राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण चिंता का सबब बना हुआ है. हवा की गुणवत्ता इस कदर खराब है कि लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है. हर कोई यही सवाल कर रहा है कि आखिर दिल्ली में कैसे प्रदूषण कम होगा? कब हमें जहरीले धुएं से निजात मिलेगी? हालांकि ऐसा नहीं है कि इस मुश्किल का इलाज नहीं है. दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करना असंभव नहीं है.जरूरत है तो ठोस राजनीतिक इच्छा शक्ति की. चलिए आज हम आपको ऐसे 5 उपाय बता रहे हैं जिन्हें सरकार अपनाएं तो दिल्ली को धुआं मुक्त किया जा सकता है.
1-सड़क पर दौड़ें इलेक्ट्रिक कारें
दिल्ली में वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह है ट्रैफिक. बता दें कि दिल्ली शहर में करीब सवा करोड़ वाहन हैं. इनमें 32 लाख से ज्यादा कारें हैं और 70 लाख से ज्यादा टू व्हीलर. दिल्ली को धुआं-धुआं करने में सबसे ज्यादा योगदान इन्हीं का है. दिल्ली में प्रदूषण को लेकर मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज ने 2010 और 2018 के बीच तुलना करते हुए जो आकड़ें जारी किए हैं उनसे साफ है कि दिल्ली में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह वाहन हैं. वहीं सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण तापमान का कम होना होता है. इससे प्रदूषण वाले कण जम जाते हैं. ऐसे में दिल्ली में अगर पेट्रोल और डीजल के वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक कारें चले तो प्रदूषण की आधी समस्या दूर हो सकती है.लेकिन फिलहाल ये दूर की कौड़ी लगती है. वो इसलिए क्योंकि दिल्ली समेत भारत के ज्यादातर शहरों में इलेक्ट्रिक कारों को लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं है.. दूसरा पेट्रोल या डीजल कारों के मुकाबले इलेक्ट्रिक कार थोड़ी महंगी भी है. हालाकि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने पहल करते हुए नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति का एलान किया है.इसके तहत -
100 से अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों को मंजूरी दी गई है, जिन पर सब्सिडी दी जाएगी.
इन इलेक्ट्रिक वाहनों में 45 ई-रिक्शा मॉडल और 12 चार पहिया मॉडल शामिल हैं.
अब 15 लाख रुपये तक की कीमत वाले इलेक्ट्रिक वाहन को सब्सिडी मिलेगी.
इन वाहनों पर रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन चार्ज में अलग से छूट मिलेगी.
शहर में 70 चार्जिंग स्टेशनों का एक नेटवर्क भी तैयार किया जा रहा है
2- मुफ्त पब्लिक ट्रांसपोर्ट
लक्जमबर्ग दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने अपने यहां इस साल मार्च से पब्लिक ट्रांसपोर्ट को पूरी तरह फ्री कर दिया है. अब सवाल है कि ये मॉडल दिल्ली में लागू किया जा सकता है क्या? लेकिन दिल्ली के लिए फिलहाल ये मुश्किल लगता है क्योंकि लक्जमबर्ग की कुल आबादी सिर्फ 6 लाख की है जबकि दिल्ली की आबादी लगभग सवा दो करोड़ है. कोरोना काल से पहले सिर्फ मेट्रो से ही रोजाना लगभग 55-60 लाख यात्री सफर करते थे. दिल्ली में बसों की भी भारी कमी है. कोरोना से पहले दिल्ली की करीब 6000 बसों में रोजना 32 लाख लोग सफर किया करते थे. बसों की कमी के कारण लाखों लोगों को अपने निजी वाहनों से यात्रा करनी पड़ती है जिससे दिल्ली के प्रदूषण में भारी इजाफा होता है. कोरोना के बाद ये दिक्कत और बड़ी हो गई है.
3- पराली हटाने का डीकम्पोजर कैप्सूल
दिल्ली में पिछले एक दशक से पराली का धुआं सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरा है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण की बड़ी वजह पंजाब और हरियाणा से आने वाला धुआ हैं. वहां के किसान अपने खेतों को साफ करने के लिए जो पराली जलाते हैं उसका धुआं दिल्ली और एनसीआर की हवा में जहर घोल देता है. मौजूद आंकड़ों के मुताबिक प्रदूषण बढ़ने में पराली जलने का योगदान 4 से 30 फीसदी तक हो सकता है.हालांकि पराली प्रदूषण बढ़ने का स्थायी स्रोत नहीं है.
दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने पराली की समस्या को खत्म करने के लिए एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसमें मात्र 20 रुपए का खर्च आता है. पूसा संस्थान के वैज्ञानिकों ने डीकंपोजर कैप्सूल तैयार किए हैं. इन कैप्सूल्स को पूसा डीकंपोजर कैप्सूल भी कहा जाता है. एक पैकेट में आने वाले 4 कप्सूल से 25 लीटर घोल बन सकता है. इस घोल को 2.5 एकड़ खेत में इस्तेमाल किया जा सकता है. ये कैप्सूल धान के पुआल को डीकंपोज करने में कम समय लगायेगा और इससे मिट्टी की गुणवत्ता पर भी असर नहीं पड़ेगा. वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया है कि इसके प्रयोग से किसानों की उर्वरक पर से निर्भरता भी कम होगी. ऐसे में किसानों की लागत घट सकती है.
4- दिल्लीवालों पर क्लीन टैक्स
पंजाब और हरियाणा में किसान पराली इसलिए जलाते हैं क्योंकि धान की कटाई के बाद खेत में बचे हुए अवशेष यानी पराली जमीन में ही रह जाती हैं. इन्हें काटने के लिए मशीन काफी महंगी पड़ती है, और अगर मजदूर लगाए जाएं तो उन्हें भी काफी मेहनाताना देना पड़ता है. ऐसे में किसान के लिए सबसे आसान तरीका यही होता है कि वो खेत में पड़ी पराली को जला दे. इसके लिए ये बिल्कुल मुफ्त हो जाता है. ऐसे में अगर किसान को मशीन के लिए या फिर मजदूरी के लिए पूरी लागत दी जाए तो पराली की समस्या सुलझ सकती है. कई आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर दिल्ली में केजरीवाल सरकार ग्रीन टैक्स या क्लीन टैक्स वसूल कर अगर पंजाब और हरियाणा के किसानों की भरपाई कर दे तो एक रास्ता निकल सकता है
5- वर्टिकल गार्डनिंग
वर्टिकल गार्डनिंग यानी की इमारत की दीवारों पर पेड़ पौधे लगाना भी प्रदूषण को कम करने का एक नया उपाय है. ये एक तरह से एयर प्यूरीफायर का काम करता है.बैंगलोर, दिल्ली-NCR में कई जगह आपको वर्टिकल गार्डनिंग के नमूने मिल जाएंगे लेकिन इसे बड़े स्तर पर अभी तक लागू नहीं किया गया है. मेक्सिको में हुई एक रिसर्च के मुताबिक एक इमारत के चारों तरफ अगर वर्टिकल गार्डनिंग की जाए तो वो साल भर में करीब 40 टन जहरीली गैस सोख सकता है. ऐसे में दिल्ली-NCR में पार्क और खुली जगहों की कमी की वजह से वर्टिकल गार्डनिंग कॉन्सेप्ट को और बढ़ावा दिया जा सकता है.
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