Exclusive: पीएम केयर्स फंड के वेंटिलेटर्स पर खड़े हो रहे कई सवाल, AGVA हेल्थकेयर के सीईओ ने आरोपों पर दिए जवाब
बीईएल की शुरुआत 50 के दशक में डिफेंस पीएसयू के तौर पर रक्षा मंत्रालय और देश की सेनाओं के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने के लिए की गई थी. पिछले सात-आठ दशक में बीईएल ने देश के सुरक्षा-कवच में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
नई दिल्ली: देश के अलग-अलग राज्यों से हॉस्पिटल्स में बिना इस्तेमाल किए पड़े वेंटिलेटर्स को लेकर बीईएल के सीएमडी ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत की है. सीएमडी एमवी गाओत्मा के मुताबिक शुरुआत में कुछ राज्यों से सीवी-200 वेंटिलेटर्स में कुछ मोडिफिकेशन की मांग जरूर की गई थी, लेकिन उसे पूरा कर दिया गया था. जहां तक वेंटिलेटर्स के इंस्टॉलेशन की बात है वो भी बीईएल और एक चेन्नई की कंपनी की जिम्मेदारी है.
सीएमडी एमवी गाओत्मा ने बताया कि अब तक 29250 वेंटिलेटर्स को 1822 हॉस्पिटल्स (755 शहरों) में लगा दिया गया है. इन सभी वेंटिलेटर्स को पीएम केयर्स फंड से फंडिंग हुई थी. सीएमडी ने भरोसा दिलाया कि बीईएल केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, राज्य सरकारों और अस्पतालों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार है. यहां तक की इन वेंटिलेटर्स को ऑपरेट करने के लिए बीईएल लगातार ऑनलाइन कोर्स भी चला रहा है.
दरअसल, रक्षा मंत्रालय की डिफेंस पीएसयू यानी डिफेंस पब्लिक सेक्टर यूनिट है, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल). नवरत्न कंपनी, बीईएल को अप्रैल 2020 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने 30 हजार मेडिकल वेंटिलेटर बनाने का ऑर्डर दिया था. बीईएल ने अगस्त 2020 में रिकॉर्ड चार महीने में ही ये सारे वेंटिलेटर बनाकर तैयार कर लिए थे. करीब चार महीने के भीतर ही बीईएल ने डीआरडीओ की तकनीक और मैसूर की एक कंपनी के साथ मिलकर इन 30 हजार वेंटिलेटर बनाने का काम पूरा करने का दावा किया था.
दूसरी कंपनियों ने भी की मदद
इस काम में देश की कुछ दूसरी कंपनियों ने भी मदद की थी. जिसमें गोदरेज भी शामिल है क्योंकि पिछले साल ट्रंप सरकार ने वेंटिलेटर्स के एक स्पेयर-पार्ट्स के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया था. गाओत्मा के मुताबिक, बीईएल ने ऐसे समय में देश के लिए 30 हजार वेंटिलेटर्स बनाए, जब सभी देशों में वेंटिलेटर के निर्यात पर रोक लगा दी थी.
बीईएल की शुरुआत 50 के दशक में डिफेंस पीएसयू के तौर पर रक्षा मंत्रालय और देश की सेनाओं के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने के लिए की गई थी. पिछले सात-आठ दशक में बीईएल ने देश के सुरक्षा-कवच में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. आकाश मिसाइल हो या फिर स्वाथी वेपन लोकेशन रडार सिस्टम या फिर युद्धपोत के सोनार या फाइटर जेट्स के इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट और सिम्युलेटर्स, ये सभी बीईएल ही तैयार करती है. एक तरह से देश के मॉर्डन वॉरफेयर सिस्टम में जितने भी हथियार, टैंक, तोप, लड़ाकू विमान और युद्धपोत में इस्तेमाल होने वाली हर इलेक्ट्रॉनिक तकनीक बीईएल ही तैयार करती है.
