नई दिल्ली: भारतीय अधिकारी अमेरिकी अधिकारियों से अगले हफ्ते मुलाकात करने वाले हैं. मुलाकात भारत के मित्र देश ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों और उससे भारत-ईरान के रिश्तों पर पड़ने वाले असर के सिलसिले में होने वाली है. ईरान पर न्यूक्लियर हथियार बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाकर अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने देश पर ताज़ा प्रतिबंध लगाए हैं. अब अमेरिका चाहता है कि भारत, चीन समेत 11 बड़े देश ईरान से तेल लेना बंद कर दें. चीन ने इससे साफ इंकार कर दिया है, लेकिन भारत पर इस दबाव का असर दिख रहा है.


ईरान से तेल लेने में कमी लाने पर फैसला लेने से पहले भारत चाहता है कि अमेरिका उसे चाबहार बंदरगाह के इस्तेमाल की वजह से ईरान के मामले में रियायत दे. यूएन में अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि निकी हेली पिछले हफ्ते जब भारत दौरे पर आई थीं, तब उन्होंने ईरान से तेल लेने में कमी लाने वाला बयान जारी करके भारत पर सरकार पर दबाव बनाने का काम किया था.


आपको बता दें कि अभी तक सरकार ने इसपर स्थिति साफ नहीं की है कि ईरान से तेल के आयात का भविष्य क्या होगा. आपको ये भी बता दें कि ड्यूटी बढ़ाने के फैसलों के बाद भारत-अमेरिका पहले से एक दूसरे के साथ ट्रेड वार की स्थिति में हैं.


अमेरिका ने जारी की है 11 देशों की लिस्ट
अमेरिका ने 11 देशों से कहा है कि वो ईरान से तेल लेना बंद कर दें. इन 11 देशों की लिस्ट में भारत का भी नाम शामिल है. अमेरिका ने ईरान पर जो ताज़ा प्रतिबंध लगाए हैं उसके तहत वो चाहता है कि ये 11 देश और इससे जुड़ी कंपनियां ईरान से तेल लेना बंद कर दें. एक सावल के जवाब में एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि ट्रंप के देश ने भारत और चीन को भी उन देशों की लिस्ट में शामिल किया है जिनसे चार नवंबर के बाद ईरान से तेल का कारोबर बंद कर देने की उम्मीद जताई जा रही है. लेकिन चीन इसे मानता नज़र नहीं आ रहा.


अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि भारत और चीन इस लिस्ट में सबसे बड़े और ज़रूरी देश हैं क्योंकि उनकी एनर्जी की ज़रूरतें बहुत ज़्यादा हैं. ऐसे में ईरान पर लगे प्रतिबंध का इन देशों और इनकी कंपनियों को पालन करना होगा. अधिकारी ने याद दिलाया कि साल 2015 के पहले भी अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगा रखे था. ताज़ा प्रतिबंधों के तहत ये तय किया जाएगा कि भारत और चीन जैसे देशों का ईरान के साथ तेल व्यापार शून्य पर चला जाए.


अमेरिका का मानना है कि भारत-चीन समेत लिस्ट में शामिल 11 देशों और इनसे जुड़ी कंपनियों को अभी से ईरान के साथ तेल के व्यापार में कमी लाना शुरू कर देना चाहिए और चार नवंबर तक इसे ज़ीरो पर ले आना चाहिए.


मई में परमाणु समझौते से अलग हुआ था अमेरिका
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मई महीने में ईरान के साथ हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने की घोषणा की थी. ओबामा के समय के इस समझौते की ट्रंप पहले ही कई बार आलोचना कर चुके हैं. समझौते से अलग होते हुए ट्रंप ने कहा था, ‘‘मेरे लिए यह साफ है कि हम ईरान को परमाणु बम बनाने से नहीं रोक सकते. ईरान समझौता कई खामियों से भरा और एकतरफा है.’’


अलग होने के बाद उन्होंने ईरान के खिलाफ ताजा प्रतिबंधों वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे और बाकी के देशों को ईरान के विवादित परमाणु कार्यक्रम पर उसका साथ देने के खिलाफ चेतावनी दी थी. ट्रंप ने कहा था कि इस समझौते ने ईरान को बड़ी मात्रा में धन दिया और इसे परमाणु हथियार हासिल करने की तरफ बढ़ने से नहीं रोक सका.


अपने चुनाव प्रचार के दौरान ही ट्रंप ने ओबामा के कार्यकाल में किए गए ईरान परमाणु समझौते की कई बार आलोचना की थी. उन्होंने समझौते को खराब बताया था. इस समझौते की मध्यस्थता करने वाले तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी थे. जुलाई 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों और जर्मनी (P5+1) के अलावा यूरोपीय यूनियन के बीच वियना में ईरान परमाणु समझौता हुआ था.


क्या था समझौता और क्यों हुआ फेल
ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते के मुताबिक ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम के भंडार को कम करना था और अपने परमाणु संयंत्रों को निगरानी के लिए खोलना था, बदले में उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में रियायत दी गई थी.


डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाए कि ईरान समझौते के बाद भी दुनिया से छिपकर अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखे हुए है जिसके बाद ईरान ने चेतावनी दी है कि अगर समझौता फेल हुआ तो वो पहले से कहीं ज्यादा यूरेनियम का संवर्धन करेगा.


इसी सब के बीच अमेरिका चाहता है कि भारत और चीन जैसे दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले दो बड़े देश ईरान से तेल लेना बंद कर दें. आपको बता दें कि ईरान, भारत का एक अहम मित्र देश है. उनकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तेल पर निर्भर है. ऐसे में अगर भारत इसके आयात में किसी तरह की कटौती करता है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.