नई दिल्ली: वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी. एस. धनोआ ने बुधवार को कहा कि वायु सेना और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच रिश्ता सार्वजनिक बहस का विषय नहीं है. हालांकि उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी उत्पादन लक्ष्य को पूरा करने में पिछड़ गई. एचएएल को राफेल विमान सौदे में शामिल नहीं किए जाने को लेकर विवादों के बीच वायुसेना प्रमुख का यह बयान आया है.


'यह आंतरिक बहस का विषय है न कि सार्वजनिक बहस का' - एयर चीफ मार्शल 


धनोआ ने यहां मीडिया से बातचीत के दौरान एचएएल को राफेल सौदे से अलग करने को लेकर पूछे गए सवाल पर कहा, "हम एचएएल को लेकर खुश हैं या नाखुश, यह आंतरिक बहस का विषय है न कि सार्वजनिक बहस का." एचएएल की क्षमता को लेकर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि कंपनी ने वायुसेना को काफी मदद की है जबकि यह अपने उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने में पीछे रही है.


एचएएल की योजना में रही है थोड़ी कमी -धनोआ


धनोआ ने कहा, "एचएएल के अनुबंध की डिलीवरी जो पहले हुई है उसकी योजना में थोड़ी कमी रही है. सुखोई-30 की डिलवरी तीन साल देर से हो पाई और 25 विमान की डिलीवरी अभी तक नहीं हो पाई है." उन्होंने कहा, "उसी प्रकार जगुआर में छह महीने का विलंब हो चुका है, हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) में पांच साल का विलंब हो चुका है. मिराज-2000 अपग्रेड में दो साल की देरी हो चुकी है."


मामले को लेकर ये है विपक्ष का आरोप


विपक्ष का आरोप है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार पूंजीपतियों के हितों को तवज्जो देती रही है और सरकार ने सौदे से एचएएल को हटाकर एक नई निजी कंपनी को शामिल करने में मदद की.


हालांकि सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है. सरकार ने कहा कि यह राफेल विमान की विनिर्माता फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन का फैसला था. धनोआ ने भी बुधवार को कहा कि निजी कंपनी को ऑफसेट कांट्रैक्ट देने का फैसला विनिर्माता कंपनी का था. उन्होंने कहा, "विनिर्माता को ऑफसेट साझेदार चुनना होता है. सरकार या वायुसेना की इसमें कोई भूमिका नहीं है."