लेकिन वक्त के साथ-साथ बीईएल ने सिविलियन (असैनिक) टेक्नोलॉजी में भी महारत हासिल की. यही वजह है कि देश में चुनावों के समय वोटिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन भी बीईएल ने ही तैयार की है. इसके अलावा ट्रैफिक-सिग्नल, फायर कंट्रोल सिस्टम और बायोमैट्रिक सिस्टम, ये सब भी बीईएल की ही देश को देन है.
आठ जगहों पर प्लांट
बीईएल का बेंगलुरू में हेडक्वार्टर है और फिलहाल देशभर में आठ प्लांट हैं. इनमें बेंगलुरू, गाजियाबाद, कोटद्वार (उत्तराखंड), पुणे, मछलीपट्टनम (तमिलनाडु), पंचकुला (हरियाणा), चेन्नई, हैदाराबाद और नवी-मुंबई शामिल है. बीईएल का सालाना टर्न ओवर करीब 13,500 करोड़ है. हर साल बीईएल रक्षा मंत्रालय को डिविडेंड के तौर पर करीब 350 करोड़ रुपये देती है.
बीईएल ने कोविड की दूसरी लहर से लड़ने के लिए इसी साल अप्रैल के महीने में पीएम केयर्स फंड में 5.45 करोड़ रुपये का योगदान भी दिया था, जबकि पिछले साल 10 करोड़ रुपये दिए थे. इसके अलावा कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी (सीएसआर) के तहत बीईएल चार करोड़ की लागत के 12 मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट छह राज्यों के 12 अलग-अलग सरकारी अस्पतालों में लगाने का काम कर रही है.
AGVA हेल्थकेयर के सीईओ ने आरोपों पर दिए जवाब
वहीं पीएम केयर्स फंड से वेंटिलेटर सप्लाई करने वाले AGVA Healthcare के सीईओ दिवाकर वैश्य पर कई आरोप लगे हैं, जिसको लेकर उनसे खास बातचीत की गई है.
सवाल- वेंटिलेटर्स का ऑर्डर मिलने के बाद उसे आप कैसे डिलीवर करते है? ऑर्डर कौन देता है और डिलीवरी किसको देते है? आप पर आरोप है कि आपने खराब वेंटिलेटर सप्लाई कर दिए, वो काम ही नहीं करते?
जवाब- ऑर्डर केंद्र की नोडल एजेंसी HLL से मिलते हैं. आर्डर किस राज्य में पहुंचाने हैं, इसकी जानकारी केंद्र की एजेंसी देती है. हम उस राज्य से संपर्क करते हैं. उनसे पूछते हैं कि वो इन वेंटिलेटर को कहां-कहां इंस्टॉल करना चाहते हैं. ज्यादातर मामलों में राज्य अपने वेयरहाउस में सप्लाई करवाते हैं. वहां से वो खुद अपने अस्पतालों को वेंटिलेटर भेज देते हैं. राज्यों से ये जानकारी कई मामलों में हमारी कंपनी को नहीं दी जाती है कि वेंटिलेटर कहां भेजे गए हैं. हम कई बार खुद फोन करते हैं और पता करने की कोशिश करते हैं.
सवाल- आपके वेंटिलेटर की कीमत कितनी है? पेमेंट कितना हो चुका है?
जवाब- हमने एक वेंटिलेटर केवल 1.5 लाख रुपये में बेचा है. हमें डिलीवरी के बाद केवल 25 प्रतिशत पेमेंट सरकार से मिलता है, जिसमें 12 प्रतिशत इनवॉइस बनाते ही हमें सरकार को टेक्स देना पड़ता है यानी हमें सप्लाई तक केवल 13 प्रतिशत पेमेंट मिलता है. फिर वेंटिलेटर इंस्टॉल होता है और सही तरीके से चलाने के बाद डॉक्टरों की रिपोर्ट के बाद हमें दूसरी किस्त मिलती है. इसके बाद अगली किस्त कुछ महीने तक उसके सही से चलने के बाद मिलती है. वेंटिलेटर इंस्टॉल ना होने की सूरत में सबसे बड़ा नुकसान हमारा ही है.
