नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मामले पर कुछ दिनों में फैसला सुना सकती है. फैसले से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने खास रणनीति अपनाई है. इसके तहत मंदिर मुद्दे पर हर समय कट्टर दिखाई देने वाले आरएसएस के नेता मुस्लिम संगठनों और धर्मगुरुओं से मुलाकात कर रहे हैं. इसी कड़ी में बुधवार को संघ के नेता सुनील पाण्डेय ने जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी से मुलाकात की और उन्हें संघ प्रमुख के विचारों से अवगत कराया.
माना जा रहा है कि गुरुवार को मदनी के साथ संघ नेताओं की एक और गुप्त बैठक हो सकती है. जिसके बाद दोनों पक्ष के नेता एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस भी करेंगे. बता दें कि सुनील पाण्डेय वही व्यक्ति है जिन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत और अरशद मदनी की मुलाकात में अहम रोल अदा किया था.
आरएसएस की भावी योजना
दरअसल, इन दिनों हर तरफ से एक ही आवाज उठ रही है कि निर्णय चाहे जो भी हो उसका सम्मान सभी धर्म और संगठन करे. माना जा रहा है संघ की योजना उन पर लगे पूर्व आरोपों से बचने की है. इसी कड़ी में संघ के नेताओं ने एक दिन पहले मुख्तार अब्बास नकवी के आवास पर देश के नामी-गिरामी मुस्लिम धर्मगुरुओं और नेताओं के साथ बैठक की थी. इसके बाद बुधवार को जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी के साथ संघ नेता ने मुलाकात की. इसे संघ की भावी योजना के रूप में देखा जा रहा है.
ये पहली बार है जब देश में संघ समर्थित बीजेपी सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति में है. उत्तर प्रदेश समेत देश के ज्यादातर हिस्सों में बीजेपी की सरकार है. ऐसे में संघ और बीजेपी बहुत सोच समझकर या यह कहें फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. संघ की योजना है कि निर्णय आने के बाद देश में कहीं भी कोई दंगा-फसाद ना हो क्योंकि देश के ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकार है और ऐसी स्थिति में राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की है. कहीं कोई घटना होने पर सीधे तौर पर बीजेपी और संघ निशाने पर आ जाएंगे.
बयान देने से बच रहे आरएसएस नेता
यही नहीं मंदिर मुद्दे पर कड़ी राय रखने वाले आरएसएस नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अभी चुप्पी साध ली है. आरएसएस ने अपने प्रवक्ताओं और प्रचारकों को भी किसी प्रकार के बयान देने से रोक दिया है. संघ नहीं चाहता कि आदेश आने के बाद किसी प्रकार के विवाद में उसका नाम जुड़े. इससे पहले बुधवार को जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा कि उनकी मुलाकात संघ प्रमुख मोहन भागवत से हुई थी. इसके बाद से संघ नेताओं के बयानों में काफी नरमी आई है. इससे सीधे पता चलता है कि आरएसएस ने मंदिर मुद्दे पर अपनी चाल बदल दी है और विवादों में ना पड़कर आम सहमति से मसले का हल निकालने की कोशिश कर रही है.
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