Talaq-E-Hasan: तलाक-ए-हसन के खिलाफ एक और याचिका, अब मुंबई की महिला पहुंची सुप्रीम कोर्ट
Talaq-E-Hasan In SC: यूपी के बाद अब मुंबई की एक महिला मुस्लिम समाज में प्रचलित तलाक-ए-हसन व्यवस्था को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है और इस व्यवस्था को खत्म करने की गुहार लगाई है.
Talaq-E-Hasan In SC: मुस्लिम समाज में प्रचलित तलाक-ए-हसन व्यवस्था से पीड़ित महिलाओं का सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचना जारी है. अब मुंबई (Mumbai) की रहने वाली नाजरीन निशा ने कोर्ट में याचिका दाखिल की है. इस याचिका में तलाक-ए-हसन (Talaq-E-Hasan)और ऐसी दूसरी व्यवस्थाओं को निरस्त करने की मांग की गई है. दो मई को गाजियाबाद की बेनजीर हिना (Benazir Hina) ने भी ऐसी मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी. इन याचिकाओं में कहा गया है कि तलाक-ए-हसन जैसी व्यवस्था पुरुषों को अपनी मर्जी से शादी खत्म करने का एकतरफा अधिकार देती है. यह मुस्लिम महिलाओं (Muslim Women) को असमानता की स्थिति में रखता है.
सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत पर लगाई थी रोक
22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ 3 तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था. तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस व्यवस्था को लेकर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं का भी मानना था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है. कोर्ट के फैसले के बाद सरकार एक साथ तीन तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाला कानून भी बना चुकी है. लेकिन तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन जैसी व्यवस्थाएं अब भी बरकरार हैं. इनके तहत पति 1-1 महीने के अंतर पर 3 बार लिखित या मौखिक रूप से तलाक बोल कर शादी रद्द कर सकता है.
नाजरीन निशा ने दायर की है याचिका
नाजरीन निशा की याचिका में बताया गया है कि जब उन्हें टीबी की बीमारी हो गई, तो पति अकरम ने जबरन मायके भेज दिया. उसके बाद धीरे-धीरे दूरी बढ़ानी शुरू कर दी. करीब 8 महीने तक कोई संपर्क न करने के बाद, अब मोबाइल पर टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए 2 बार तलाक देने की सूचना भेज दी है. आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार की नाजरीन का कहना है कि उसे नहीं पता वह आगे जीवन-यापन कैसे करेगी. पति को अपनी मर्ज़ी से शादी खत्म करने का अधिकार, पत्नी के उस मौलिक अधिकार का हनन करता है, जिसके तहत संविधान हर नागरिक को सम्मान से जीने का हक देता है.
तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक करार दें
वकील आशुतोष दुबे के ज़रिए दाखिल याचिका में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को कानून की नज़र में समानता (अनुच्छेद 14) और सम्मान से जीवन जीने (अनुच्छेद 21) जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता. इसलिए, सुप्रीम कोर्ट तलाक-ए-हसन और अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दे. शरीयत एप्लिकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 रद्द करने का आदेश दे. साथ ही डिसॉल्युशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 को पूरी तरह निरस्त करने का आदेश दे.
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