Defence News: सोमवार को राजधानी दिल्ली (Delhi) में डिफेंस सेक्टर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि (AI) आधारित 75 सैन्य तकनीक और साजो सामान सेनाओं को सौंपी गई. इस दौरान इन सभी तकनीक और प्रोडेक्ट्स की प्रदर्शनी का निरीक्षण करते वक्त खुद रक्षा मंत्री राजनाथ (Defense Minister Rajnath) कुछ खास स्टॉल पर रूके और उस टेक्नोलॉजी के बारे में खुद जाना. इनमें खास थे साइलेंट-संतरी, त्रिशुल-रिमोट वैपन सिस्टम और मैंडेरिन ट्रांसलेटर डिवाइस. 


साइलेंट सतंरी- साइलेंट संतरी दरअसल एक रोबोट है जो देश की सरहदों की निगरानी करने के लिए काफी कारगर तकनीक है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है  इस सिस्टम को पाकिस्तान (Pakistan) से सटी एलओसी (LOC) या फिर किसी भी कटीली तार पर लगाया जा सकता है. ये रेल माउंटेड डिवाइस (Rail Mounted Device) ) है यानि इसे कटीली तार पर एक छोटी सी ट्रैक पर फिट किया जा सकता है. छह घंटे तक इसे एक किलोमीटर की सीमा पर निगरानी के लिए लगा दिया जाता है. जैसे ही कोई दुश्मन सैनिक या फिर आतंकी एलओसी पर घुसपैठ करने की हिमाकत करेगा साइलेंट संतरी तुरंत कमांड एंड कंट्रोल सेंटर में बैठे सैनिक को अलर्ट कर देगा और सैनिक तुरंत एलओसी पर पहुंचकर आने वाले खतरे से निपट सकता है. 


इस साइलेंट संतरी को बनाने वाले भारतीय सेना के आर्मी डिजाइन बोर्ड (ADB) के मेजर पराग कंवर ने एबीपी न्यूज को बताया कि किसी भी सैनिक के लिए छह घंटे लगातार एक जगह ही निगरानी करने में काफी मुश्किल होती है. ऐसे में ये साइलेंट संतरी रोबोट काफी काम आ सकता है. छह घंटे के बाद इसे रिचार्ज किया जा सकता है और एक बार फिर से सरहद की निगहबानी कर सकता है. 


मेजर पराग के मुताबिक, क्योंकि ये एआई तकनीक पर आधारित है इसलिए ये फेस-डिटेक्शन भी कर सकता है. यानि ये भी बता सकता है कि घुसपैठ करने वाला दुश्मन है या फिर अपने ही देश का कोई सैनिक है. इसके अलावा इंसान और जानवरों के बारे में भी बता सकता है. इसे एलओसी पर लगाकर सेना ने टेस्ट भी किया है और आने वाले समय में सीमा पर बड़ी संख्या में तैनात किया जा सकता है. 


त्रिशुल-रिमोट वैपन सिस्टम: देश की पहली 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन डिफेंस' नाम की एक प्रदर्शनी और संगोष्ठी को संबोधित करते हुए खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज के समय में हर हथियार (Weapons) में एआई का इस्तेमाल होने लगा है. उसी एआई आधारित एक हथियार को सेना के आर्मी डिजाइन बोर्ड (एडीबी) ने तैयार किया है. ये तकनीक किसी भी एलएमजी, इंसास या फिर एके-47 राइफल (AK-47 Rifle) पर लगाई जा सकती है. इसके लगाने के बाद ये गन पर लगे कैमरे से खुद-बे-खुद टारेगट सेट करती है और राइफल सटीक निशाना लगाती है. किसी सैनिक को इस गन का ट्रिगर दबाने की जरुरत भी नहीं पड़ती है. 


मेजर पराग के मुताबिक, 300 मीटर की रेंज में किसी भी स्टेटिक टारगेट पर त्रिशुल-रिमोट वैपन सिस्टम 100 प्रतशित सटीक निशाना लगाती है. अगर टारगेट मूविंग है तो इसकी एक्यूरेसी रेट 90 प्रतिशत है. इसे किसी भी मिलिट्री-व्हीकल या फिर आर्मी पर्सनल कैरियर (एपीसी) के ऊपर लगाया जा सकता है. क्योंकि कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में सीआई-सीटी यानि काउंटर इनसर्जेंसी और काउंटर टेरेरिज्म इलाकों में आतंकी सेना की गाड़ी पर ऊपर तैनात सैनिक को निशाना बना सकते हैं. ऐसे में दिन-रात कभी भी इस एआई अस्सिटेट रिमोट वैपन सिस्टम का इस्तेमाल किया जा सकता है. 


