BJP Changing Strategy: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार ने बीजेपी को अपनी चुनावी रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर दिया है. माना जा रहा है कि इस साल के आखिर में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का चुनावी अभियान कर्नाटक की तरह नहीं होगा.


चार अहम राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. जिसमें से केवल मध्य प्रदेश में ही बीजेपी की सरकार है. राजस्थान में बीजेपी हर चुनाव में सत्ता बदलने के चलन के साथ छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सत्ता विरोधी लहर के उसके पक्ष में होने की उम्मीद लगाए बैठी है.


अब बीजेपी अपनाएगी ये रणनीति?


एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने अनाधिकारिक तौर पर कहा है कि पार्टी ने सभी चार राज्यों में नेतृत्व के मुद्दे और उम्मीदवारों को तय करते समय जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि बीएस येदियुरप्पा को शीर्ष पद से हटाने के साथ जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी को टिकट देने से इनकार करने के फैसले ने लिंगायतों को कांग्रेस की ओर मोड़ दिया. यह कर्नाटक से पार्टी को एक सख्त संदेश है. 


रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अगर जरूरत पड़ती है तो बीजेपी छोटे दलों के साथ चुनावी गठबंधन के लिए भी तैयार है. कई सियासी विश्लेषकों का मानना है कि कर्नाटक में जेडीएस के नेता एचडी कुमारस्वामी के साथ गठबंधन करने से बीजेपी को कुछ सीटों पर मदद मिलना तय था.


हालांकि, सबसे बड़ा बदलाव, केंद्रीय नेताओं और राज्य के मुख्यमंत्रियों पर अत्यधिक निर्भरता के बजाय स्थानीय नेताओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा. कर्नाटक में स्थानीय नेताओं को चुनावी अभियान चलाने की अनुमति देना कांग्रेस के लिए अच्छा साबित हुआ है.


गुटबाजी को खत्म करने के लिए लेंगे कड़े फैसले


बीजेपी के लिए गुटबाजी भी एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभर कर सामने आई है. इसके चलते जगदीश शेट्टार जैसे नेताओं को टिकट नहीं दिया गया. राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी के लिए गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, क्योंकि यहां के नेताओं में आपसी तालमेल नजर नहीं आता है. आसान शब्दों में कहें तो बीजेपी को गुटबाजी खत्म करने के लिए अपनी रणनीति बदलनी होगी.


सूत्रों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पार्टी का चेहरा बने रहेंगे, लेकिन उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और बीडी शर्मा जैसे अन्य नेताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए कहा जाएगा. 2020 में बीजेपी में शामिल होने वाले सिंधिया और उनके तमाम करीबियों को पार्टी में बाहरी के तौर पर देखा जाता है. इस स्थिति में चुनाव के मद्देनजर टिकटों का वितरण कलह से भरी प्रक्रिया हो सकती है.


बड़े और स्थानीय चेहरों को दी जाएगी वरीयता


राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को केंद्रीय नेतृत्व के साथ कमजोर तालमेल के बावजूद वरीयता देने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि, इसके साथ ही किरोड़ी लाल मीणा, गजेंद्र सिंह शेखावत, सतीश पूनिया और अन्य विभिन्न जाति समूहों से संबंधित राज्य के नेताओं को भी महत्व दिया जाएगा.


छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल, अरुण साव को महत्व दिया जाएगा और तेलंगाना में बंदी संजय कमार, ई राजेंद्रन, जी किशन रेड्डी पार्टी के प्रमुख चेहरे होंगे. सूत्रों के अनुसार, कर्नाटक कांग्रेस की तरह ही राज्य के नेताओं को अपने मतभेदों को दूर करने और एक संयुक्त मोर्चे के तौर पर खुद को पेश करने के लिए कहा जाएगा.


इसके साथ ही जनाधार वाले वरिष्ठ नेताओं को चुनावी रणनीति तैयार करने में लगाया जाएगा. मध्य प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल रहेगा. जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को महत्व दिया जाएगा. सूत्रों ने कहा कि मुद्दों, वादों और रणनीति को तय करने में उनकी प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.


ये भी पढ़ें:


कर्नाटक में फाइनल हुआ CM का नाम! आज होगा आधिकारिक ऐलान? डीके शिवकुमार पहुंचेंगे दिल्ली