मरीजों की किडनी पर कैसे गहरा प्रभाव डाल रहा है कोरोना वायरस, पढ़ें ये रिसर्च
मुंबई के केईएम हॉस्टिल के नेफ्रोलॉजिस्ट तुकाराम जमाले की रिसर्च अस्पताल में भर्ती हुए कोविड मरीजों और उनसे जुड़ी बीमारियों पर आधारित है.
मुंबई: केईएम अस्पताल के डॉक्टर्स के मुताबिक मार्च-अगस्त महीने में कोरोना से ठीक हुए 50 फीसदी मरीजों की किड़नी पर गहरा असर हुआ है. डॉक्टर्स के मुताबिक 50 फीसदी मरीज वो हैं जिनकी उम्र 50 से अधिक है और संक्रमित होने से पहले वे एकेआई यानी एक्यूट किडनी इंजरी (Acute Kidney Injury) से जूझ रहे थे. कोरोना की वजह से अब मरीजों की किडनी पर भी गहरा असर हो रहा है. स्वस्थ होने के लिए डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट ही एक मात्र उपाए है.
मुंबई के केईएम अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट तुकाराम जमाले की रिसर्च अस्पताल में भर्ती हुए कोविड मरीजों और उनसे जुड़ी बीमारियों पर आधारित है. जमाले के मुताबिक, मार्च महीने के बाद 44 मरीज किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और यह असर कोरोना के बाद हुआ है. इसमें सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि मरीजों की उम्र 50 से अधिक है और पहले से किसी छोटी बीमारी से जूझ रहे थे. इस रिसर्च के बारे में जानने के बाद एबीपी न्यूज़ ने इस रिसर्च को करने वाले तुकाराम जमाले से बातचीत की.
नेफ्रोलॉजिस्ट तुकाराम जमाले ने बताया कि लंग फाइब्रोसिस के बाद अब हमने ये पाया है कि कोरोना मरीजों की किडनी पर गहरा प्रभाव डाल रहा है. काफी सारे मरीज डालयसिस के बाद भी रिकवर नहीं कर पा रहे हैं. यह मरीज 50 से ऊपर की उम्र के हैं. 50 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें पहले से किडनी या डिबेटिस की बीमारी है लेकिन उन्हें पहले डायलिसिस की ज़रूरत नहीं थी लेकिन अब कोरोना से ग्रस्त होने के बाद उन्हें डायलिसिस की ज़रूरत है और किडनी ट्रांसप्लांट की भी और ये चौंकाने वाली बात है.
डॉक्टर तुकाराम का कहना है कि हॉस्पिटल में 66 मरीज हैं. रिकवर कर घर लौटे हैं और ये वो मरीज हैं जिन्हें डायलिसिस की ज़रूरत पड़ी लेकिन 44 फीसदी अभी भी डालयसिस पर हैं. कारण देखें तो उम्र इसमें सबसे फैक्टर है और दूसरा कि वो पहले से ही माइल्ड बीमारी से जूझ रहे थे.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि किडनी टिश्यू पर कोरोना काफी असर पड़ रहा है. युवाओं को भी खास ध्यान देना है. क्योंकि लोगों में अब डर नहीं है. सर्दियों में काफी ध्यान देना होगा. लंग के साथ-साथ शरीर के कई अन्य हिस्सों पर इसका काफी असर हुआ है. तीन महीने के निगरानी के बाद मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की ज़रूरत है या नहीं ये देखते हैं और ज़रूरी है तो उन्हें ट्रांसप्लांट के लिए कहते है.
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