मैंडेरिन ट्रांसलेटर डिवाइस: बिना इंटरनेट के चीन के मैंडेरिन भाषा को रियल-टाइम में इंग्लिश में तब्दील करने वाले एक पॉकेट साइज डिवाइस को देखकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी प्रदर्शनी के एक स्टॉल पर ठिठक गए और बड़े गौर से वहां खड़े एग्जुयकेटिव की बात को ध्यान से सुना. दरअसल, बेंगलुरू के एक स्टार्ट-अप ने इस बॉर्डर लैंग्वेज अस्सिटेंट इन डिफेंस डिवाइस को तैयार किया है. करीब 600 ग्राम के इस डिवाइस को सैनिक अपने बाजू पर या फिर बेल्ट बांधने वाली जगह पर लगा सकता है. इस पोर्टबेल डिवाइस से ईयर-फोन अपने कान में लगाना है और पांच फीट दूरी पर खड़े चीनी सैनिक की बातचीत को अंग्रेजी में सुना जा सकता है. 


दरअसल, भारत की चीन से सटी 3488 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ कंट्रोल यानि एलएसी है. ऐसे में हर भारतीय सैनिक के लिए मुमकिन नहीं है कि वो चीनी भाषा सीख सके. ऐसे में उन भारतीय सैनिकों (Indian Soldiers) के लिए ये डिवाइस बेहद कारगर है जिन्हें चीनी भाषा (Chinese Language) का ज्ञान नहीं है और कभी भी चीनी सैनिकों से आमना-सामना पड़ सकता है. कई बार एक दूसरे की भाषा ना समझने से भी बॉर्डर पर विवाद हो चुके हैं. ऐसे में चीनी भाषा को अंग्रेजी और अंग्रेजी को मैंडेरिन में सुनने के लिए इस डिवाइस को तैयार किया गया है. 


चीनी भाषा को ट्रांसलेट करने में सक्षम


मैंडेरिन ट्रांसलेटर डिवाइस के डिजाइन को तैयार करने वाले अनुरूप अयंगर ने एबीपी न्यूज को बताया कि सेना के कहने पर वे अब ऐसे डिवाइस पर काम कर रहे हैं जो 50 फीट दूर पर बोली जा रही चीनी भाषा को ट्रांसलेट कर सके और इस डिवाइस को एक पोर्टबेल मोबाइल चार्जर के बराबर बनाने पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा वे अब चीनी भाषा के अलावा 20 अन्य भाषाओं में इस तरह के डिवाइस को बनाने पर काम कर रहे हैं. 


टैकों को तबाह करने के लिए एटीजीएम मिसाइल में एआई तकनीक: देश की डिफेंस पीएसयू, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड यानि बीडीएल ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल एंटी टैंक गाईडेड मिसाइल (ATGM) मे किया है. इस एआई तकनीक से सैनिक को दुश्मन के टैंक या फिर आर्मर्ड पर्सलन कैरियर व्हीकल यानि एपीसी पर सटीक मिसाइल दागने में खासी मदद मिलेगी. रुस-यूक्रेन युद्ध में टैंक और एपीपी व्हीकल्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ है. इसके अलावा एटीजीएम का भी जमकर इस्तेमाल हुआ है. गलवान घाटी की झड़प के बाद चीन ने बड़ी संख्या में अपने टैंकों को पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर तैनात किया था. ऐसे में इन टैंकों को तबाह करने के लिए इस एआई आधारित एटीजीएम का बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सकता है. 


सैपर्स-स्कॉउट: पाकिस्तान से सटी एलओसी हो या फिर चीन से सटी एलएसी भारतीय सैनिकों को हमेशा लैंड-माइंस का खतरा बना रहता है. ऐसे में भारतीय सेना ने एक अनमैनड व्हीकल तैयार किया है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से लैंडमाइन्स को डिटेक्ट कर सकती है. कैप्टन राजप्रसाद ने एबीपी न्यूज को बताया कि ये छोटा सा रोबोटिक-व्हीकल लैंड माइन्स को डिटेक्ट कर सैपर को सही सही जानकारी दे सकता और फिर इस बारुदी सुंरग को आसानी से निष्कृय करने में काफी मददगार साबित हो सकता है. 


एसवीडीएस: सस्पिशियस व्हीकल डिटेक्शन सिस्टम यानि एसवीडीएस से सड़क पर दौड़ रही किसी भी संदिग्ध गाड़ी को पहचाना जा सकता है. पुलवामा हमले में इस्तेमाल की गई गाड़ी चोरी की थी और नबंर प्लेट भी फर्जी थी. इस डिवाइस की मदद से किसी भी सीआई-सीटी एरिया में संदिग्ध गाड़ी को पहचाना जा सकता है. कैप्टन पुनीत सिंह के मुताबिक, इस सिस्टम में सड़क परिवहन मंत्रालय के 'वाहन' डाटा और आरटीओ के डाटा से मैच कर संदिग्ध गाड़ी की पहचान की जाती है.


