नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा सबक हैं. जिस पार्टी को 2 साल पहले विधानसभा की 70 में से 67 सीटें मिलीं उसे नगर निगम की 270 सीटों में से सिर्फ 47 सीटें मिलीं. ये नतीजे अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर भी सवाल उठा रहे हैं.


केजरीवाल के लिए खतरे की घंटी


दिल्ली के बाद पंजाब, गोवा और गुजरात में अपनी जड़े जमाने की कोशिश में केजरीवाल अपना घर भी नहीं बचा पाए. ये केजरीवाल के लिए खतरे की घंटी है. उनके पास अभी भी दिल्ली में 3 साल का वक्त है लेकिन उन्हें जल्द से जल्द ये तय करना होगा कि इन 3 सालों में वो वापस दिल्ली की जनता का भरोसा जीत पाएंगे या उनकी पार्टी सिर्फ एक बुलबुला बनकर रह जाएगी.


केजरीवाल जिस दिल्ली को अपना किला समझते थे उसमें भी सेंध लग गई. एमसीडी के चुनाव में आम आदमी पार्टी के 40 उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई. 2 साल पहले दिल्ली में धमाकेदार जीत हासिल करने वाली पार्टी अब इस हालत में पहुंच गई है कि उसका राजनीतिक वजूद खतरे में पड़ता दिख रहा है.


MCD के साथ मिलकर काम करेगी हमारी सरकार: अरविंद केजरीवाल

2 दिन पहले तक ईंट से ईंट बजाने का दावा करने वाले केजरीवाल नतीजों के बाद सामने भी नहीं आए. हालांकि उनकी पार्टी के सिपहसालार सुबह से ही हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने की कोशिश में लगे रहे लेकिन आखिरकार केजरीवाल ने एक ट्वीट करके एक तरह से हार को स्वीकार कर लिया. केजरीवाल ने लिखा कि तीनों नगर निगम में जीत पर बीजेपी को बधाई देता हूं. हमारी सरकार एमसीडी के साथ मिलकर काम करेगी.


बढ़ती गई केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा


2 साल पहले दिल्ली की जनता ने जब केजरीवाल को छप्पर फाड़ कर सीटें दी थीं, तो केजरीवाल ने वादा किया था कि वो अगले 5 सालों तक दिल्ली के लिए काम करेंगे लेकिन 2 सालों में ही केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ती गई. दिल्ली के बाद पंजाब, गोवा और अब गुजरात में भी केजरीवाल को अपनी पार्टी के लिए उम्मीदें नजर आने लगीं. दिल्ली की जनता इससे खुश नहीं थी. इसका पहला सबूत राजौरी गार्डन विधानसभा के उपचुनाव में मिला जब बीजेपी ने आप से वो सीट छीन ली और अब एमसीडी चुनाव में भी दिल्ली वालों ने आप को जमीन पर ला दिया.

दिल्ली नगर निगम चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के बाद प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि दिल्ली की जनता ने हुंकार भर दिया है. अब सिंहासन खाली करना पड़ेगा. जिस पार्टी को 70 में 67 सीट मिलती हों उसको 272 में 67 वॉर्ड न मिले. तो वहीं अन्ना हजारे ने कहा, ''गोवा की सोच, पंजाब की सोच, यूपी की सोच, अरे इसको मॉडल बनाओ तो बाकी बातें अपने आप हो जाएंगी. इतना जल्दी नहीं करना चाहिए लेकिन वो जल्दी किया इसके कारण लोगों को समझ में आ गया कि इनके दिमाग में सत्ता है, समाज और राष्ट्र नहीं है.''


केजरीवाल लोगों का भरोसा खोते रहे तो पार्टी का क्या होगा ?

बड़ी बड़ी बातें और दावे करने वाली आम आदमी पार्टी को पंजाब में सिर्फ 20 सीटें मिलीं तो गोवा में उसका खाता भी नहीं खुला. इसके बावजूद पार्टी ने कोई सबक नहीं सीखा. हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा और इसके लिए भी केंद्र की मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा दिया. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि अगर इसी तरह केजरीवाल लोगों का भरोसा खोते रहे तो उनकी पार्टी का आगे क्या होगा ?


खतरे में पड़ सकती है दिल्ली की सरकार

एमसीडी की हार के बाद दिल्ली विधानसभा में भी केजरीवाल के लिए खतरे की घंटी बज रही है. इसकी वजह उनके 21 विधायकों पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस है. माना जा रहा है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर की मंजूरी लिए बिना अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने के मामले में केजरीवाल सरकार को झटका लग सकता है. तो वहीं वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी के मुताबिक बीजेपी की कोशिश होगी कि उनकी सदस्यता रद्द हो और दिल्ली में बहुत जल्द उप चुनाव हों और अगर वो उपचुनाव हुए तो हो सकता है कि आप इन 21 में से एक भी सीट नहीं जीते. ऐसे में उनकी दिल्ली की सरकार खतरे में पड़ सकती है.

केजरीवाल के इस्तीफे की मांग अभी से ही शुरू हो गई है. तो वहीं पार्टी के अंदर से भी सवाल उठने लगे हैं. ऐसे में केजरीवाल के लिए अब न सिर्फ दिल्ली का किला बचाने की चुनौती है बल्कि अपनी पार्टी को एकजुट रखना भी आसान नहीं होगा.