नई दिल्ली: दिल्ली की जनता को दिवाली पर पटाखों की बिक्री पर रोक से भले ही कुछ राहत मिली हो लेकिन पराली से वह परेशान है. एक टन पराली यानि सूखी फसलें जलाने से दो सौ किलो राख और 1460 किलो कार्बन डाइआक्साइड निकलती है जिसका एक बड़ा हिस्सा दिल्ली पहुंचता है.


पंजाब हरियाणा में हर साल इन दिनों साढ़े तीन करोड़ टन पराली जलाई जाती है. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि दिल्ली क्यों इन दिनों खांसते खांसते बीमार हो जाती है. हरियाणा और पंजाब के खेत इन दिनों इस तरह धूं धूं करके जलते हैं. अपने खेतों में आग किसान खुद ही लगाते हैं ताकि सूखी फसल जल जाये और खेत गेंहू की खेती के लिए तैयार हो सके. इस बार एनजीटी के सख्त रुख के बाद हरियाणा और पंजाब की सरकारों ने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का ऐलान किया है.


हरियाणा के हिसार जिले में तो पराली जलाने के खिलाफ धारा 144 ही लागू कर दी गयी है. लेकिन किसानों का कहना है कि पराली जलाना उनकी मजबूरी है. हरकेश सिंह किसान हैं और संगरुर में खेती करते हैं वह इन दिनों गेहूं के लिए अपने खेत को तैयार कर रहे हैं यानि पराली जला रहे हैं. उनका कहना है कि पराली हटाने के लिए पैसा चाहिए, सब्सिडी चाहिए, उपकरण चाहिए लेकिन राज्य सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिलता उल्टे पराली जलाने पर जुर्माना लगा दिया जाता है. उनका कहना है कि अगर उनके खेत से कोई बची खुची फसल ले जाए और बदले में चार पैसे दे जाए तो वह पराली जलाने का काम नहीं करेंगे.


वैसे हैरत की बात है कि पराली जलाने से सिर्फ पर्यावरण को ही नुकसान नहीं पहुंचता इससे खेतों को भी नुकसान होता है. पराली जलाने से प्रति हैक्टेयर 339 किलो नाइट्रोजन, 140 किलो पोटाशियम, 11किलो सल्फर और छह किलो फासफोरस का नुकसान होता है. इसकी भरपाई महंगे कीटनाशक और खाद खरीद कर करनी पड़ती है. इससे खेत की उर्वरक क्षमता भी कम होती है और अंत में खेत बंजर होना शुरु होता है. इस बात को संगरुर जिले के ही किसान अंग्रेज सिंह भी बखूबी समझते हैं लेकिन वह कहते हैं कि मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है.
संगरुर के हरकेश की तरह पटियाला, करनाल , जींद , हिसार , कैथल , फतेहाबाद ,सिरसा आदि जिलों के किसान पराली जलाते हैं. हरियाणा के साथ साथ पंजाब और राजस्थान के श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ जिलों में भी पराली जलाई जाती है. एक अनुमान के अनुसार हर साल इस मौसम में साढ़े तीन करोड़ टन पराली जलाई जाती है. एक टन पराली जलाने से 1460 किलो कार्बन डाइआक्साइड, 199 किलो राख, दो किलो सल्फर डाइआक्साइड और 60 किलो कार्बन मोनोआक्साइड निकलती है. इन दिनों हवा उत्तर पश्चिम दिशा में बहती है. यानि हवा पर सवार ये धुआं सीधे दिल्ली आ जाता है. इन दिनों हवा जहरीली होना शुरु होती है और अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है.


दिल्ली के गंगाराम अस्पताल के चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ नीरज जैन का भी कहना है कि दिल्ली में वैसे तो ट्रकों के कारण बारह महीने ही प्रदूषण रहता है लेकिन दिवाली के आसपास इसकी मात्रा कई गुना बढ़ जाती है. इसकी वजह एक तरफ पराली है तो दूसरे तरफ पटाखे. डॉक्टरों का कहना है कि इन दिनों इतनी राख और कार्बन डाइआकसाइड दिल्ली आती है कि जन्म लेने वाला हर बच्चा स्मोकर बाई बर्थ होता है.


दिल्ली में फेफड़ों के कैंसर के चालीस फीसद मरीज ऐसे हैं जिन्होंने जिंदगी में एक भी सिगरेट नहीं पी लेकिन प्रदूषण ने फेफड़ों का काला कर दिया. इसकी एक वजह पराली से पैदा हुआ जहरीला धुआं भी है.


डॉ अरविंद कुमार दिल्ली के लंग केयर फाउंडेशन के चैयरमैन है. उनका कहना है कि दिल्ली में पराली से प्रदूषण के खिलाफ सांस लेने का अधिकार अभियान चलाया जाना चाहिए . हवा में सूक्ष्म धूल कण यानि पीएम 2,5 की मात्रा 300 प्रति माइक्रो घनमीटर से अधिक पहुंचते ही ज्यादातर लोगों में सांस लेने की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है. पिछले साल इन्ही दिनों प्रदूषण का स्तर 400 पार कर गया था.


डॉक्टर अगर सांस लेने का अधिकार अभियान चलाने की बात कर रहे हैं तो किसान नेता पराली जलाने के अधिकार की वकालत कर रहे हैं. भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष रतन मान का कहना है कि अगर किसानों को पराली जलाने से रोका गया तो वो खेती छोड़ जेल चलो आंदोलन शुरु करेंगे. वह 40 हजार रुपये प्रति एकड़ का मुआवाजा पराली नहीं जलाने के एवज में मांग रहे हैं. उधर पराली पर दिल्ली के नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ( एनजीटी ) में सुनवाई हो रही है. एनजीटी ने 2015 में पराली जलाने पर रोक लगा दी थी लेकिन पिछले दो साल में उसका जलना कम नहीं हुआ है. अलबत्ता इस पर राजनीति जरुर तेज है.


एनजीटी ने पंजाब सरकार की बहानेबाजी को गंभीरता से लेते हुए 21 किसानों को पेश करने को कहा है जिन्हे पराली जलाने से रोकने के लिए प्रोत्साहित किया गया. उधर पंजाब सरकार का कहना है कि किसानों को पराली नहीं जलाने के एवज में सब्सिडी देने, नई तकनीक और जागरुकता अभियान चलाने के लिए 9391 करोड़ रुपय़े चाहिए. उधर हरियाणा सरकार 303 करोड़ रुपए की मांग की है. केन्द्रीय कृषि मंत्रालय का कहना है कि उसने तीन साल पहले पराली जलाने पर रोक लगाने का मसौदा तैयार कर राज्य सरकारों को सौंप दिया था लेकिन राज्य सरकारों ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दियॉ. उसका तो यहां तक कहना है कि उसने उपकरण खरीदने के लिए पैसा तक दिया था लेकिन राज्य सरकारों ने उस दिशा में भी कोई कदम नहीं उठाया है. सवाल उठता है कि कब तक पराली अदालती दांवपेचों में उलझी रहेगी और कब तक पराली का प्रदूषण दिल्ली वालों के फेफड़ों को काला करता रहेगा.