प्रिज्म: प्रोएक्टिव रियल टाइम इंटेलीजेंस एंड सर्विलांस मॉनेटरिंग सिस्टम से किसी भी वीडियो फुटेज की क्वालिटी को बढाया जा सकता है. सरहद पर तैनात लारोज या फिर किसी दूसरे निगरानी कैमरे की फुटेज जब कमांड एंड कंट्रोल सेंटर में पहुंचेगी तो इस किसी भी लैपटॉप या फिर कम्पयूटर में इस प्रिज्म के इस्तेमाल से रियल-टाइम में वीडियो क्वालिटी को साफ किया जा सकता है. चीन हो या पाकिस्तान दोनों ही सरहदों पर कई कई किलोमीटर दूर की फोटो और वीडियो होने के चलते कई बार तस्वीर साफ दिखाई नहीं पड़ती है. लेकिन एआई पर आधारित प्रिज्म से क्वालिटी कई गुना बढ़िया हो जाती है. 


'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन डिफेंस' प्रदर्शन का किया गया आयोजन


सोमवार को राजधानी दिल्ली में देश की पहली 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन डिफेंस' नाम की प्रदर्शनी और संगोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसका उदघाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया. इस प्रदर्शनी और सेमिनार के दौरान आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि एआई आधारित 75 तकनीक और सैन्य उपकरणों को लॉन्च किया गया जो पहले से सेना, डीआरडीओ और डिफेंस पीएसयू टेस्ट और ट्राई किए जा चुके हैं. 


इस प्रदर्शनी में दस अलग-अलग कैटेगरी बनाई गई हैं जिसमें स्वचालित और मानवरहित रोबोटिक्स प्रणाली, साइबर-सिक्योरिटी, मानव व्यवहार विश्लेषण, इंटेलीजेंट मॉनिटिरिंग एनेलेसेस, रसद और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, भाषण/ध्वनि विश्लेषण और कमान, नियंत्रण, संचार, कंप्यूटर और आसूचना, निगरानी और सर्वेक्षण (सी4आईएसआर) प्रणाली और ऑपरेशन्ल डाटा एनेलेटिक्स शामिल है. एआई पर आधारित कुछ एपीलेक्शन क्लासीफाइड हैं जिसके बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी. आधुनिक वॉरफेयर बेहद तेजी से बदल रहा है ऐसे में सेना की कार्यप्रणाली और सैन्य उपकरणों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के खास जरुरत है. 


भारत की मंशा दुनिया पर राज करने की नहींः रक्षा मंत्री


इससे पहले संगोष्ठी को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ तौर से कहा कि रक्षा सुरक्षा के साथ साथ आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल मानवता के कल्याण के लिए भी इस्तेमाल हो. रक्षा मंत्री ने कहा कि आज उन्हें रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का बयान याद आ रहा है जिसमें उन्होनें कहा था कि जो भी 'एआई सेक्टर पर राज करेगा वो पूरी दुनिया पर राज करेगा'. लेकिन राजनाथ सिंह ने साफ किया कि भारत की मंशा कभी भी दुनिया पर राज करने की नहीं रही है. लेकिन कोई देश हमारे ऊपर राज कर ना सके उसके लिए हमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल जरुर करना चाहिए. उन्होनें आगाह किया कि एआई का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और ना ही न्युक्लिर की तरह कुछ देशों का इस पर कब्जा होना चाहिए. 


रक्षा मंत्री के मुताबिक,  वैसे तो आर्टिफिशियल चीजों को पसंद नहीं किया जाता है, ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती. लेकिन आर्टिफिशियल क्षमता हमेशा से महत्वपूर्ण रहा.  चाहे फिर वो सभ्यताओं की शुरूआत में खेती के उपकरण और गाड़ी के पहिए भी आर्टिफिशियल ही थे. उन्होनें कहा कि अरेबियन नाइट्स में उड़ने वाला कार्पेट सुना था लेकिन ऐसे किस्से आने वाले समय में हकीकत में तब्दील हो सकता हैं.


जनरल बिपिन रावत की थी ये इच्छा


इस दौरान रक्षा सचिव अजय कुमार ने बताया कि जब वे रक्षा सचिव बने थे तो तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने उनसे कहा था कि तीनों सेना प्रमुखों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर एक लेक्चर देना चाहिए क्योंकि वे आईटी मंत्रालय से रक्षा मंत्रालय पहुंचे थे.


रक्षा क्षेत्र में एआई के इस्तेमाल पर वर्ष 2018 में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था. इस टास्क फोर्स ने ही सशस्त्र सेनाओं में एआई के इस्तेमाल का रोड-मैप तैयार किया है. एआई आधारित इन 75 तकनीक और उपकरणों के अलावा 100 और ऐसे प्रोडेक्ट्स हैं जिनपर तेजी से काम चल रहा है. जिसमें अगर किसी ड्राइवर को गाड़ी चलाते समय नींद आ जाती है तो एआई की मदद से वो गाड़ी खुद-बे-खुद बंद हो जाएगी. 


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