केंद्र सरकार ने इसी साल भारतीय सेना में जवानों की नई भर्ती योजना अग्निपथ की शुरुआत की. अब इस योजना के जरिए हो रही जवानों की भर्ती प्रतिक्रिया को लेकर नेपाल की सरकार ऊहापोह में है. भारत के पड़ोसी देश में साल 2022 के नवंबर महीने के आखिर में चुनाव होने वाला है और चुनाव से पहले अग्निपथ का मुद्दा शेर बहादुर देउबा सरकार के लिए सिर दर्द बना हुआ है. फिलहाल सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती जिससे पार्टी को किसी तरह का नुकसान हो.  


वहीं दूसरी तरफ चार साल के लिए सेना में भर्ती के लिए लाई गई 'अग्निपथ' योजना को लेकर नेपाल की विपक्षी पार्टियों ने शेर बहादुर देउबा सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है. विपक्षी पार्टियां भारत में लाए गए इस योजना का विरोध कर रहीं हैं. जैसी चिंता भारत में थी, वैसी ही वहां भी जताई जा रही है. विरोध करने वालों का कहना है कि चार साल बाद ये युवा क्या करेंगे? 


दरअसल, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने अपने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि गोरखा सैनिकों की भारतीय सेना में काफी लंबे समय से भर्ती की जा रही है और अग्निपथ योजना के तहत भी गोरखा सैनिकों को भर्ती की जाएगी. नेपाल के गोरखा नौजवानों को भारतीय सेना में अग्निपथ योजना के तहत ही भर्ती किया जाएगा. लेकिन नेपाल सरकार इस अग्निपथ स्कीम को लेकर संतुष्ट नहीं है. ऐसे में नेपाल ने केंद्र सरकार को भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की भर्ती से पहले उनसे बातचीत करने को कहा था. 


नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने इस योजना को लेकर अगस्त में विदेश मंत्री नारायण खड़का और विदेशी मामलों पर अपने सलाहकार के साथ मीटिंग भी की थी. इसी मुद्दे पर नेपाल के विदेश मंत्री और भारतीय राजदूत नवीन श्रीवास्तव की भी मुलाकात हो चुकी है.




क्या है अग्निपथ योजना 


अग्निपथ योजना का ऐलान इसी साल जून के महीने में किया गया था. इस योजना का ऐलान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था. जिसके तहत साढ़े 17 साल से 21 साल के युवा आने वाले चार साल के लिए तीनों सेनाओं में अपनी सेवा दे पाएंगे. सेना में भर्ती होने वाले इन युवाओं को 'अग्निवीर' कहा जाएगा. इस योजना के तहत इस साल 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती होनी है. वहीं चार साल बाद इनमें से 25 प्रतिशत को सेना में शामिल किया जाएगा, जबकि बाकी के 75 प्रतिशत अग्निवीरों को सेवा मुक्त कर दिया जाएगा. चार साल बाद सेवा से मुक्त हुए अग्निवीरों को कोई पेंशन नहीं मिलेगी. 


कौन हैं गोरखा सैनिक?


दरअसल भारत के पड़ोसी देश, नेपाल के सैनिकों को गोरखा कहा जाता है. यह नाम पहाड़ी शहर गोरखा से आया है. इसी शहर से नेपाली साम्राज्य का विस्तार हुआ था. गोरखा नेपाल के मूल निवासी हैं और इस  नाम को 8वीं सदी में हिंदू संत योद्धा श्री गुरु गोरखनाथ ने दिया था. 
 
गोरखा सैनिकों की गिनती दुनिया के सबसे खतरनाक सैनिकों में की जाती है. भारतीय सेनी के फील्ड मार्शल रहे सैम ने एक बार PTI से बात करते हुए कहा था,'अगर कोई कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता, तो वो या तो झूठ बोल रहा हैं या गोरखा सैनिक है.' 


नेपाली सेना भारतीय सेना में क्यों लेते हैं भर्ती 


नेपाली जवानों की भारतीय सेना में भर्ती क्यों होती है इस सवाल के जवाब के पीछे 200 साल पुराना इतिहास है. दरअसल 1814 में भारत पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था. अग्रेज नेपाल पर भी कब्जा करना चाहते थे इसी मंशा से उन्होंने नेपाल पर हमला कर दिया. अंग्रेज और नेपाल के बीच युद्ध एक साल से भी ज्यादा तक चला, आखिर में सुगौली संधि के माध्यम से इस युद्ध का खत्म किया गया. 


इस जंग में नेपाली सैनिकों ने जो बहादुरी दिखाई उससे अंग्रेज काफी प्रभावित हुए. उन्होंने उन बहादुर सैनिकों को ब्रिटिश सेना में शामिल किए जाने के बारे में सोचा. इसके लिए 24 अप्रैल 1815 में नई रेजीमेंट बनाई गई, जिसमें गोरखा सैनिकों की भर्ती की गई. ब्रिटिश इंडिया की सेना में रहते हुए गोरखा सैनिकों ने दुनियाभर के कई अहम जंग में हिस्सा लिया और जीत भी दिलाई. दोनों विश्व युद्ध में भी गोरखा सैनिक थे. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों विश्व युद्ध में करीब 43 हजार गोरखा सैनिकों की मौत हो गई थी. 


वहीं साल 1947 में भारत आजाद होने के बाद नवंबर 1947 में यूके, भारत और नेपाल के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत ब्रिटिश और भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं की भर्ती की जाती है. समझौते के तहत 6 रेजिमेंट भारत और 4 रेजिमेंट ब्रिटिश सेना का हिस्सा बनी. लेकिन, 4 रेजिमेंट के कुछ सैनिकों ने ब्रिटेन जाने से मना कर दिया. तब भारत ने 11वीं रेजिमेंट बनाई. 




अग्निपथ योजना से क्या हो रहा है त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन?


भारत में अग्निपथ योजना के लागू किए जाने के साथ ही नेपाल की विपक्षी पार्टियां देउबा सरकार को घेर रही है. पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार में विदेश मंत्री का कार्याभार संभाल चुके विदेश मंत्री रहे प्रदीप ज्ञवाली ने बीबीसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि अग्निपथ योजना 1947 की त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है.


उन्होंने कहा कि भारत सरकार देश के अंदर सेना में भर्ती के नियम को लिकर किसी भी तरह के बदलाव के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है लेकिन हम अग्निपथ के मौजूदा स्वरूप को स्वीकार नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि साल 1947 से गोरखा सैनिकों की भर्ती की एक प्रक्रिया शुरू की गई थी और 75 सालों से यही प्रक्रिया अपनाई जा रही है.  उस नियम में  अचानक बदलाव त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) इसे स्वीकर नहीं करेगी.''


ये भी पढ़ें:


दुनिया में जितने परमाणु बम हैं उससे धरती को कितनी बार बर्बाद किया जा सकता है?