अवमानना की चेतावनी के बाद सेना ने 11 महिला अधिकारियों को दिया स्थायी कमीशन, SC ने जताई थी कड़ी नाराज़गी
12 मार्च 2010 को हाई कोर्ट ने शार्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में आने वाली महिलाओं को सेवा में 14 साल पूरे करने पर पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था.
सेना में स्थायी कमीशन के लिए लंबे अरसे से कानूनी लड़ाई लड़ रही 11 महिला अफसरों को आखिरकार आज उनका अधिकार मिला. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अवमानना की कार्रवाई की चेतावनी के बाद सेना ने अपनी आपत्ति को वापस ले लिया. पिछले साल 17 फरवरी को इस मसले पर कोर्ट के ऐतिहासिक आदेश के बाद अधिकतर महिला अधिकारियों को सेना ने स्थायी कमीशन दे दिया था. लेकिन 11 अधिकारियों की फ़ाइल अलग-अलग वजह से रोकी हुई थी.
क्या है मसला
12 मार्च 2010 को हाई कोर्ट ने शार्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में आने वाली महिलाओं को सेवा में 14 साल पूरे करने पर पुरुषों की तरह स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था. रक्षा मंत्रालय इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार तो कर लिया, लेकिन हाई कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई. सुनवाई के दौरान कोर्ट का रवैया महिला अधिकारियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रहा.
आखिरकार, हाई कोर्ट के फैसले के 9 साल बाद सरकार ने फरवरी 2019 में 10 विभागों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नीति बनाई. लेकिन यह कह दिया कि इसका लाभ मार्च 2019 के बाद से सेवा में आने वाली महिला अधिकारियों को ही मिलेगा. इस तरह वह महिलाएं स्थाई कमीशन पाने से वंचित रह गईं जिन्होंने इस मसले पर लंबे अरसे तक कानूनी लड़ाई लड़ी.
आज क्या हुआ
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और ए एस बोपन्ना की बेंच के सामने आज इस मसले पर एक अवमानना याचिका सुनवाई के लिए लगी थी. इसमें बताया गया था कि कोर्ट के फैसले के बाद भी सेना ने कई महिला अधिकारियों की फ़ाइल रोके रखी. 72 में से 1 अधिकारी ने खुद ही सेवानिवृत्ति ले ली. लंबी प्रक्रिया के बाद भी 14 अधिकारियों की फ़ाइल अब भी अटकी है. 3 को स्वास्थ्य आधार पर खारिज किया गया है. लेकिन 11 को पुराने सर्विस रिकॉर्ड और दूसरे आधार पर रोका गया है.
दोनों जजों ने इस पर कड़ा एतराज जताया. सेना की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ने जजों को आश्वस्त करने की कोशिश की. लेकिन बेंच का यह कहना था कि जिन महिलाओं को पहले अनुशासनात्मक अनुमति मिल चुकी है, उन्हें नए आधार पर उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. जजों ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मामला है. सेना अपनी जगह पर सर्वोच्च है. लेकिन जब मामला संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का हो तो सुप्रीम कोर्ट ही सर्वोच्च है. इसके बाद बेंच ने आदेश लिखवाना शुरू कर दिया. स्थिति को भांपते हुए सेना के वकील ने जजों से दोपहर 2 बजे तक का समय मांग लिया.
दोपहर 2 बजे सेना की तरफ से जानकारी दी गई कि वह 11 महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने को तैयार है. कोर्ट ने इस पर संतोष जताते हुए मंजूरी दे दी.