Row Over Age in Muslim Marriages: तीन तलाक (Triple Talaq), हलाला (Nikah halala) और हिजाब विवाद (Hijab Controversy) के बाद अब मुस्लिम लड़कियों (Muslim Girls) की शादी की उम्र (Nikah Age) को लेकर बवाल मचा है. मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) में निर्धारित शादी की उम्र को लेकर विवाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) की अध्यक्षता वाली बेंच 7 नवंबर को मामले पर सुनवाई करेगी.
दरअसल, सोमवार (17 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट बाल अधिकार संरक्षण राष्ट्रीय आयोग (NCPCR) यानी बाल आयोग की उस याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया जिसमें पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी गई है.
पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, एक 16 वर्षीय लड़की के निकाह को जायज ठहराया है. पिछली सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता शीर्ष अदालत में बेंच के समक्ष मुद्दे को अहम बताया था. बेंच ने मामले में एमिकस क्यूरी यानी न्याय मित्र के तौर पर एडवोकेट राजशेखर राव को नियुक्त किया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले से बाल विवाह कानून और पॉक्सो अधिनियम प्रभावित होगा. अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी हैं.
पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में आया मामला क्या था
इसी साल जून में एक नव विवाहित मुस्लिम दंपति ने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट से सुरक्षा मांगी थी. दरअसल, इस शादी में लड़की की उम्र 16 वर्ष और लड़के की आयु 21 साल थी. दंपति ने याचिका में कहा था कि उनका परिवार इस निकाह के खिलाफ है, इसलिए वे माननीय अदालत से सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं.
13 जून को हाई कोर्ट में जस्टिस जेएस बेदी की सिंगल बेंच ने कहा कि मुस्लिम लड़कियों का निकाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से होता है, जिसमें लड़कियों की निकाह योग्य उम्र 15 वर्ष बताई गई है. कोर्ट ने कहा कि परिवार की नाराजगी संविधान से मिलने वाले मौलिक अधिकार में बाधा नहीं बन सकती है, इसलिए दंपति को सुरक्षा दी जाएगी.
क्या है पेंच?
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु में शादी करना कानूनन अपराध है. ऐसे मामलों को बाल विवाह माना जाता है. ऐसी शादियां कराने वाले लोग भी अपराधी माने जाते हैं.
भारत में 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को नाबालिग माना जाता है. पॉक्सो कानून 2012 के तहत नाबालिग लड़कियों से शारीरिक संबंध बनाना अपराध है. यही वजह है कि 16 वर्ष की लड़की निकाह के मामले में पेंच फंस गया है और इसे सुलझाने के लिए शीर्ष अदालत को न्याय मित्र भी नियुक्त करना पड़ा है.
ट्रिपल तलाक
मुस्लिम महिला का पति अगर एक ही बार में तीन बार तलाक बोलकर रिश्ता तोड़ ले तो इसे तीन तलाक कहते हैं. चिट्ठी, एसएमएस और फोन कॉल के जरिये भी तीन तलाक के मामले सामने आए. भारत में अब यह गैर-कानूनी है.
इन मामलों को लेकर देश में लंबी बहस चली. आखिर 19 सितंबर 2018 को भारत में तीन तलाक कानून यानी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम लागू कर दिया गया था. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मुहर लगने के बाद कानून अमल में आ गया था.
निकाह हलाला पर बहस
हलाला यानी निकाह हलाल पर अभी भारत में प्रतिबंध नहीं है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर सुनवाई चल रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट 1937 की धारा-2 निकाह हलाला और बहुविवाह को मान्यता देती है. इसी के साथ जानकार मानते हैं कि निकाह हलाला से भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14, 15 और 21 का उल्लंघन होता है.
तीन तलाक पीड़िता की दोबारा अपने पति के पास वापसी के लिए उसे निकाह हलाला से गुजरना होता है. इसमें करना यह होता है कि महिला किसी दूसरे शख्स से शादी करती है, यहां तक कि उसके साथ शारीरिक संबंध बनाती है और फिर उससे तलाक लेकर अपने पूर्व पति से शादी करती है. इस पूरी प्रक्रिया को निकाह हलाला कहा जाता है. हालांकि, यह भी कहा जाता है कि महिला जब दूसरे शख्स से शादी करती है तो वह उसे तलाक के लिए मजबूर नहीं कर सकती है.
हिजाब विवाद
इसी साल मार्च में कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्कूल-कॉलेज में ड्रेस कोड के नियम को सही ठहराया था और हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा मानने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि छात्राओं को स्कूल-कॉलेज के ड्रेस कोड के नियम का पालन करना होगा. कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. मामले 24 याचिकाएं दायर की गईं.
13 अक्टूबर में मामले में सुनवाई हुई लेकिन दो जजों की बेंच ने बंटा हुआ फैसला दिया. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सही माना. वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. अब मामले पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई करेगी. तब तक कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला लागू रहेगा.
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