CAA-NRC, कृषि कानून और अग्निपथ योजना... मोदी सरकार के इन बड़े फैसलों पर जमकर हुआ बवाल
Modi Government Big Decisions: मोदी सरकार ने ऐसे कई बड़े फैसले लिए जिस पर काफी बवाल हुआ है. अग्निपथ योजना को लेकर हिंसा की कई घटनाएं हुईं, तो वही कृषि कानूनों, CAA -NRC को लेकर भी बवाल मचा था.
Modi Govt Five Big Decisions That Led To Violence: केंद्र सरकार ने 'अग्निपथ' (Agnipath Scheme) योजना को जैसे ही लॉन्च किया देशभर में हिंसा की चिंगारी सुलग उठी. सेना में भर्ती (Army Recruitment) का सपना देख रहे युवा सड़क पर उतर आए. कई शहरों में विरोध-प्रदर्शन, आगजनी और हिंसा की घटनाएं सामने आईं. कई जगह ट्रेनों की बोगियों में आग लगा दी गई. लोगों ने देश के कई हिस्सों में तोड़फोड़ की. बिहार, यूपी, राजस्थान से लेकर दक्षिण भारत में भी सरकारी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया गया.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 4 साल के लिए सेना की भर्ती को लेकर अग्निपथ योजना शुरू की थी लेकिन अग्निवीर बनने के लिए युवाओं को ये योजना बिल्कुल रास नहीं आई. इसके बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं सामने आई. विपक्षी दलों ने भी छात्रों के आंदोलन का साथ देते हुए इस योजना को वापस लेने की मांग की.
मोदी सरकार के बड़े फैसले जिस पर हुआ बवाल
अग्निपथ योजना
मोदी सरकार ने अब तक कई ऐसे बड़े फैसले लिए जिसके बाद काफी बवाल हुआ है. देश में कई जगह हिंसा की घटनाएं देखी गई हैं. ताज घटना अग्निपथ योजना को लेकर हुई है. आर्मी में भर्ती को लेकर जब सरकार ने अग्निपथ योजना लागू की तो छात्रों ने इसे नकार दिया. उनका कहना था कि चार साल के बाद वो क्या करेंगे? राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, तेलंगाना से लेकर बिहार के कई जिलों में युवाओं ने विरोध प्रदर्शन और आगजनी की. कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने भी अग्निपथ योजना की कड़ी आलोचना करते हुए इसे जल्द से जल्द वापस लेने की मांग की.
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन
केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2020 में 3 विवादस्पद कृषि कानून लाए. इस कानून के विरोध में देश के किसान सड़क पर उतर आए थे. कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए 25 नवंबर 2020 से विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ. हजारों की संख्या में किसानों ने मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा से राष्ट्रीय राजधानी की ओर मार्च किया. दिल्ली के बॉर्डर्स पर कई KM तक वो टेंट लगाकर डंटे रहे. ट्रैक्टर्स और टेंट में इन किसानों ने ठंड और बरसात बिताई लेकिन वो हटे नहीं. किसान नेता राकेश टिकैत और दूसरे किसान यूनियन के नेतृत्व में किसान आंदोलन का दबाव बढ़ता गया. विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार के रूख में परिवर्तन आया. आखिरकार 19 नवंबर 2021 को मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को निरस्त करने की ऐतिहासिक घोषणा की. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि शायद उनकी तपस्या में ही कोई कमी रह गई होगी.
CAA-NRC को लेकर प्रदर्शन
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम (2019) और NRC लेकर आई. लोगों ने इसका भी जमकर विरोध किया. विवादास्पद CAA कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के पीड़ित गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान करता था. ये कानून दिसंबर 2019 में संसद से पारित किया गया था. CAA के पारित होने के बाद से ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने इसका जमकर विरोध किया. प्रदर्शनकारियों का मानना था कि CAA असंवैधिक है और ये अल्पसंख्यक समुदायों के साथ भेदभाव करता है. शाहीनबाग में अल्पसंख्य समुदाय की महिलाएं भी धरने पर बैठी रहीं. शाहीनबाग की तरह देश के दूसरे हिस्से में भी विरोध प्रदर्शन हुए थे.
नोटबंदी पर बवाल
8 नवंबर 2016 का दिन हर किसी के जेहन में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक इस दिन मीडिया से मुखातिब होते हुए नोटबंदी की घोषणा की. उन्होने भारतीय अर्थव्यवस्था से काले धन को बाहर करने के लिए 500 और 1000 रुपए के नोटों को अमान्य घोषित कर दिया. अगले दिन से ही लोग एटीएम की लाइनों में खड़े थे. नोट बदलने के लिए बैंकों में काफी भीड़ जुटी. लोगों ने सरकार के इस फैसला का काफी विरोध किया. इसमें कई बार सरकार ने नियम बदले. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने नोटबंदी के फैसला का जमकर विरोध किया. कई जगहों पर तोड़फोड़ और हिंसा की घटनाएं भी सामने आई थीं.
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर भी मोदी सरकार (Modi Govt) को काफी विरोध का सामना करना पड़ा था. मोदी सरकार का दावा था कि इस अध्यादेश से जमीन अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास कानून, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार में संशोधन किया जायेगा. काफी विरोध के बीच इस अध्यादेश को फरवरी 2015 में लोकसभा में पेश किया गया था. मार्च 2015 में यह लोकसभा (Lok Sabha) में पारित तो हो गया लेकिन राज्यसभा में यह पारित नहीं हो पाया. सबसे ज्यादा विरोध उस प्रावधान को लेकर हुआ जिसमें सहमति की बात थी. इससे पहले तक सरकार और प्राइवेट कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति जरूरी होती थी. वहीं सरकारी योजना में सहमति 70 फीसदी थी लेकिन नए कानून में ये बाध्यता ही खत्म कर दी गई थी. कई विफल कोशिशों और भारी विरोध के बाद केंद्र ने प्रस्तावित सुधारों को वापस लेने का फैसला लिया.
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