Fact About Agra Fort: उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में ताजमहल और लाल किला विश्व की धरोहरों में शामिल हैं. ये स्मारक दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और हजारों की तादात में लोग इन्हें देखने पहुंचते हैं. अगर आगरा के किले की बात की जाए तो इस पर राजपूतों, मुगलों, जाटों और मराठों समेत कई राजवंशों का कब्जा रहा है.
आगरा के किले को लेकर एक बहस अभी भी जारी है कि इसे बनवाया किसने था. इस जानकारी को हासिल करने के लिए एक आरटीआई डाली गई. जिसमें हैरान करने वाला जवाब मिला है. दरअसल, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पास पुरानी धरोहरों की सभी जानकारी होती है.
लेकिन हैरानी इस बात की है कि अकबर के शासनकाल के दौरान सबसे पहले इस किले को किसने बनवाया था और इसको लेकर क्या संसोधन किए गए, इसकी कोई जानकारी पुरातत्व के पास नहीं है. एक आरटीआई के जवाब में विभाग के लोक सूचना अधिकारी ने कहा है कि आगरा के किले का निर्माण किसने करवाया इसका जानकारी उनके कार्यालय में उपलब्ध नहीं है.
किसने डाली आरटीआई?
आगरा के कालीबाड़ी इलाके में रहने वाले डॉक्टर देवाशीष भट्टाचार्य ने बीती 27 मई को सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत आगरा के किले के बारे में जानकारी मांगी थी.
1. आरटीआई में मूल रूप से आगरा का किला किसने बनवाया ये सवाल पूछा गया था.
2. सम्राट अकबर ने आगरा के किले में क्या बदलाव किए.
3. आगरा के किले के निर्माण से पहले वहां पर किए गए कार्य क्या थे.
क्या मिला जवाब?
एएसआई आगरा सर्किल के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी महेश चंद्र मीणा ने जवाब दिया कि कार्यालय में पूछे गए सवालों से संबंधित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. ऐसी जानकारी समकालीन साहित्य में पाई जा सकती है.
वहीं, आरटीआई डालने वाले डॉ. भट्टाचार्य का कहना है कि आगरा का किला विश्व ऐतिहासिक स्थलों में शुमार है. इसकी जानकारी एएसआई के पास होनी चाहिए और अगर ऐसा नहीं है तो ये समस्या गंभीर है. ये समझ के बाहर की चीज है कि किले के बारे में ऐतिहासिक तथ्यों को बताने में एएसआई को क्या समस्या है.
किले को लेकर अलग-अलग मत
इंडिया टुडे के मुताबिक, आगरा टूरिस्ट वेलफेयर चैंबर के सचिव विशाल शर्मा का कहना है कि इतिहासकारों की अगर मानें तो 11वीं सदी में सिकरवार वंश के राजपूतों ने मौजूदा आगरा किले की जगह पर मिट्टी और ईंटों से बादलगढ़ नाम का किला बनाया था. महमूद गजनवी ने 1080 में इस किले को राजपूतों से हथिया लिया था. साल 1487 में सिकंदर लोदी ने अपने कब्जे में कर लिया था लेकिन ये किला उस समय तक खंडहर में तब्दील हो चुका था.
फिर 1504 ईस्वी में इसके जीर्णोद्धार के बाद सिकंदर लोदी ने इसे लोधी वंश की सत्ता के केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया. सिकंदर लोदी की मौत इसी किले में हुई थी और उसकी मौत के बाद सिकंदर के बेटे इब्राहिम लोदी ने 9 साल तक यहां से शासन किया. फिर 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी बाबर की सेना से लड़ते हुए मारा गया था. बाबर से हारने के बाद, लोदी वंश का अधिकार समाप्त हो गया और बादलगढ़ कोहिनूर हीरे के साथ मुगलों के अधिकार में आ गया.
इसके बाद 1530 ईस्वी में इस किले में हुमायूं को दूसरे मुगल सम्राट के रूप में ताज पहनाया गया था, लेकिन 1539 में चौसा की लड़ाई में हुमायूं को शेर शाह सूरी ने हरा दिया और शेर शाह ने इस किले पर अधिकार कर लिया. 1545 ई. में शेरशाह की मौत के बाद भी यह किला 1556 तक सूरी राजवंश के आधिपत्य में बना रहा. जब हेमू पानीपत की दूसरी लड़ाई में अकबर के सेनापति बैरम खान से हार गया फिर इसे मुगलों ने वापस ले लिया.
हालांकि बाबर बादलगढ़ पर कब्जा करने वाला पहला मुगल बादशाह था, लेकिन अकबर आगरा को अपनी राजधानी घोषित करने वाला पहला शासक था. उन्होंने आगरा के चारों ओर प्रचुर मात्रा में लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके बादलगढ़ को अपने वर्तमान स्वरूप में पुनर्निर्मित किया.
एएसआई के जवाब पर शर्मा ने क्या कहा?
शर्मा ने कहा कि सवाल का जवाब देने में एएसआई की विफलता अजीब है क्योंकि पुरातत्वविद विशेष रूप से इतिहास की जांच करते हैं और स्मारकों के इतिहास के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं, जिसका उपयोग वे स्मारकों को बनाए रखने के लिए करते हैं. उन्होंने कहा कि आगरा किले का इतिहास पहले से ही किले के प्रवेश द्वार पर एक पत्थर की पटिया पर खुदा हुआ है, लेकिन फिर भी एएसआई किले के बारे में सरल सवालों का जवाब देने में विफल रहा.
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