आसपास के राज्यों के बीच लगातार बहस का मुद्दा रहा है. पराली के निस्तारण के लिए दिल्ली सरकार ने पिछले साल बायो-डिकम्पोज़र घोल का छिड़काव करवाया था. बायो-डिकम्पोज़र घोल के असर को देखते हुए इस बार पड़ोसी राज्यों से भी कैप्सूल की मांग तेज़ी से बढ़ रही है. पूसा रोड स्तिथ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की लैब में कैप्सूल निर्माण और घोल बनाने का काम भी तेजी से हो रहा है. abp न्यूज़ ने IARI की इस लैब में काम कर रहे वैज्ञानिकों से बात की.


बायो डिकम्पोज़र कैप्सूल के प्रोडक्शन टीम की प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ लिवलीन शुक्ला ने बताया कि अबकी बार हरियाणा और पंजाब इन दोनों राज्यो में बहुत ज़्यादा डिमांड है. पंजाब सरकार ने 3000 एकड़ में ट्रॉयल के लिए कहा है और हरियाणा सरकार ने 1 लाख एकड़ के लिए मांग की है. इसके अलावा जितने भी कृषि विज्ञान केंद्र है उन सभी से मांग आई हुई है. उत्तर प्रदेश के लगभग सभी कृषि विज्ञान केंद्र में हमने इसको पहुंचा दिया है. दिल्ली के आसपास के जितने कृषि विज्ञान केंद्र हैं वह भी बायो डी कंपोजर को ले रहे हैं. इसके अलावा यूनाइटेड फास्फोरस लिमिटेड कम्पनी ने हमसे यह टेक्नोलॉजी ली है जो अपने स्तर पर हरियाणा और पंजाब में छिड़काव करा रहा है. इस बार जो बदलाव आया है वह बहुत अच्छा है. मुझे लगता है कि पराली से होने वाले प्रदूषण की समस्या इस बार शत-प्रतिशत खत्म हो जानी चाहिए.


IARI के व्हाट्सएप्प नम्बर पर किसान कर सकते हैं सम्पर्क


बायो-डिकम्पोज़र कैप्सूल की मांग को लेकर किसान खुद भी पूसा इंस्टिट्यूट से सम्पर्क कर रहे हैं. ऐसे किसानों के लिए अब IARI ने एक व्हाट्सएप्प नम्बर 8376053310 जारी किया है, जिस पर किसान मैसेज करके कैप्सूल का ऑर्डर भेज सकते हैं. डॉ लिवलीन शुक्ला ने बताया कि बहुत से किसान हमें सीधा संपर्क करते हैं बायो डी कंपोजर के लिए. उनके लिए हमने एक अच्छा विकल्प निकाला है,एक व्हाट्सएप नंबर जारी किया है जिस पर किसी भी राज्य का किसान हमें व्हाट्सएप करके अपना नाम, एड्रेस, पिन कोड, मोबाइल नंबर और जितनी किट चाहिए उसकी संख्या भेज सकते हैं. उसके बाद हम उन्हें IARI का ऑनलाइन पेमेंट का लिंक भेजते हैं. जैसे ही किसान हमें पेमेंट की रसीद भेजते हैं हम उनकी किट पैक करके भारतीय स्पीड पोस्ट से भेज देते हैं. इससे किसान घर बैठे-बैठे ही किट को मंगा सकता है. इसके अलावा हमने 10 से 12 कंपनियों का लाइसेंस दिया हुआ है जो बहुत तेजी से प्रोडक्शन कर रहे हैं, कोई चाहे तो उनसे भी किट ले सकता है.


4 कैप्सूल की कीमत 20 से बढ़कर 50 रुपए की गई है


बायो-डिकम्पोज़र घोल बनाने के लिए पूसा इंस्टीट्यूट ने 4 कैप्सूल की एक किट बनाई है जिससे 1 लीटर से 25 लीटर तक घोल बन सकता है. कैप्सूल से घोल बनाने के लिए गुड़ और बेसन का इस्तेमाल किया जाता है. इस घोल को चाहे तो खेत के अंदर या खेत के बाहर जैसे जिस की सुविधा होती है उस हिसाब से इस्तेमाल कर सकते हैं. डॉ लिवलीन शुक्ला ने बताया कि पिछले साल 4 कैप्सूल की एक किट की कीमत 20 रुपए थी इस बार ये कीमत 50 रुपए है. एक किट से ढाई एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं. इसका सबसे ज़्यादा फायदा किसानों की ज़मीन को होता है. जितने भी पोषक तत्व पुआल में होते हैं कार्बन नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश ये सब मिट्टी में चले जाते हैं. हो सकता है कि आगे रासायनिक उर्वरक के इस्तेमाल का भी कम हो जाए.


घोल तैयार करने की विधि बताते हुए डॉ लिवलीन शुक्ला ने बताया कि 4 कैप्सूल के लिए डेढ़ सौ ग्राम गुड़ लेते हैं और 50 ग्राम बेसन लेते हैं. 5 लीटर पानी में डेढ़ सौ ग्राम गुड़ उबाल दिया जाता है फिर इसे ठंडा करके उसमें 50 ग्राम बेसन डाल दिया जाता है. बेसन पुराना नहीं होना चाहिए. पानी मे घोलने के बाद इसमें चारों कैप्सूल डाल दें. इसको मिलाकर एक पतले कपड़े से ढककर ऐसी जगह पर रखें जहाँ तापमान 37 डिग्री तक रहे. 2 दिन के बाद इसमें फंगस बनना शुरू हो जाएगा. जब ये लेयर मोटी हो जाती है तो दोबारा से गुड़ का घोल बनाकर इसमें डाल दें, दोबारा बेसन न डालें. इसे 25 लीटर तक बनाया जा सकता है उससे ज़्यादा नहीं. 10 लीटर घोल में 200 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव कर लें. 15-20 दिन के अंदर अवशेष इतने गल जाते हैं कि आप दूसरी उपज की बुआई आसानी से कर सकते हैं. धीरे धीरे नीचे पुआल गलता रहता है और ज़मीन की उपज को बढ़ाता है.


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