सवाल- आप पर आरोप है कि आपने वेंटिलेटर इंस्टॉल नहीं किए?
जवाब- हम क्यों इंस्टॉल नहीं करेंगे? जितनी देर इस्टॉलेशन में लगेगी, उतनी ही देरी हमारे पेमेंट में होगी. हमें अस्पतालों से जानकारी और सूचनाओं का आदान-प्रदान होने में दिक्कत आ रही है.
सवाल- आप पर आरोप है कि आपके वेंटिलेटर काम ही नहीं करते?
जवाब- हमारे वेंटिलेटर पहले टेक्निकल टीम चेक करती है. उसके बाद उसका क्लिनिकल ट्रायल होता है. उसके बाद हमारे वेंटिलेटर के इस्तेमाल की इजाजत मिलती है. कई महीनों के इस्तेमाल के बाद ही हमें पेमेंट मिलती है.
सवाल- आपको अब तक कितने वेंटिलेटर के ऑर्डर मिले हैं.
जवाब- 10000 वेंटिलेटर के.
सवाल- अगर वेंटिलेटर खराब होते हैं तो उसे ठीक करने की जिम्मेदारी किसकी है?
जवाब- ये जिम्मेदारी हमारी है. एक साल तक वेंटिलेटर में जो कुछ भी खराब होगा, उसे हम सही करेंगे. हमारी जिम्मेदारी इसे इंस्टॉल करने और इसकी ट्रेनिंग डॉक्टरों टेक्निकल स्टाफ को देने की है. एक साल तक हमारे इंजीनियर बिना किसी शुल्क के इसमें आने वाली सारी दिक्कतों को दूर करते हैं. लेकिन हमें कोई बताएगा या जानकारी देगा तभी ये सारे काम कर पाएंगें. कई जगह से हमें सूचनाएं मिलती है और कई जगह से नहीं मिलती. जब तक हम ये सारी प्रक्रिया पूरी नहीं करेंगे तब तक कॉन्ट्रेक्ट की शर्तों के हिसाब से हमारा पूरा पेमेंट नहीं जारी होगा.
सवाल- आपके वेंटिलेटर में कितना डिस्पोजेबल आइटम लगता है? इसे देने की जिम्मेदारी किसकी है?
जवाब- एक मरीज से दूसरे मरीज में वेंटिलेटर जब लगाया जाता है तो उसकी सारी पाइप बदली जाती है. कई फिल्टर बदले जाते हैं ताकि एक मरीज का इंफेक्शन दूसरे में ट्रांस्फर ना हो. ये डिस्पोजेबल आईटम का इंतजाम करना अस्पताल की जिम्मेदारी है. हम एक या दो सेट वेंटिलेटर के साथ देते हैं. इसके अलावा वहां की ऑक्सीजन पाइप के हिसाब से उसका नोजल प्वॉइंट बनाने की जिम्मेदारी ऑक्सीजन इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने वाली एजेंसी की है. ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए कोई भी वेंटिलेटर ऑक्सीजन पाइप से जोड़ा जाता है. उसे सही से इस्तेमाल करने और चलाने की जिम्मेदारी उसे इस्तेमाल करने वाले की है. अगर वेंटिलेटर में कोई तकनीकि दिक्कत है तो उसकी जिम्मेदारी हमारी है. उसे इस्तेमाल करने की जानकारी देना भी हमारी जिम्मेदारी है.
सवाल- पीएम केयर्स के वेंटिलेटर की सर्विस और उसके मेंटेनेंस की जिम्मेदारी किसकी है?
जवाब- हमें इन वेंटिलेटर की मुफ्त सर्विस और मेंटेनेंस की एक साल की जिम्मेदारी है.