नई दिल्ली: संसद में पारित किये गये तीनों कृषि बिलों के विरोध में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार बहुमत के नशे में चूर है. राज्यसभा में नियमों की अनदेखी कर के अफ़रा-तफ़री में पारित किए गए किसान बिलों का विरोध करने के लिए 25 सितम्बर से देश भर में किसान चक्का जाम करेंगे. भारतीय किसान यूनियन ने इसे किसान कर्फ़्यू का नाम भी दिया है.


किसान यूनियन की मुख्य आपत्तियां




  1. राज्यसभा में बिना चर्चा के पास हुए बिल. देश की संसद के इतिहास में पहली दुर्भाग्यपूर्ण घटना है कि अन्नदाता से जुड़े तीन कृषि विधेयकों को पारित करते समय न तो कोई चर्चा की और न ही इस पर किसी सांसद को सवाल करने का सवाल करने का अधिकार दिया गया. टिकैत ने कहा कि यह भारत के लोकतन्त्र के अध्याय में काला दिन है.

  2. अगर देश के सांसदों को सवाल पूछने का अधिकार नहीं है तो सरकार महामारी के समय में नई संसद बनाकर जनता की कमाई का 20000 करोड रूपया क्यों बर्बाद कर रही है?

  3. आज देश की सरकार पीछे के रास्ते से किसानों के समर्थन मूल्य का अधिकार छीनना चाहती है. जिससे देश का किसान बर्बाद हो जायेगा.

  4. मण्डी के बाहर खरीद पर कोई शुल्क न होने से देश की मण्डी व्यवस्था समाप्त हो जायेगी. सरकार धीरे-धीरे फसल खरीदी से हाथ खींच लेगी.

  5. किसान को बाजार के हवाले छोड़कर देश की खेती को मजबूत नहीं किया जा सकता. इसके परिणाम पूर्व में भी विश्व व्यापार संगठन के रूप में मिले हैं.


आर-पार की होगी लड़ाई, सरकार को करना होगा समझौता 


भारतीय किसान यूनियन ने कहा कि किसान अपने हक की लडाई को मजबूती के साथ लड़ेंगे. सरकार अगर हठधर्मिता पर अड़िग है तो किसान भी पीछे हटने वाले नहीं हैं. 25 तारीख को पूरे देश का किसान इन बिलों के विरोध में सड़क पर उतरेगा. इसके लिए देश भर के किसानों में जन जागृति अभियान चलाया जा रहा है. जब तक कोई समझौता नहीं होगा तब तक पूरे देश का किसान सड़कों पर रहेगा. इस सम्बन्ध मंगलवार को एक ज्ञापन जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर को सौंपा गया है. जिसमें हजारों किसान शामिल हुए थे.


जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर को सौंपे गए ज्ञापन में क्या कहा गया है ?  


प्रधानमंत्री को सम्बोधित इस ज्ञापन में किसानों की ओर से कहा गया है कि-




  1. केन्द्र सरकार द्वारा 5 जून को लागू किये गये अध्यादेशों का देश के किसान विरोध कर रहे हैं. हालांकि केन्द्र सरकार इन अध्यादेशों को एक देश एक बाजार के रूप में कृषि सुधार की दशा में एक बड़ा कदम बता रही है. यह अध्यादेश अब कानून की शक्ल ले चुके हैं.

  2. वहीं देश के किसान क़ानून बन चुके इन अध्यादेशों को, यानी दोनों सदनों से पास हो चुके तीनों किसान विधेयकों को, कृषि क्षेत्र में कम्पनी राज के रूप में देख रहे हैं. कुछ राज्य सरकारों ने भी इसे संघीय ढांचे का उल्लंघन मानते हुए इन्हें वापस लिये जाने की मांग की है. देश के अनेक हिस्सों में इसके विरोध में किसान आवाज उठा रहे हैं.

  3. किसान जानते हैं कि इन तीनों नए कानूनों के कारण प्राइवेट कम्पनियाँ उनका जो हाल करेंगी वो बन्धुआ बना लिए जाने के बराबर ही होगा.

  4. कृषि में कानून नियंत्रण मुक्त, विपणन, भंडारण, आयात-निर्यात, किसान हित में नहीं है. इसका खामियाजा देश के किसान विश्व व्यापार संगठन के रूप में भी भुगत रहे हैं.

  5. देश में 1943-44 में बंगाल के सूखे के समय ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अनाज भंडारण के कारण 40 लाख लोग भूख से मर गये थे.

  6. समर्थन मूल्य कानून बनाने जैसे कृषि सुधारों से किसान का बिचौलियों और कम्पनियों द्वारा किया जा रहा अति शोषण बन्द हो सकता है और इस कदम से किसानों के आय में वृद्धि होगी.


मांग-1 : किसान बिलों से जुड़े अध्यादेशों को तुरंत वापस लिया जाए  


(अ)  कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार अध्यादेश 2020    (कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अध्यादेश 2020  (स) आवश्यक वस्तु अधिनियम संशोधन अध्यादेश 2020  कृषि और किसान विरोधी तीनों अध्यादेशों को तुरंत वापिस लिया जाये.


मांग-2: एमएसपी पर क़ानून बने  


न्यूनतम समर्थन मूल्य को सभी फसलों पर (फल और सब्जी) लागू करते हुए कानून बनाया जाये. समर्थन मूल्य से कम क़ीमत पर फसल खरीदने को अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाए.


मांग-3: सरकारी मंडी और फसल ख़रीदी का क़ानून बने  


मण्डी के विकल्प को जिन्दा रखने के लिए आवश्यक कदम उठायें जाएं एवं फसल खरीद की गारंटी के लिए कानून बनाया जाए. क़ानून में ये स्पष्ट हो कि प्राइवेट मंडियों की अधिकता हो जाने पर भी सरकारी मंडियां बंद नहीं होंगी बल्कि प्रतिस्पर्धा की भावना से किसानों के हित में काम करती रहेंगी.


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