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आखिर क्यों OBC आरक्षण बन गया है ठाकरे सरकार के लिए गले की फांस ?

Local body Polls in Maharashtra: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार ने कल कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर स्थानीय निकाय चुनाव को 3 महीने आगे बढ़ाने की विनती चुनाव आयोग से की है

OBC Reservation In Maharashtra: ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला महाराष्ट्र सरकार के गले की फांस बन गया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि निकाय चुनाव में कोई ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जाएगा जो 27 फ़ीसदी सीटें इसके तहत आरक्षित की गईं है उसे सामान्य सीट में तब्दील कर चुनाव कराए जाएं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना जरूरी सूचनाएं जुटाए यह आरक्षण देने का फैसला लिया गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार ने कल कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर स्थानीय निकाय चुनाव को 3 महीने आगे बढ़ाने की विनती चुनाव आयोग से की है. राज्य सरकार ने भले ही गेंद चुनाव आयोग के पाले में डाल कर चुनाव आगे बढ़ाने की विनती की हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग चुनाव आगे बढ़ाएगा इसकी उम्मीद कम ही है.

ओबीसी आरक्षण का मुद्दा सरकार पर पड़ सकता है भारी

आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय की आबादी लगभग 5 करोड़ है किसी भी राजनीतिक दल के समीकरण बनाने और बिगाड़ने में ओबीसी समुदाय निर्णायक साबित हो सकता है इस बात का अंदाजा सत्ता में बैठी शिव सेना एनसीपी कांग्रेस के साथ विपक्षी दल बीजेपी को भी है लिहाजा सरकार हो या विपक्ष हर कोई इस समुदाय के साथ खड़ा होता दिखाई दे रहा है.

महाराष्ट्र में 10 बड़ी महानगर पालिकाओं के निकाय चुनाव आने वाले वक्त में होने वाले हैं लिहाजा ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को सरकार जल्द लागू नहीं कर सकी तो इसका राजनीतिक नुकसान भी सरकार को उठाना पड़ सकता है . साल 2019 में ठाकरे सरकार जब सत्ता में आई उसी वक्त सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा जरूरी डेटा न दिए जाने के चलते ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण पर रोक लगा दी थी. उस वक्त से ही विपक्ष में बैठी बीजेपी सरकार पर इस मुद्दे पर ढीला रवैया अपनाने का और ओबीसी समाज को अनदेखा करने का आरोप लगा रही है. 

सच्चाई यह भी है कि कई महीनों तक सरकार में बैठी पार्टियां जरूरी डेटा मुहैया कराने के लिए सरकार पर आरोप लगाती रही तो इस डाटा को जमा करने के लिए महत्वपूर्ण पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना कर प्रक्रिया करती दिखी लेकिन जिस गति की आवश्यकता डाटा एकत्रित करने के लिए जरूरी थी वह करने में सरकार नाकामयाब रही है.
 
फडणवीस ने ठाकरे सरकार पर फोड़ा ठीकरा

महाराष्ट्र की राजनीति में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा काफी महत्वपूर्ण है इसलिए तमाम दल आरक्षण के पक्ष में खड़े नजर आते हैं ओबीसी आरक्षण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के बड़े फैसले के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने भी बयान देते हुए सरकार से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का जल्द से जल्द पालन करने को कहा है
 
फडणवीस ने साफ कहा जो बात पिछले साल भर से बीजेपी सरकार से कह रही है उसी बात को आज सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है केंद्र सरकार के पास जिस सिम पर कल डाटा की मांग ठाकरे सरकार कर रही थी वह उपयोगी नहीं है सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने कहा कि ट्रिपल टेस्ट के लिए डाटा बैकवर्ड क्लास कमिशन तैयार करेगा हम सरकार से मांग करते हैं कि इस पूरे प्रोसेस को 3 महीने में पूरा किया जाए हम ओबीसी आरक्षण के बिना भविष्य में चुनाव बर्दाश्त नहीं करेंगे.

मंत्री नवाब मलिक का संघ पर हमला

सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण पर लगाई रोक के बाद महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर संघ का एजेंडा चलाने का आरोप लगाया है मलिक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओबीसी के मुद्दे पर अलग भूमिका होती है जबकि संसद में वह अलग बयान देते हैं आरक्षण प्रणाली को रद्द करने की संघ की भूमिका को केंद्र सरकार एजेंडे के तहत आगे बढ़ा रही है और यही वजह है कि ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट को केंद्र की भूमिका की वजह से रोक लगानी पड़ी

ओबीसी समाज को राजनीतिक आरक्षण महाराष्ट्र में कब मिला

1 मई 1962 को महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम 1961 में यह कानून अस्तित्व में आया. पंचायती राज को अपने राज्य में लागू करने वाला महाराष्ट्र 9वां राज्य बना. साल 1992 में देश में मंडल आयोग लागू हुआ. उसके बाद साल 1994 में महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति के अधिनियम 1961 में बदलाव करते हुए 12(2) सी नई धारा जोड़ते हुए ओबीसी समाज को 27 फ़ीसदी राजनीतिक आरक्षण दिया गया. यानी स्थानीय निकाय चुनाव में 27 फ़ीसदी ओबीसी समाज के उम्मीदवारों को आरक्षण रहेगा.

SC/ST समाज के लोगों को दिया आरक्षण यह संवैधानिक है जबकि ओबीसी राजनीतिक आरक्षण यह राज्य विधान सभा ने दिया हुआ वैधानिक आरक्षण है. ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है . वैधानिक का मतलब राज्य सरकार ने विधानमंडल में कानून पास कर आरक्षण लागू किया है.

ओबीसी राजनीतिक आरक्षण रद्द क्यों हुआ

29 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया. जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने वाशिम,भंडारा,अकोला,नागपुर और गोंदिया यह 5 जिलों के स्थानिक निकाय चुनाव में ओबीसी उम्मीदवारों का आरक्षण रद्द कर दिया. जिला पंचायत और पंचायत समिति अधिनियम 1961 की कलम 12 के तहत ओबीसी को 27 फ़ीसदी राजनीतिक आरक्षण सरकार द्वारा दिया गया है. लेकिन इन 5 जिलों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की वजह से आरक्षण की 50 फ़ीसदी मर्यादा का पालन नहीं हो रहा है. स्थानिक निकाय चुनाव में ओबीसी और एससी एसटी मिलकर 50 फ़ीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं लिया जा सकता.

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